
‘अबे ओ ! अंधा है क्या ? मरने को मेरी ही गाड़ी मिली थी।
ये ट्रैफिक भी, जिस साले को देखो घुसा ही चला आ रहा है। हॉर्न पे हॉर्न दे रहे हैं, उल्लू का पट्ठा साइड ही नहीं दे रहा। सड़क इसके बाप की है क्या ?’ हाथ में स्टीयरिंग संभाले जिस स्पीड से मंदार ट्रक चला रहा था, उसका मुंह भी लगातार गालियों के लच्छे, उसकी बीड़ी के धुंए के साथ फेंक रहा था। उसका काम ही मौसमी फल सब्ज़ियों को इधर से उधर पहुंचाने का था। नाशिक के पिंपल गांव से बारह चक्कों के बड़े से ट्रक में टमाटर और प्याज की खेप लेकर वह अभी बस निकला ही था। उसके ट्रक में पीछे ‘आजा मेरी गाड़ी में बैठ जा’ लिखा था। साथ में केवल दो आंखें बनी थी जिसमें कि एक आंख बंद थी। चौबीस घंटे से ऊपर का सफ़र था। आई ने भरपूर खाना उसके और साथ चल रहे तिरलोचन क्लीनर के लिए बांध दिया था। वह हमेशा मना करता रहता है और वह है कि मानती ही नहीं है। बारिश भरपूर हो रही थी। पूरे उत्तर भारत में जहां इस समय जानलेवा गर्मी पड़ रही थी वहीं यहां लोग कम्बल रात में ओढ़ने को मजबूर थे। बुज़ुर्ग और बच्चे सुबह-शाम कंटोपा और जैकेट में अगस्त सितम्बर के महीने में देखे जा सकते हैं।
‘ओये टिल्लेया !’ तिरलोचन को प्यार से ऐसे ही बुलाता था। नाम जरूर उसका बहुत अच्छा था पर काम उसका उतना बढ़िया नहीं था। गणपति उत्सव बस तीन दिन बाद ही था। जगह जगह दुकानों पर बप्पा बिकने को अपने हर स्वरूप में विराजमान थे। गले को अंगूठे और उंगली से पकड़कर आई शपथ कर के आया था कि स्थापना के दिन वह मौजूद रहेगा।
‘भाऊ ! अपुन सब जानता है, अंधेरा होने वाला है। ख़ुराक का टाइम है। पर कोई ढाबाईच नहीं दिखाई दे रहा है। कोई नहीं, अपुन है ना, स..ब इंजाम है।’
‘थां..बा !’ मंदार गुर्राया।
‘तुझे साले चौबीसों घंटे एक ही चीज दिखाई देती है। अबसे अंगूर की डिलीवरी बंद। पता नहीं इसके सड़ेले भेजे में क्या भरा रहता है।’
उसने ट्रक किनारे लगा दिया और चेहरे पर साथ लाये पानी से छींटे मारीं और कनपटी से अधजली बीड़ी निकाल कर फिर से जला लिया।
‘अबे घन चक्कर, रोटी निकाल, पेट में मैराथन चल रही है। इधर का कुछ जमा नहीं। बोले तो बहुत सन्नटा है रोड पर। मेरे कू चांगला(अच्छा) दिखाइच नक्को।’
‘भाऊ ! डब्बे में पूरन पोली और रसा सेव के साथ है।’ कहने के साथ ही उसने खाना निकाल लिया और सड़क के किनारे चटाई बिछाकर दोनों खाने लगे।
‘टिल्लेया ! काय करत आहे ?’ ख़ुराक कहां है ? आई दर रोज डिब्बा बांध देती है। तुम्ही खाओ।’ मंदार गुस्से से उठ कर ट्रक में चढ़ गया।
‘भाऊ ! काय कू टेंशन लेता है। मी सब बंदोबस्त कर देगा। आजू बाजू इधरीच ‘मसाला’ नक्की आहे। चानिस मिलने पर एट्टी ट्वेंटी का हिसाब रहेगा। यही डीलिंग थी ना हमारी ? बरोबर ?’
