हरे माधव दयाल की दया- अमरकंटक की पावन धरा पर अमृत वर्षा-सतगुर के उपकार साधो गणत न गणियाँ जाए
मन की आज्ञा पर लगने वाले मनमुख व गुरु की आज्ञा पर लगने वाले गुरमुख हो जातें है
सतगुरु दयाल जब समत्व प्रेम का अमृत पिलाते हैं, तो जाति कर्मो मजहबों वर्णों ऊंचनीच की दीवार हट जाती है-मेरे सतगुराँ हम शरण तेरी आए-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र


गोंदिया – वैश्विक स्तरपर पूरी दुनियाँ जानती है कि कुदरत की इस अद्भुत धारा पर भारत एक ऐसा देश है जहाँ कुदरत की विशेष कृपा है, क्योंकि भारत में दयालुता कोमलता परोपकारिता के भाव अपेक्षाकृत विशालस्तर में है, जो धारा के अन्य स्थानों पर अपेक्षाकृत कम देखने को मिलते हैं,यहां ऐसे विशाल भक्त हैं, जिनका विचार रहता है कि अगर मेरा दयाल सतगुरु इक नूर की नजर कर दे तो मैं एक जिंदगी तो क्या लाखों करोड़ों जिंदगीयाँ बलिहार कर दूंगा, यहां सतगुरु जी से प्राप्त तत्व प्रसाद का चस्का जिसको मिलेगा उसका आत्मविश्वास उसे उन्नति की बुलंदी तक ले जाता है, उसके सत्कर्मों, अटल इरादों को भ्रम के तंदे से डिगा नहीं सकते, वह हर कदम पर आगे बढ़ता चला जाता है। आज हम यह विचार इसलिए प्रकट कर रहे हैं क्योंकि अमरकंटक मध्यप्रदेश की धरा पर 12-13 अप्रैल 2025 को विशाल हरे माधव सत्संग मां नर्मदे की पावन धरा, ऋषि मुनियों की तपोभूमि अमरकंटक की पावन धरा पर रखा गया था, जहां रिपोर्टिंग और दर्शन के लिए मैं स्वयंम उपस्थित था तथा सतगुरु जी की पावन हुजूरी में मैंने मां नर्मदे के तट पर आरती सत्संग के श्री वचन तथा हजारों की मात्रा में स्थानीय व मध्य प्रदेश महाराष्ट्र छत्तीसगढ़ उत्तर प्रदेश राजस्थान गुजरात सहित अनेक प्रदेशों से भक्तजनों के भावों को मैंने देखा तो मैं भाव विभोर हो उठा व इस विषय को मैंने आर्टिकल लिखने के लिए चुना। चूँकि मन की आज्ञा पर लगने वाले जीव मनमुख व गुरु की आज्ञा पर लगने वालें जीव गुरमुख हो जाते हैं व सतगुरु दयाल जब समत्व प्रेम का अमृत पिलाते हैं तो,जाति कर्मों मजहबों ऊंचनीच की दीवार हट जाती है, मेरे सतगुरु हम शरण तेरी आए, इसलिए आज हम मेरे ग्राउंड रिपोर्टिंग, सतगुरु के दर्शन व सत्संग में उपस्थित अनुभव के आधार पर चर्चा करेंगे हरे माधव दयाल की दया,अमरकंटक में अमृतवर्षा सतगुरु के उपकार साधो गणत ना गणियाँ जाए।
साथियों बात अगर हम काल की पहली चाल जीवों को भूलभुलैया में फंसाने की करें तो, पूर्ण संत सतगुरु हम मनुष्यों को हर प्रकार के वहमों भ्रमों से निकलने की सीख अपने अमृत वचन वाणियों में देते हैं। यह सारी कुदरत दयाल प्रभु परमात्मा की रचना है क़ाल भी दयाल का बनाया हुआ है, अकाल पुरुख दयाल प्रभु परमात्मा से शक्ति ऊर्जा लेकर ही वर्तण करता है। परमात्मा की मौज से रचित सृष्टि पर कॉल का पहरा है, यह शरीर पुण्य और पाप कर्मों के मिश्रण से ही बना है, यह काल समय परिवर्तन, मृत्यु, विनाश और कर्मों का फल देने वालीसत्ता का सूचक भी है, यह संसार परमात्मा का खेल है, परमार्थ का गहरा रहस्य पूर्ण संतो नहीं खोला है कि क़ाल ही द्वेत विरोध और विनाश की वह शक्ति है जो परमात्मा की मौज से संसार में कार्य कर रही है। क़ाल की पहली चाल जीव को भुलाने की है, वह ऐसा वतावरण निर्मित करता है कि जीव भूल करें या भूल जाए अथवा भरमा जाए, यह काम क्रोध लोभ मोह अहंकार विषय वासना, इंद्रिय रस भोग क़ाल के हथियार से होते हैं जिनको काटने के लिए सतगुरु दयाल हमें अमृततत्व नाम की प्रसादी देते हैं सेवा बंदगी बख्श साध संगत से जोड़ते हैं, सतगुरु नाम का सिमरन ध्यान सेवा वह संजीवनी बूटी है जिसके सामने कल के सारे हथियार विफल हो जाते हैं। मन वचन कर्म से किसी को सुख देना पुण्य है,दुख देना पाप है।पाप पुण्य के कर्म कभी नाश नहीं होते,वें लेंखे में दर्द हो जाते हैं। इन दोनों प्रकार के कर्मों के भुगतान के कारण मनुष्य चौरासी में बना रहता है,दोनों हीकर्मबंधन है। पूर्ण संत दयाल परमात्मा के भेजे उनके प्यारे पुत्र होते हैं, वें जीवों को क़ाल के बंधनों से मुक्त करने की युक्ति, मुक्ति की चाबी देकर नाम भक्त सेवा कराते हैं और समझते हैं कि सत्कर्म अकर्ता एवं निष्काम भाव से करो, यह पूर्ण सतगुरु का परम उपकार है कि, हमें सेवा, सत्संग, सिमरन ध्यान दर्शन में रामाते हैं, सो हमें चाहिए कि पूर्ण सतगुरु जी की पावन सत्संगति में रह नाम सिमरन ध्यान और सेवा में अपने चित्त को निर्मल शुद्ध करें जिससे नए कर्म न बने इसका हमें ध्यान रखना चाहिए।
