–विश्वनाथ सिंह राघव (BREAKING NEWS EXPRESS )
महाराजा छत्रसाल के पुत्र मोहन सिंह के द्वारा बसाये नगर श्रीनगर में अनेक परंपराए लोक रीतियां प्रचलित है, उनमें से एक बड़ी ही अद्भुद और हृदय को आनंदित करने वाली परंपरा है,बिहारी जू का जल विहार। लोगो का मानना है यह प्रथा बहुत ही प्राचीन है, यह एक ऐसी परंपरा है जिसे लोग पूरे वर्ष इसके आने की प्रतीक्षा करते हैं, श्रीनगर बस्ती के मध्य बिहारी जू का मंदिर बना है, जिसमे भगवान कृष्ण राधा रानी के साथ विराजते हैं, लेकिन लोग इन्हें बड़े आदर और प्रेम के साथ बिहारी जू के नाम से पुकारते हैं, बिहारी जू का जुगल रूप भी बड़ा मन मोहक है, वैसे तो भगवान कृष्ण के ज्यादातर विग्रह बिना मूछ के देखने को मिलते हैं, पर इनकी तो लीला ही कुछ अलग है, यह तो मूंछों वाले बिहारी जू है, जैसे ही वर्षा ऋतु अपने अंतिम पड़ाव में होती है, भादो का महीना लगता है, और इसी भादौ के महीने में बिहारी जू के विहार की तैयारी होने लगती है,
अनंत चतुर्दशी के दिन सायंकालीन आरती के बाद लगभग रात्रि के 9 बजे बिहारी जू अपने मंदिर को छोड़ अपने भक्तो को दर्शन देने विहार के लिए निकल पड़ते हैं, नगर के लोग उनके सुंदर सिंहासन को सजाते है, और उसी विशाल पालकी नुमा सिंहासन को लेकर निकल पड़ते हैं, आगे ढोल नगाड़े बजते हैं, पीछे लोग कीर्तन करते चल रहे हैं, लोग अपने घरों के बाहर आरती की थाल सजाए खड़े है, महिलाए बच्चे सब उत्साहित रहते हैं, जय-जय करो की गूंज ही चारो तरफ सुनाई देती हैं, सबसे पहले बिहारी जू नगर के बाहर कोतवाली में रुकते है वहा की हाल खबर लेते हैं, ऐसा माना जाता है की जेल ही उनकी जन्म स्थली रही इसलिए पहले वह कोतवाली ही जाते है, बस कुछ ही देर बाद फिर वहा से चलते हैं और पहुंचते हैं दाऊ तालाब, वहा पहुंचकर बिहारी जू जल विहार करते हैं, जल स्नान कर वस्त्र बदलकर , बिहारी जू फिर नगर के अंदर की ओर रुख करते हैं, और जो भी नगरवासी उन्हे रोक लेता उसी के आवास पर विश्राम करते,उस रात पूरी विश्राम करते, दूसरे दिन शाम के समय वह व्यक्ति अपने प्रियजनों, मित्रो, कुटुंब के लोगो का भोज करता , संध्या के समय आरती होती फिर भोज सुरु होता, बड़ी अद्भुद लीला लोगो का उत्साह देखते बनता, यह भी नगरवासियों के मेल मिलाप का एक अच्छा अवसर होता, बच्चो का उत्साह देखते ही बनता , जिस मुहल्ले में बिहारी जी रुकते उस मुहल्ले की अलग ही रौनक देखने को मिलती, शाम से ही चहल पहल बढ़ जाती, भोज की तयारी सुरु होती है , कोई आटा मांड रहा, कई लोग सब्जी काटने में लगे , महिलाए पूडिया बेल रही , बच्चे डलियो में कच्ची पूड़िया लिए ढो रहे, मुहल्ले के अनुभवी पुरुष पुड़िया तलने को बैठते, कद्दू की सब्जी , मिठाई में बूंदी , या किसी सज्जन के यह रसगुल्ला आदि व्यंजन यथाशक्ति बनते, पूरे मुहल्ले में भोजन की भीनी भीनी खुशबू फैल जाती, शाम में पंगत लगती सबसे ज्यादा उत्साह बच्चो को रहता कितनी जल्दी पंगत सुरु हो खाने को मिले, बच्चे पंगत में बाल्टी लिए दौड़ दौड़ कर परोसते, ज्यादातर पहले पलाश के पत्ते से बने पत्तल या पुरैन के पत्ते भोजन का स्वाद बढ़ा देते थे, अब प्लास्टिक के पत्तल का जमाना है अब कही पत्तल दिखाई देते, भोज समाप्ति के बाद बिहारी जू के सामने भजन कीर्तन भी लोग करते, और बिहारी जू फिर किसी अन्य भक्त के यहां दर्शन देने चल पड़ते, इनकी एक बड़ी विशेषता है, यह अपने पहले से तय रास्ते पर ही चलते , ऐसा नही की कभी कोई बुला ले उसी रास्ते में चलते जिसने रोक लिया वही रुक गए, कई बार ऐसा भी हुआ किसी भक्त के यहां जबरिया भी रुक गए, किवदंती है, एक भक्त के यहा से निकल रहे थे , पालकी में इतना वजन हो गया पालकी वालो के कंधे दुखने लगे उन्होंने सिंहासन रोका आराम करने को , अब बिहारी जू उठे नही कई लोगो ने मिलकर उठाने का प्रयास किया, पर बिहारी जू तो उठने वाले ही नही थे, जिस व्यक्ति के दरवाजे रुके थे, उसकी स्थिति दयनीय थी, वह मन से तो बिहारी जू को रोकना चाहता था पर, आर्थिक स्थिति गड़बड़ होने के वजह से कैसे रोक , बिहारी जू तो सबके मन की जानने वाले , उठे ही नही, लोगो ने कहा भैया बिहारी जू तो तुम्हारे दरवाजे से जाने का नाम ही न ले रहे,अमुक व्यक्ति ने भी इच्छा न होते हुए भी कहा ठीक है भईया जब वे जाना ही नही चाहते तब यही ठीक है, अब उसकी चिंता यह थी की शाम के भोज की व्यवस्था कैसे करे दोनो दंपत्ति इस चिंता में डूबे थे, पर बिहारी जू तो अटके थे जायेंगे तो खाकर ही, दोनो ने बिहारी जू से ही पार्थना की, उनकी ऐसी कृपा हुई लोग खुद ब खुद आकर उनकी व्यवस्था देखने लगे। बिहारी जू समरसता के भी प्रतीक है, कोई रोके कही भी रुक जाते कही कोई जाती भेद भाव नही, कई बार पूरे मोहल्ले के लोग मिलकर उनको रोकते, बिहारी जू लोगो की बरात भी करते, साथ जाते ,एक बार बरात में ध्यान न दिया गया यह पसीने से लथपथ, इस तरह अनेक लिलाए उनकी लोगो मे प्रचलित है, इस तरह नगर में घूमते हुए, कई बार दो सप्ताह कई बार पूरा महीना लोगो को दर्शन देते, हुए अपने मंदिर की ओर प्रस्थान कर जाते।