‘हाऔ’, मंदार ने बुरा सा मुंह बना दिया। इतनी देर में तिरलोचन ने कुर्सी की गद्दी के नीचे छुपा कर रखी बाटली निकाल ली। एक मंदार को देने के बाद दूसरी वह खुद गटकने लगा। मंदार ने भी अपने काले पीले दांत दिखा कर प्रसन्नता व्यक्त कर दी। आगे क्रॉसिंग पर ट्रक को उसे रोकना पड़ा। उसने सोचा था कि रात बारह के पहले पहले यहां की सीमा वह पार कर लेगा। परंतु कुछ ना कुछ हो ही रहा था, स्पीड मेंटेन नहीं हो पा रही थी। तीन गाड़ियां एक के बाद एक दनदनाती निकल गईं। उसके साथ ही सब भरभरा के एक दूसरे को टक्कर मारते लोग निकलने लगे। ‘पौन घंटे से अभी तक सब कमीने रेल फाटक पर खड़े थे I फाटक खुलते ही सब सालों को हवाई जहाज पकड़ना है।’ तिरलोचन अपनी लाल लाल आंखें किये बोला।
‘चोप्प ! एक शब्द भी बोला तो आई शपथ, यहीं जंगल में फेंक दूंगा। समझ आला ?’ बेचारा अच्छे बच्चे की तरह मुंह में उंगली चिपका कर बैठ गया।
रात गहराने लगी थी। नीरवता भंग करती हुई कभी कभार कोई गाड़ी बाजू से निकल जाती। इनका ट्रक सीमा रेखा पार कर चुका था। दोनों को अभी तक मन चाही जगह नहीं मिली थी जहां रुक कर वह आराम कर लेते। अचानक से मंदार तिरलोचन की पीठ पर धौल जमाते हुए बोला, ‘ टिल्लेया, सामने देख, कुछ लोचा है।’
त्रिलोचन पर बाटली पूरा असर कर चुकी थी। चौंक कर बोला, ‘भाऊ, क..हां, क्..या?’
‘वह देख सामने।’ मंदार का खुद ही दिल दिमाग काबू में नहीं था।
थोड़ी दूर पर कुछ मवाली एक लड़की को परेशान कर रहे थे। वह हाथ जोड़कर खड़ी थी और जाने देने की भीख मांग रही थी। पर उसकी आवाज वहां कोई सुनने वाला नहीं था। तभी अचानक जोर की आवाज हुई। ट्रक लहराते लहराते रुक गया। उसका पिछला टायर फट गया था। ट्रक देखने के बाद भी मवालियों पर असर नहीं हुआ। वह उसको पहले की तरह ही परेशान करते रहे।
‘गुरू ! अपुन की तो लाटरीच निकल गई। ऊपर वाले ने बिना मांगे ही मांग पूरी कर दी। खूब छान। भाऊ, क्या कहते हो?’ टिल्लेया अपनी लड़खड़ाती आवाज में बोला। तब तक मंदार भी अपने आपको किसी तरह संभालते उतरा और उसको भी कालर से पकड़ कर उतार कर कड़क आवाज में बोला, ‘चल, केश कर्तनालय चल कर तेरा मुंडन करा देते हैं। मजा मा ?’ साला लड़की देख कर आपे से बाहर हो जाता है। फुर्ती से टायर बदल। जरा देखना तो मांगता है कि माजरा क्या है।’ कहते हुए मंदार आगे बढ़ गया।
उसको देखते ही लड़की छटपटा कर बदमाशों के चंगुल से बाहर निकलने की असफल चेष्टा करने लगी। ‘लड़की छोड़ दे, नहीं तो अभी एक रपाटा कान के नीचे पड़ेगा, जीवन भर के लिए सुनाई देना बंद हो जायेगा। छोड़ता है कि नहीं ? तेरी तो….।’ मंदार चिल्लाया।
‘स्साले खाली पीली काय कू नाक घुसेड़ रहा है। अपने काम से काम रख वरना ऊपर का टिकट कटते देर नहीं लगेगी। ये हमारा माल है। जो मन करेगा वहीच करेगा। ज्यादा श्याणा बनने की जरूरत नहीं है। समझला ? तेरी वाट लगाने में देरी नक्को।
