



गधों की ये नस्ल गुजरात के हालार क्षेत्र में पाई जाती है,इसलिए इन गधों का नाम भी हलारी है
सबसे बड़ी खतरे की बात ये है कि हलारी नस्ल के गधे विलुप्त होते जा रहे हैं.
(BNE -डेस्क )आमतौर पर गधा का इस्तेमाल किसी के मूर्खता की निशानी माना जाता है। गधे के नाम से लगभग सभी लोग नफरत करते है .इसीलिए कोई इस जानवर को पालने के बारे में सोचता तक नहीं है। लेकिन वो गधा ही है, जो किसी सोने के अंडे देने वाली मुर्गी से कम नहीं है. बल्कि इससे कही अधिक ही है। आपको शायद ये जानकारी नहीं होगी कि गधे की एक ऐसी भी नस्ल होती है ,जिसके दूध का दाम इतना है कि उसे तरल सोना कहा जाता है। गधों की ये नस्ल गुजरात के हालार क्षेत्र में पाई जाती है और इसलिए इन गधों का नाम भी हलारी है. मगर सबसे बड़ी खतरे की बात ये है कि हलारी नस्ल के गधे विलुप्त होते जा रहे हैं.
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तरल सोना माना जाता है हलारी गधे का दूध
हलारी नस्ल के गधे को VVIP इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि बाजार में इसके दूध की मांग ही इतनी तगड़ी है. पहली बात तो ये कि हलारी गधे का दूध बहुत मुश्किल से ही आपको मिल पाएगा. अगर मिल भी गया तो इसका दाम 5000 से लेकर 7000 रुपये प्रति लीटर से कम नहीं मिलेगा. जानकारी के लिए बता दें कि इसका दूध खाने से ज्यादा वैश्विक स्तर पर दूसरे उत्पादों में ज्यादा इस्तेमाल होता है.
हलारी गधी का दूध स्किन के लिए बहुत अच्छा माना जाता है और इसीलिए बहुत सारे महंगे कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स में इसके दूध की बहुत डिमांड रहती है. बता दें कि खाड़ी देशों से लेकर यूरोप के कई देशों में हलारी गधी के दूध से बने साबुन की खासी मांड रहती है.
विलुप्त होने की कगार पर है ये नस्ल
केन्द्रीय पशुपालन विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हलारी नस्ल के सिर्फ 439 गधे ही बचे हैं. यही वजह है कि अब सरकार से लेकर कई सारे एनजीओ हलारी को बचाने में लग गए हैं. एक अंग्रेजी अखबार ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि हलारी गधों के संरक्षण की तत्काल आवश्यकता को समझते हुए, बीकानेर में राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (NRCE) ने एक समर्पित कार्यक्रम शुरू किया है. साथ ही NRCE इस दिशा में भी काम कर रहा है कि गधी के दूध का दाम भी ऊंचा बना रहे और कैसे इसे स्किनकेयर उत्पादों में इस्तेमाल की ज्यादा से ज्यादा संभावनाएं बन सकें.
राजस्थान के बीकानेर में हुए इस कार्यक्रम के दौरान NRCE प्रमुख एस सी मेहता ने कहा कि गधी के दूध को आसमान छूती कीमतों पर बेचे जाने के उदाहरण कई हैं, लेकिन उम्मीदें कम हैं. उन्होंने कहा, “हालांकि लगातार इतनी ऊंची कीमतों पर गधे का दूध बेचना संभव नहीं है, लेकिन यह रोजाना 300 से 400 रुपये प्रति लीटर आसानी से मिल सकता है. हम स्किन केयर के लिए गधी के दूध का टेस्ट कर रहे हैं. अगर नतीजे अच्छे मिलते हैं तो इस दूध की ऊंची कीमतों के कारण इस प्रजाति के संरक्षण को काफी हद तक बढ़ावा मिल सकता है.”
दूध के अलावा भी खास हैं हलारी गधे
ऐसा नहीं है कि हलारी गधे सिर्फ अपने दूध के लिए ही खास हैं, बल्कि इनमें और भी कई खासिते हैं. हलारी गधे डेयरी फार्मिंग के लिए बहुत अच्छा पशु हो सकता है. ये गधे विनम्र स्वभाव के होते हैं और अलग-अलग जलवायु के अनुकूल आराम से ढल जाते हैं. यही वजह है कि भारत में कोई भी किसान इन्हें आराम से पाल सकता है. बड़े पशुओं की तुलना में हलारी गधों पर्यावरण पर प्रभाव भी बहुत कम होता है और इन्हें चारा-पानी भी कम लगता है.