
सोशल मीडिया की रंगीन दुनिया से आकर्षित हो रहे बच्चे
सोशल मीडिया के प्रति बेलगाम आकर्षण ने आधुनिक जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया है। हमारे समाज का हर वर्ग, विशेषकर नई पीढ़ी, इसकी चमक-दमक और आकर्षण का शिकार हो रही है। बचपन, खेलने, सीखने और सुखद यादें बनाने का समय, आज के सोशल मीडिया के युग में खोता जा रहा है। आजकल बच्चे अपने कमरे के एक कोने में कैद होकर अपने मोबाइल फोन या टैबलेट की स्क्रीन से चिपके रहते हैं।
सोशल मीडिया अपनी आकर्षक और रंगीन दुनिया से बच्चों को आकर्षित कर रहा है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट जैसे प्लेटफॉर्म ने बच्चों को एक ऐसी दुनिया से जुड़ने के लिए उत्सुक बना दिया है, जहां वे वास्तविकता से बहुत दूर एक काल्पनिक जीवन जी रहे हैं। विभिन्न फोटो, वीडियो और अन्य सामग्री के चलन ने बच्चों के मन में आत्म-तुलना की आदत पैदा कर दी है। यह तुलना अक्सर मनोबल को कम करती है और मानसिक तनाव का कारण बनती है। सोशल मीडिया के अत्यधिक प्रभाव के कारण बच्चे खेलों में भाग नहीं लेते हैं।
गुल्ली-डंडा, पायथू और लुका-छिपी जैसे पुराने खेल, जो न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि बच्चों के सामाजिक, बौद्धिक और भावनात्मक विकास में भी योगदान देते थे, अब पूरी तरह लुप्त हो चुके हैं। इससे बच्चों की शारीरिक गतिविधियां कम हो रही हैं, जिससे मोटापा और अन्य बीमारियां बढ़ रही हैं। सोशल मीडिया का बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। वास्तविक और आभासी दुनिया के बीच का अंतर बच्चों को मनोवैज्ञानिक स्तर पर अस्थिर बना रहा है।
वे अक्सर स्वयं की तुलना अन्य लोगों के जीवन से करते हैं, जिसके कारण उनमें हीनता और अवसाद की भावना उत्पन्न होती है। बच्चों द्वारा सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग ने पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों को भी प्रभावित किया है। परिवार के साथ बातचीत करने और एक साथ समय बिताने के बजाय, बच्चे स्क्रीन के सामने अधिक समय बिता रहे हैं। सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग के कारण बच्चों का पढ़ाई पर ध्यान भी कम हो रहा है। अभ्यास के समय के अलावा, वे स्क्रीन पर भी समय बर्बाद करते हैं, जिससे उनका शैक्षणिक प्रदर्शन भी प्रभावित होता है।
नए रुझानों और चुनौतियों का सामना करने की दौड़ में बच्चे शिक्षा और प्रशिक्षण के महत्व को भूल रहे हैं। इस समस्या के समाधान के लिए माता-पिता, शिक्षकों और समाज के हर पहलू को संयम के साथ अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। माता-पिता को अपने बच्चों का स्क्रीन देखने का समय सीमित करना चाहिए तथा उन्हें बाहरी गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
प्रौद्योगिकी का उपयोग सकारात्मक तरीके से किया जाना चाहिए, ताकि बच्चे अपनी पढ़ाई और शारीरिक विकास पर ध्यान केंद्रित कर सकें। सोशल मीडिया की आभासी दुनिया ने बचपन को जंजीरों में जकड़ दिया है, लेकिन इसकी सुरक्षा करना हमारे हाथ में है। अभिभावकों, शिक्षकों और समुदाय के प्रतिनिधियों को मिलकर काम करना होगा ताकि बच्चों के बचपन को सोशल मीडिया की गुलामी से बचाया जा सके। यह पूरी तरह से हमारे कौशल और संयम पर निर्भर करता है कि हम आने वाली पीढ़ी को कैसे उज्ज्वल भविष्य दे सकते हैं।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार मलोट पंजाब
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