खूब खूब समझला, अब एक बात अपुन भी समझता है कि अगर लड़की की ‘ना’ है तो उसे छूना भी मत और परोसी थाली छोड़ना मत। क्या समझे? नही समझे,चलो पतली गली से निकल लो, वरना।’ कहने के साथ ही मंदार ने अपने पैंट में खोंसा हुआ रिवाल्वर निकाल लिया। लड़की चिल्लाये जा रही थी। ‘कोई तो मदद करो। तुम्हारे हाथ जोड़ते हैं। तुम्हारी भी तो मां बहन होंगी, दया करो भाऊ।’ लेकिन किसी को भी दया नहीं आई। एक ने यहां तक कह दिया कि हां मां है, बहन भी है लेकिन वही नहीं है जिसकी अपुन को जरूरत है। सब के सब टल्ली थे। सीधे खड़े भी नहीं हो पा रहे थे। तभी तिरलोचन टायर बदल कर आ गया। अब उसको भी लड़की चाहिए थी। अब बात हाथापाई पर उतर आई थी। इस बीच मौका पाकर मंदार ने हवाई फायर कर दिया और लड़की को अपनी तरफ़ घसीट लिया। गोली चलते देख कर लड़के भाग खड़े हुए। शायद नये नये गुण्डे बने थे। मंदार लड़की का हाथ पकड़ कर खींचता हुआ ट्रक की ओर बढ़ने लगा। लड़की डर के मारे कांप रही थी।
‘भाऊ, छोड़ दो, कहने के साथ उसके पैरों पर गिर पड़ी। लेकिन मंदार को तरस नहीं आया। वह उसी तरह उसको खींचता रहा। त्रिलोचन मारे खुशी के पागल हुआ जा रहा था। आखिरकार मसाला हाथ लग ही गया था। यही दुनिया है कोई लड़की को माल तो कोई मसाला कहता है। उसी औरत से जन्म लेकर उसी की इज़्ज़त को उछालने में कोई पीछे नहीं रहता है। चाहे घर हो या बाहर। बस वह कहीं भी सुरक्षित नहीं है। दोनों ने मिलकर बलपूर्वक उस निरीह को ट्रक में चढ़ा ही लिया। जैसे वह इंसान नहीं भेड़ बकरी हो। ट्रक ने फिर अपनी गति पकड़ ली थी। लड़की थर थर कांपे रही थी। तब तक बेकाबू टिल्लेया ने एक और बाटली मंदार की तरफ़ उछाल दी। ‘गुरु! आज तो अपणी दावत है।’ कहते कहते उसने लड़की के कंधे पर अपना हाथ जमा दिया। ये देख कर मंदार आपे से बाहर हो गया। उसने ट्रक रोक दी। भरपूर गालियों की बौछार के साथ उसको ट्रक से उतार कर पीछे टमाटरों के बीच में बैठने का आदेश दे दिया। ना मानने की दशा में वह बीच रास्ते में उसको उतारने की भी धमकी दे चुका था। त्रिलोचन अच्छी तरह समझ गया था कि मंदार की नीयत में खोट आ चुका था। वह अकेला ही फ़ायदा उठाना चाहता है। किसी भी तरीके से वह गाड़ी से नीचे नहीं उतरा। मंदार के ऊपर क्रोध और नशा दोनों बुरी तरह से सर चढ़कर बोल रहे थे।
‘भाऊ !’ वह रोते रोते बोली, इधर ही पहाड़ी के पीछे की शिवाजी बस्ती में वह रहती है, घर पास में ही है उसका I जीवन भर कृतज्ञ रहेगी। बप्पा उस पर अपनी कृपा बरसायेंगे। बस उसे जाने दे। घर पर बूढ़ी मां उसकी प्रतीक्षा कर रही होगी। तुम्हारी भी तो संतान होगी, कुटुम्ब होगा। कृपा करो दादा ! वह रोते जा रही थी। बार बार बप्पा को याद कर रही थी। लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे कि आज उसके बप्पा उससे रुठ गये हैं। सब तरफ़ से उसे अंधकार दिखाई दे रहा था। लेकिन अभी तिरलोचन थोड़ा शांति में था, या शायद वह अब अपने ही होश में बिल्कुल नहीं था।
