ऋग्वैदिक वीरांगना विश्पला-डॉ आकांक्षा दीक्षित
BREAKING NEWS EXPRESS
‘स्वामी ! संभवतः अब मैं यह युद्ध किस प्रकार लडूंगी। मेरा पैर कट चुका है। कृपया गुरुवर से परामर्श कीजिए। मैं बिना विजित हुए युद्ध नहीं छोड़ सकती।’
राजा खेल से उनकी पत्नी विश्पला ने कुछ ऐसा ही कहा होगा, जब वे युद्ध के मैदान में अत्यधिक घायल हो गयीं थीं, और उनका एक पैर कट गया था। इस उद्धरण से ये तो स्पष्ट है कि विश्पला एक वीरांगना थीं। किन्तु उनका नाम संभवतः बहुत कम लोगों ने सुना है। विश्पला के माता-पिता कौन थे, ये तो अज्ञात है पर वे ऋग्वैदिक युग की एक सशक्त नारी थी, ये असंदिग्ध है। एक आश्रम में ऋषियों के संरक्षण में विश्पला ने, युद्ध कला में विशेष दक्षता बचपन में ही प्राप्त कर ली थी। विश्पला की नियति उसे अस्तिकानीर राज्य ले गई, जहां विश्पला का विवाह ‘खेलराज’ नामक राजा के साथ हुआ था। यह वर्तमान के गांधार के आसपास का क्षेत्र था। खेलराज पराक्रमी राजा था और विश्पला भी शक्तिशाली योद्धा थी। एक बार शत्रु ने खेलराज के राज्य में आक्रमण कर दिया। दोनों शासकों के बीच महायुद्ध छिड़ गया। खेलराज को युद्ध मैदान में देख विश्पला भी जंग में उतर गई। विश्पला ने ऐसा युद्द किया जैसे स्वयं चामुंडा देवी धरती में शत्रुओं का विनाश कर रही हैं। अचानक विश्पला पर आक्रमण हुआ और उनका एक पैर कट गया। फिर भी उस साहसी रानी ने हार नहीं मानी। ऋग्वेद के अनुसार अगस्त्य ऋषि राजा खेल के गुरु थे। उन्होंने अश्विनी कुमारों का आवाहन किया। अश्विनी कुमारों ने उसे लोहे का बना पैर दिया। यह विश्व इतिहास में कृत्रिम अंगारोपण (प्रोस्थेसिस / prosthesis) की अवधारणा का सबसे पहला संदर्भ है।
‘चरित्रं हि वेरिवाच्छेदि पर्णमाजा खेलस्य परितक्म्यायाम् ।
सद्यो जङ्घामायसीं विश्पलायै धने हिते सर्तवे प्रत्यधत्तम् ॥’
इसका अर्थ ये है कि : जिस प्रकार कोई पक्षी आकाश से गिरता है, उसी प्रकार राजा खेल की पत्नी विश्पला का पैर टूट गया था। उस स्थिति में, अश्विनीकुमारों ने ही एक ही रात में चिकित्सा करके उसे लोहे का पैर लगा दिया था। उसके बाद वह युद्ध के लिये फिर सज्जित हो गयी थी। ये कहानी कुछ प्रश्न सामने लाती है और उनके उत्तर भी। हजारों वर्ष पूर्व जब कि कहा जाता है, कि मानव गुफाओं में रहता था और धातु के प्रयोग से परिचित नहीं था, उस समय की यह कहानी यह स्पष्ट करती है कि अभी भी हम अपना इतिहास ठीक प्रकार से नहीं जानते हैं। युद्ध में हथियारों का प्रयोग बताता है, कि ना केवल हम धातुओं से, बल्कि धातुओं के अनुप्रयोग से भी परिचित थे। अश्विनी कुमारों को देवता ना भी मानें, तो वे वैद्य या चिकित्सक तो थे ही। जो अंग प्रत्यारोपण या कृत्रिम अंग जैसी तकनीक के भली-भांति विज्ञ थे। वर्तमान में प्रोस्थेटिक लेग का अविष्कार अठ्ठारवीं शताब्दी का माना जाता है। ईसा से भी दो-ढाई हजार वर्ष पूर्व ऐसा उल्लेख आश्चर्यचकित भी करता है, और सोचने पर विवश कर देता है कि हमारा इतिहास क्या हम ठीक से जानते भी हैं ? भारत की भूमि वीरों से कभी रिक्त नहीं रही। विश्पला का ये आख्यान सिद्ध करता है कि स्त्री भारतीय समाज में कभी निर्बल नहीं रही। मानसिक और शारीरिक रुप से समर्थ स्त्रियां सदैव परिवार का संबल रहीं। वे अपने परिवार और समाज के लिए समर्पित तो थी ही, आवश्यकता होने पर वे युद्धक्षेत्र में भी अपना कौशल दिखाती रही हैं। विश्पला की कहानी ये भी बताती है कि मानसिक रुप से मजबूती ही युद्ध जीतने में सहायक होती है। हमारे इन पूर्वजों की कथाएं सभी को अवश्य पता होनी चाहियें, जिससे अपनी भारतीयता के प्रति कभी भी हीनभाव ना आए। अपने इतिहास को समझ कर और उसपर गर्व करके ही वर्तमान और भविष्य को सुन्दर बनाया जा सकता है। ये ज्ञात होना आवश्यक है कि जब शेष विश्व के लोगों के पास भाषा ही नहीं थी, सभ्यता भी नहीं थी, तब उस काल में भारत के ऋषि-मुनि और विद्वान, ज्ञानचर्चा और आध्यात्मिक उन्नति में लगे थे। हमारे ग्रंथ, वेद, पुराण, उपनिषद काल्पनिक, मिथक और माइथॉलजी नहीं हैं। ये हमारा इतिहास हैं और रानी विश्पला जैसी वीरांगनाएं हम सबकी प्रेरणास्रोत हैं।