
तकनीक की रफ्तार -विजय गर्ग
कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी एआइ (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) शब्द सामान्य जन की बातचीत में चिंता के साथ शामिल हो चुका है । रोज एआई के चौंकाने वाले कारनामे खबरों में आ रहे हैं। कहा जा रहा है कि यह रोबोट से जुड़ कर वे तमाम काम कर लेगा, जो इंसान करते हैं। इंसान को तो हम जानते ही हैं। वह सारे काम तो अच्छे करता नहीं है । यों कहें कि अब कई बार वह गैर-इंसानी काम ज्यादा करने लगा हैं, तो गलत नहीं होगा। कुछ समय पहले सोशल मीडिया पर एक खबर चली कि एक रोबोट ने अपनी मालकिन को मार डाला ! एक विचार यह भी चल रहा है कि एआइ संपन्न रोबोट अपनी तरह के रोबोट खुद बनाने लगेगा, जैसा कि प्रकृति ने प्राणियों को यह शक्ति दी है कि वह अपनी तरह का प्राणी बना लेते हैं । मगर अब मशीन ऐसा कर लेगी तो हैरत की बात है। यानी रोबोट अपनी जनसंख्या बढ़ाने की स्थिति में आ सकते हैं ।
ऐसे अनुमान भी सामने आए हैं कि ये रोबोट अब सैनिकों की जगह युद्ध लड़ेंगे। पुलिस की तरह वे सारे काम करेंगे! वे सड़क पर यातायात का नियंत्रण करेंगे, वाहनों की रफ्तार चेक करेंगे, चालान बनाएंगे और पैसा वसूलेंगे । बड़ी इमारत या माल वगैरह की चौकीदारी भी इनके जिम्मे होगी और अगर कोई संदिग्ध आदमी नजर आया तो उसे मार भी सकते हैं। कुछ कार्य ऐसे हैं, जिन्हें करने का निर्णय एआइ सज्जित प्रणाली खुद ले लेती है। जैसे मिसाइल का पता लगाकर उसे नष्ट करने का यांत्रिक निर्णय । दुश्मन के खिलाफ यह रक्षात्मक है, लेकिन मशीन कब ‘ पोरस का हाथी’ हो जाए, इसके डर से इनकार नहीं किया जा सकता है। कल्पना की उड़ान यहां तक जाती है कि वह समय दूर नहीं जब एआइ रोबोट हम पर राज करने लगेंगे। इंसान रोबोट पर पहले निर्भर होगा, उसके बाद गुलाम हो जाएगा। इसका असर यह भी हो सकता है कि रोबोट हिंसक हो जाए या अपने विवेक या ‘प्रोग्रामिंग’ के हिसाब से जरूरी समझेंगे तो आदमी को खत्म ही कर दे।
इन दिनों विद्यार्थी एआइ तकनीक पर बहुत ज्यादा भरोसा करने लगे हैं। पढ़ाई-लिखाई में इनसे मदद मिलती है, रपट बनाई जाती है, प्रोजेक्ट तैयार किए जाते हैं । यह काम फटाफट यानी चुटकियों में हो जाता है। हम अपने सामान्य जीवन के कार्यों में हिसाब-किताब, जोड़-घटाव करने के लिए कैलकुलेटर का सहारा लेते हैं। हमारे बीच से वह पीढ़ी जा चुकी है जो बिना कैलकुलेटर के केवल मुंहजबानी सारा हिसाब जोड़-घटाव कर लेती थी । पौवा – अद्धा – पौना, पहाड़े सबको याद थे। अब अगर एआइ के सहारे प्रोजेक्ट की रपट बनेगी, शोध-पत्र तैयार किए जाएंगे तो इससे विद्यार्थियों की रचनात्मकता और मौलिकता कम होगी, विचारों को विकसित होने के अवसर कम हो जाएंगे। दस्तावेजों और फाइलों में बच्चे अच्छा करते दिखेंगे, लेकिन हकीकत की जमीन पर वे बहुत पीछे रहेंगे।
मौजूदा समय में इस तरह के विचार हमें अतिशयोक्ति पूर्ण लग सकते हैं, लेकिन देखें कि इन दिनों हाल क्या है। आज लगभग हर हाथ में मोबाइल या स्मार्टफोन है। इसमें हमारे बैंक खाते और उसका ब्योरा, निजी जानकारी, फोटो वगैरह सब है । हम सोशल मीडिया पर जो देखते हैं, उससे हमारी गतिविधि दर्ज हो जाती है। कहां होती है, कौन करता है, यह हम नहीं जानते हैं। लेकिन जल्द ही फोन पर हमारी ‘सर्च’ यानी खोजने के विषय के अनुसार अलग-अलग वेबसाइट खुलने लगती है। । हमने बिजली के पंखे को खोजा तो अगले कुछ दिनों तक हमें पंखे दिखाते रहेंगे, जब तक कि हमारी पंखों की खरीदी दर्जन हो जाए। बैंक खाते में पैसा जमा होता है और निवेश की योजनाएं सामने आने लगती हैं। दवा से लगाकर जूते तक, कुछ भी हमने देखा कि घेरे गए । निजता को लेकर हमारे पास कोई गारंटी नहीं है। हम कहां और किस काम के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं, हमें पता नहीं है । यह निजता का उल्लंघन है। सोशल मीडिया और इंटरनेट के बिना सामान्य जीवन संभव नहीं रह गया है, लेकिन फर्जी खबरें और वीडियो की इतनी भरमार है कि हम भ्रमित और डरे हैं। एआइ से दिवंगत – जनों को चलते-फिरते बात करते देखा जा सकता है। एआइ की हरकत है कि सोशल मीडिया से तस्वीर लेकर किसी भी आदमी को कुछ भी करते हुए दिखाया जा सकता है। ऐसे काम आमतौर पर अश्लील ही होते हैं । इससे अच्छे-भले व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा धूल में मिल सकती है।
एआइ पूरी तरह से प्रभावशील हो, उससे पहले इस पर नियंत्रण की जरूरत है। इसके लिए जरूरी शोध होने चाहिए और कानून भी बनाना चाहिए। जैसे समाज भले व्यक्तियों और अच्छे कामों को प्रोत्साहित करता है और बुरे व्यक्तियों और बुरे कामों को हतोत्साहित करता है, इसी तरह एआइ के अच्छे पक्ष को बढ़ाना चाहिए, लेकिन नुकसान देने वाली गतिविधियों पर रोक लगाने की कोशिश करना चाहिए। लोगों को भी एआइ के प्रति जागरूक और सावधान होना होगा। घोड़े की सवारी बिना लगाम के खतरनाक होती है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब
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