
पारग्रही जीवन के संकेतों की तलाश में बड़ा कदम -विजय गर्ग
काफी समय से यह सवाल उठता रहा है कि क्या पृथ्वी के अलावा ब्रह्मांड के किसी दूसरे ग्रह पर जीवन मौजूद है? क्या किसी ग्रह पर एलियंस की मौजूदगी है-एलियंस का घर है? इन सवालों का जवाब जानने और नए-नए ग्रहों की खोज करने में हजारों वैज्ञानिक दिन-रात जुटे हुए हैं। मगर अब एक भारतीय वैज्ञानिक को अपनी खोज में ऐसी सफलता हाथ लगी है, जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया है।
भारतीय वैज्ञानिक डॉ. निक्कू मधुसूदन ने एक ऐसी खोज की है, जिससे दुनिया आश्चर्यचकित है। आईआईटी -बीएचयू और एमआईटी से पढ़े इस वैज्ञानिक ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में अपनी टीम के साथ जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप से 120 प्रकाश वर्ष दूर एक खास ग्रह के2-18बी (K2-18b) को देखा-परखा।
डॉ. मधुसूदन की खोज में इस ग्रह पर जीवन के पुख्ता संकेत मिले हैं। इनमें डाइमिथाइल सल्फाइड (डीएमएस) नाम का एक खास अणु मिला है जो पृथ्वी पर सिर्फ जीव बनाते हैं- जैसे समुद्री पौधे। वहां मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें भी हैं, जो बताती हैं कि ग्रह हाइसीन वर्ल्ड है- यानी ऐसा ग्रह, जहां ढेर सारा पानी और हाइड्रोजन भरा वातावरण हो, जो जीवन के लिए उपयुक्त हो सकता है।
डॉ. मधुसूदन ने ही सबसे पहले हाइसीन ग्रहों की बात दुनिया को बताई थी। उनकी खोज ‘द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल’ में छपी है और इसे अब तक का सबसे बड़ा जीवन का सबूत माना जा रहा है। यह खोज उस सवाल को भी हवा देती है कि अगर ब्रह्मांड में जीवन है, तो हमने अब तक एलियंस क्यों नहीं देखे? डॉ. मधुसूदन का जवाब है कि अगर इस ग्रह पर जीवन मिला, तो शायद हमारी आकाशगंगा में जीवन हर जगह हो!
डॉ. निक्कू मधुसूदन ने पहले के2-18बी ग्रह को खोजा , फिर रिसर्च में पता किया है कि इस ग्रह के वायुमंडल में हाइड्रोजन मौजूद है। इस ग्रह के वायुमंडल में भारी हाइड्रोजन पायी जाती है। रिसर्च के दौरान ये भी पता चला है कि इस ग्रह पर महासागर है। ऐसे में यहां जीवन की संभावना काफी है। बता दें कि यह ग्रह पृथ्वी से 120 लाइट इयर दूर यानी 1.13 ट्रिलियन किलोमीटर दूर है। तारा के2-18 हमारे सूरज की तुलना में छोटा और नया है। इसकी मोटाई सूरज की 45 फीसदी और आयु लगभग पौने तीन अरब साल है। ध्यान रहे, हमारे सूरज की उम्र का हिसाब पांच अरब साल के आसपास लगाया गया है। के2-18 की सतह का तापमान भी सूरज के आधे से थोड़ा ही ज्यादा है। इसका तकनीकी नाम ब्राउन ड्वार्फ है लेकिन अभी हम ‘लाल तारा’ ही चलाते हैं।
इस तारे के इर्दगिर्द घूमने वाला भीतर से दूसरा ग्रह के2-18बी पृथ्वी से काफी बड़ा है। इसकी त्रिज्या पृथ्वी की ढाई-तीन गुनी है। इस हिसाब से इसका वजन पृथ्वी का 20-25 गुना होना चाहिए था, बशर्ते इसकी बनावट पृथ्वी जैसी ही होती। लेकिन वजन में यह पृथ्वी का साढ़े आठ से दस गुना ही है। इससे एक बात साफ है कि इसका घनत्व पृथ्वी से काफी कम है। ऐसा वहां लोहा कम होने के चलते भी हो सकता है और ग्रह में द्रव-गैस ज्यादा होने से भी।
एक अच्छी बात इस ग्रह के साथ यह है कि यह अपने तारे के गोल्डिलॉक जोन में पड़ता है। यानी पानी वहां द्रव अवस्था में मौजूद हो सकता है। ग्रह का औसत तापमान 23 डिग्री से 27 डिग्री सेल्सियस के बीच होने का अनुमान लगाया गया है। यह खुद में एक आश्चर्यजनक बात ही है क्योंकि अपने तारे के इर्दगिर्द इसकी कक्षा हमारे सौरमंडल में बुध ग्रह की तुलना में आधी से भी छोटी है। डॉ़ मधुसूदन के अनुसार समुद्र की सबसे आम वनस्पति और समुद्री खाद्य शृंखला की बुनियाद समझे जाने वाले फाइटोप्लैंक्टन द्वारा उत्सर्जित कुछ गैसें पृथ्वी के वातावरण में जिस अनुपात में पाई जाती है, K2-18बी पर इनकी उपस्थिति उसकी कम से कम हजार गुना प्रेक्षित की गई है। तो क्या एक सुदूर तारे के इर्दगिर्द घूम रही इस दुनिया में समुद्रों की भरमार है, जहां समुद्री जीवन की नींव के रूप में फाइटोप्लैंक्टन की फसलें लहलहा रही हैं?
बता दें कि भारत में 1980 में जन्मे, डॉ. मधुसूदन ने वाराणसी स्थित आईआईटी, बीएचयू से बीटेक की डिग्री हासिल की। बाद में उन्होंने मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से मास्टर डिग्री के साथ-साथ पीएचडी भी की। साल 2009 में उनकी पीएचडी थीसिस हमारे सौर मंडल के बाहर के ग्रहों के वायुमंडल का अध्ययन करने के बारे में थी, जिन्हें एक्स्ट्रासोलर ग्रह कहा जाता है।
कुल मिलाकर अब वैज्ञानिकों की नजर इस ग्रह पर आ टिकी है। इस ग्रह पर गहरा शोध किया जा रहा है। माना जा रहा है कि आने वाले समय में जैसे-जैसे इस ग्रह के रहस्य से पर्दा उठेगा, कई हैरान कर देने वाले खुलासे वैज्ञानिक कर सकते हैं।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब
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