तब तक एक झटके के साथ गाड़ी मुड़ी और रुक गई, लड़की की जान गले में अटकने लगी कि अब उसकी प्रतिष्ठा गई। उसकी आंखों से आंसू लगभग सूख चुके थे। मंदार गाड़ी से नीचे कूद गया था। उसके हाथ में टॉर्च थी। वह निकलते बैठते लोगों से कुछ बात कर रहा था। फिर वह आकर ट्रक में बैठ गया। लड़की पुनः सहम गई। उसने एक आखिरी बार रोते रोते उसे गाड़ी से उतारने की विनती करने लगी। लेकिन मंदार उसकी कुछ सुन नहीं रहा था। डांट पे डांट लगाते जा रहा था। बाहर इस समय कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। इस सारे कांड में आधी से ज्यादा रात बीत चुकी थी। तभी एक जगह आकर ट्रक खड़ा हो गया।
‘ओये टिल्लेया ! उठ साले, दरवाजा खोल।’ वह हड़बड़ा गया। उसका नशा भी काफ़ूर हो गया।
‘क्या भाऊ, लड़की भाग गई?’ मगर तभी उसने रोती हुई उस बेचारी को देख लिया। पता नहीं उसके नन्हें से मस्तिष्क में क्या कहानी बन गई। उसने कुछ ना कह कर दरवाजा खोल दिया। उधर से मंदार भी उतर कर आ गया। लड़की जैसे ही नीचे उतरी उसने देखा वह अपने घर के सामने खड़ी है। उसको विश्वास ही नहीं हुआ कि वह सुरक्षित अपने घर पहुंच गई थी। उसने शीघ्रता से घंटी बजा दी। दरवाजा तुरंत ही उसके भाई ने खोल दिया। अंदर उसकी मां चिंतामग्न बैठी आंसू बहा रही थी। ना जाने उसकी बेटी कहां और किस हाल में होगी। वह भाग कर अपनी मां से लिपट कर जोर जोर से रोने लगी। भाई ने मंदार को अंदर बुलाया। वह बताने लगा कि वह और उसकी बहन दिन में कॉलेज जाते हैं और सांय से आधी रात तक काम करते हैं। दोनों के कार्यक्षेत्र अलग अलग हैं। उसकी बहन दस मिनट पहले फ्री जाती थी वह उसको वहीं से साथ लेकर घर जाता था। आज उसको देर हो गई थी तभी ये हादसा हो गया। उन लोगों को लगा कि आज साक्षात बप्पा सहायक बन कर उनके घर आयें हैं।
मंदार ने बताया कि वह भी कोई दूध का धुला नहीं है। उसका काम ही ऐसा है कि उसको दारू की लत लग गई है। लेकिन उसने बहन बेटियों को बुरी दृष्टि से कभी नहीं देखा। अगर इस समय वह इसको बचाने की बात कहता तो तिरलोचन ऐसा होने नहीं देता और मरने मारने पर उतारू हो जाता। इसलिए उसको सख़्ती का व्यवहार करना पड़ा। आशा है आप लोग इसे अन्यथा नहीं लेंगे। प्रयास ये करना चाहिए कि बच्चियों को दिन के समय ही काम पर जाना और आना चाहिए। यदि समाज में व्यक्ति ये प्रण कर ले कि लड़कियों कि सुरक्षा का भार उनके कंधों पर भी है तो विश्वास कीजिए कि कोई भी लड़की अभया, निर्भया नहीं बनेगी। इतना कह कर लड़की के सिर पर हाथ रख कर वह बाहर आ गया। ऊपर नीले आकाश में प्रकाश प्रस्फुटित होने लगा था, रात बीत चुकी थी।
कुमकुम श्रीवास्तव
लखनऊ।
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