साथियों बात अगर हम निमाणे व निष्काम भाव से सतगुरु घर की सेवा से हमारे कर्मों का भार हल्का होने की करें तो, सेवाएं अनेक प्रकार की होती है प्रत्येक सेवा का अपना-अपना महत्व होता है, हमें जो सेवा प्राप्त हो वह निष्काम और अकर्ता भाव से करना चाहिए, सेवा में कर्ता भाव पतन का कारण हो सकता है, इसी वास्ते संतों ने सत्संग में अमृत संदेशों वचन वाणियों द्वारा शिष्यों को सचेत करते हैं कि, सेवा सदैव निष्काम व अकर्ता भाव से करें तो, स्वास्थ्य एवं मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है सेवाएं सभी सुखों की खान है। हरीराय सतगुरु भिन्न-भिन्न कौतुक स्वांगो,न्यारे खेलों के द्वारा, हमसे सेवा करा हमारी आत्मा को जागृत कर, अमृत के स्रोत तक पहुंचा देते हैं। पूरण सतगुरु सेवादारों को सेवा प्रदान करते समय इस बात का ख्याल रखते हैं कि, किस सेवादार के लिए कौनसी सेवा आवश्यक है, उसके कर्मों को काटने वाली सेवा उसे प्रदान करते हैं, सारी सेवाएं कर्मों के भार को कम करती एवं काटती है, पर प्रत्येक सेवादार की अपनी अवस्था व पात्रता होती है, सतगुरु जी उसकी पात्रता अवस्था गुण देख सेवाएं प्रदान करते हैं। संग़तो के हित सुखद भविष्य का विचार करते हुए सेवकों को सेवा प्रदान करते हैं, सतगुरु कृपा आदेश से मिली प्रत्येक सेवा हितकारी कल्याणकारी होती है। आज हम संसार के मायावी विकारों में फंस भटक गए हैं, मानव जीवन के असल उद्देश्य लक्ष्य को भूल गए हैं, हमारे सतगुरु न्यारे हैं सर्वोत्तम वृत्ति वाले सतपुरुख है, वें जानते हैं आज मानव संसार के नाशवंत सुखों को जीवन का सुख मानता है। सद्गुरु सच्चे पातशाह हरीराय रूप सतगुरु साईं जी को मानव की यह दशा देखी नहीं जाती, वें हर पल प्रेमी आत्मा शिष्यों को प्रभु के परम तत्व लोक में ले चलते हैं। यही प्रयास रहता है कि संगते सेवा सत्संग सिमरन ध्यान दर्शन के द्वारा पूर्ण निर्मल हो परमात्मा पथ में चलने और प्रभु परम लोक में प्रवेश की पात्रता बनाएं, इसी वास्ते सेवा सत्संग के अपार भंडार खोल दिए प्रत्येक के कर्म अपने होते हैं, या यू कहें कि भिन्न-भिन्न कर्मों का प्रारब्ध होता है, सभी को उनको कर्मों के अनुसार सेवाएं प्रदान करते हैँ, कभी वे स्वयं सेवा बताते हैं, कभी अंतर प्रेरणा से संकेत प्रदान करते हैं, कभी सेवाओं के द्वारा संकेत देते हैं, जिसके जैसे कर्म जैसी योग्यता पात्रता उसके अनुसार सेवा दे निर विकार करते हैं। कर्म भार हल्के कर शूल की सजा को कांटे में परिवर्तन करते हैं, संतो को हर पल अमृत वचन वाणियों परम लीलाओं परम महिमाओं के द्वारा निर्मल करते हुए परम आनंद से भर देते हैं,उनके नारे कौतुब खेल वे अपनी मौज में खेलते हैं। सतगुरु कृपा आदेश से मिली प्रत्येक सेवा हितकारी कल्याणकारी होती है। सेवा हमारे कर्मों का भार तो हल्का करती ही है साथ ही साथ सेवा करते-करते हम बहुत कुछ सीखते हैं। सच्ची सेवा वही कर सकता है जो निमाणे भाव से साथ संगत की सेवा चाकरी में रमा रहता है। निष्काम सेवा से सिमरन सहज हो जाता है, सिमरन पूर्ण होते ही निजता का आनंद देने वाला आंतरिक सत्संग प्राप्त होता है। सेवा में शिष्यों का भाव कभी सरल सहज मीठा होता है तो कभी खट्टा होता है, यह सही नहीं है, सेवा सदा सरल सहज श्रद्धा भाव से ही करना चाहिए।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि हरे माधव दयाल की दया-अमरकंटक की पावन धरा पर अमृत वर्षा-सतगुर के उपकार साधो गणत न गणियाँ जाए।मन की आज्ञा पर लगने वाले मनमुख व गुरु की आज्ञा पर लगने वाले गुरमुख हो जातें है।सतगुरु दयाल जब समत्व प्रेम का अमृत पिलाते हैं, तो जाति कर्मो मजहबों वर्णों ऊंचनीच की दीवार हट जाती है -मेरे सतगुराँ हम शरण तेरी आए
-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यम सीए (एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र