



(महाशिवरात्रि विशेष आलेख) शिव का विस्तार सृष्टि है, शिव का संकुचन प्रलय है
महा व्रत कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि शिव शक्ति के प्रतीक है। इस व्रत को करने से सब पापों का स्वतः ही नाश हो जाता है। हिंसक प्रवृत्ति बदल जाती है और मनुष्य सद्गुणों की ओर अग्रसर होता है। महाशिवरात्रि के दिन बच्चे, बूढें, महिलाएं तक व्रत रखते हैं। शिवभक्त इस दिन उपवास रखते हैं और शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर जल, बेल-पत्र ,फूल पत्ते, फल, शहद, धतूरा ,दूध आदि चढ़ाते है तथा रात्रि जागरण करते हैं। यदि हम अनुष्ठानों की बात करें तो इस दिन रुद्राभिषेक, रुद्र महायज्ञ, रुद्र अष्टाध्यायी का पाठ, हवन, पूजन तथा बहुत प्रकार का अर्पण-अर्चना आदि शिवभक्तों द्वारा की जाती हैं। कहते हैं कि इस रावण द्वारा रचित शिव पाठ करने से शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते है। एक मान्यता यह भी है कि शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर गन्ने का रस चढाने से धन धान्य की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर ‘शिवलिंग’ पर चढ़ाये जाते है। अगर पास में शिवालय न हो, तो शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिवलिंग बनाकर उसे पूजने का विधान है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने में आती है परंतु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य देव भी इस समय तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा ऋतु परिवर्तन का यह समय अत्यन्त शुभ एवं फलदायी होने के साथ ही मंगलदायक कहा गया है। महाशिवरात्रि पर रुद्राभिषेक का बहुत महत्त्व माना गया है और इस पर्व पर रुद्राभिषेक करने से सभी रोग और दोष समाप्त हो जाते हैं। शिवरात्रि से आशय हैं- वह रात्रि जिसका शिवतत्त्व से घनिष्ठ संबंध है। भगवान शिव की अतिप्रिय रात्रि को ही शिव रात्रि कहा जाता है। शिव पुराण की ईशान संहिता में यह बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए-‘फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामा
भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है। भगवान शिव सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से शिव को भिन्न माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदिस्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। राम, रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है। शिव के कुछ प्रचलित नाम, महाकाल, आदिदेव, किरात, चन्द्रशेखर, जटाधारी, नागनाथ, मृत्युंजय, त्रयम्बक, महेश, विश्वेश, महारुद्र, विषधर, नीलकण्ठ, महाशिव, उमापति, काल भैरव, भूतनाथ आदि। आओ हम सब इस शिवरात्रि को भगवान शिव की पूजा अर्चना करके अपने जीवन को धन्य बनायें। सृष्टि के आदि स्रोत भगवान शिव हमेशा ही कृपा बरसाने वाले,मंगलकारी, विघ्न हर्ता हैं। अंत में यही कहूंगा कि शिव की सत्ता सर्वव्यापी है। प्रत्येक व्यक्ति में आत्म-रूप में शिव का निवास है। कहा भी गया है कि-‘अहं शिवः शिवश्चार्य, त्वं चापि शिव एव हि।सर्व शिवमयं ब्रह्म, शिवात्परं न किञचन।।’ मतलब यह है कि मैं शिव, तू शिव सब कुछ शिव मय है। शिव से परे कुछ भी नहीं है। शिव के बारे में कहा गया है- ‘शिवोदाता, शिवोभोक्ता शिवं सर्वमिदं जगत्। तात्पर्य यह है कि शिव ही दाता हैं, शिव ही भोक्ता हैं। जो दिखाई पड़ रहा है, यह सब शिव ही है। शिव का अर्थ है-जिसे सब चाहते हैं। सब चाहते हैं अखण्ड आनंद को। शिव का अर्थ है आनंद। शिव का अर्थ है-परम मंगल, परम कल्याण। शिव का विस्तार सृष्टि है, शिव का संकुचन प्रलय है। अतः शिव के निर्गुण एवं सगुण दोनों ही स्वरूप स्वीकार्य हैं। सच तो यह है कि सृष्टि का अनादि तत्व शिव है। यही कारण है-सृष्टि, स्थिति एवं प्रलय का। शिव का स्वरूप ज्योतिर्लिंग के रूप में है। इस ज्योतिर्लिंग में ही सब कुछ समाहित है।यह ब्रह्माण्ड शिव का ही साकार स्वरूप है।उसकी निज शक्ति अर्थात् माया का ही पसारा है। शिव एवं शिवा अर्थात् ब्रह्म एवम् उसकी निज शक्ति (प्रकृति) दोनों तदाकार हैं। इसीलिए शिव का एक नाम अर्द्धनारीश्वर भी है।शिव का स्वरूप निराकार एवं साकार दोनों हैं।तो आइए ! हम सब शिव की पूजा-अर्चना से जीवन का कल्याण करें।
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।
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