
सिमटता पाठ, सिकुड़ते दायरे- विजय गर्ग
आज का युग सूचना और तकनीक का युग है, जहां ज्ञान की पहुंच पहले से कहीं अधिक आसान हो गई है। फिर भी, विडंबना यह है कि समाज में पढ़ने की आदत में लगातार कमी देखी जा रही है। किताबें, जो कभी ज्ञान, प्रेरणा और मनोरंजन का प्रमुख स्रोत थीं, अब धीरे-धीरे डिजिटल स्क्रीन और त्वरित सामग्री के सामने अपनी प्रासंगिकता खोती जा रही हैं।
एक सर्वेक्षण के अनुसार, अमेरिका में केवल 43 फीसद वयस्कों ने पिछले वर्ष में कम से कम एक उपन्यास, कविता संग्रह या नाटक पढ़ा, जो 1980 के दशक की तुलना में काफी कम है। भारत में भी, नेशनल बुक ट्रस्ट के 2020 के एक अध्ययन ने संकेत दिया कि केवल 24 फीसद युवा नियमित रूप से गैर शैक्षणिक किताबें पढ़ते हैं। यह चिंताजनक है, क्योंकि पढ़ना न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है, बल्कि समाज की बौद्धिक और सांस्कृतिक प्रगति के लिए भी आवश्यक है।
दरअसल, स्मार्टफोन, सोशल मीडिया और स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म’ ने लोगों का ध्यान किताबों से हटाकर त्वरित और दृश्य- आधारित सामग्री की ओर मोड़ दिया है। एक औसत व्यक्ति दिन में लगभग ढाई घंटे सोशल मीडिया पर बिताता है, जैसा कि स्टेटिस्टा (2023) के एक अध्ययन में बताया गया है। जबकि पढ़ने के लिए समय निकालना दुर्लभ हो गया है। सोशल मीडिया और वीडियो मंचों जैसे इंस्टाग्राम और यूट्यूब छोटी, आकर्षक सामग्री प्रदान करते हैं, जो गहन पढ़ने की तुलना में कम मानसिक प्रयास मांगती है। यह त्वरित संतुष्टि का युग पढ़ने जैसे धीमे और विचारशील कार्य को किनारे कर रहा है। शैक्षिक प्रणाली में भी पढ़ने को प्रोत्साहित करने में कमी देखी जा रही है। स्कूलों में पाठ्यपुस्तकों पर ध्यान केंद्रित रहता है और साहित्यिक या रचनात्मक पढ़ने को अक्सर उपेक्षित किया जाता है।
जीवनशैली का असर
आधुनिक जीवनशैली भी पढ़ने की आदत को प्रभावित कर रही है। तेजी से भागती जिंदगी, लंबे काम के घंटे और बढ़ती जिम्मेदारियां लोगों को पढ़ने के लिए समय निकालने से रोकती हैं। शहरी क्षेत्रों में, जहां लोग सुबह से शाम तक व्यस्त रहते हैं, पढ़ना एक विलासिता जैसा प्रतीत होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में, शिक्षा और किताबों तक पहुंच की कमी एक बड़ी बाधा है। पहले परिवारों में बच्चों को कहानियां सुनाने और किताबें पढ़ने की परंपरा थी, लेकिन अब टेलीविजन और स्मार्टफोन ने इस परंपरा को लगभग समाप्त कर दिया है। रिसर्च सेंटर (2021) के एक अध्ययन के अनुसार, केवल 26 फीसद माता-पिता बच्चों को नियमित रूप से किताबें पढ़कर सुनाते हैं, जो 1990 के दशक की तुलना में आधा है।
अध्ययन का विस्तार
पढ़ने की आदत में कमी के प्रभाव समाज पर दूरगामी हैं। पढ़ना न केवल भाषा और संचार कौशल को बेहतर बनाता है, बल्कि यह सहानुभूति, आलोचनात्मक सोच और रचनात्मकता को भी विकसित करता है। जब लोग कम पढ़ते हैं, तो उनकी शब्दावली सीमित होती है और विचारों को व्यक्त करने की क्षमता कमजोर पड़ती है। एक अध्ययन के मुताबिक, जो बच्चे नियमित रूप से किताबें पढ़ते हैं, उनकी संज्ञानात्मक क्षमता 20 फीसद अधिक होती है। पढ़ने की कमी से समाज में बौद्धिक गहराई और सांस्कृतिक समझ में कमी आ रही है। लोग सोशल मीडिया पर उपलब्ध सतही जानकारी पर निर्भर हो रहे हैं, जिससे गलत सूचना और ध्रुवीकरण बढ़ रहा है। विश्व बैंक (2023) की एक रपट के अनुसार, कम पढ़ने की आदत वाले समाजों में नवाचार और आर्थिक प्रगति की दर भी प्रभावित होती है, क्योंकि पढ़ना समस्या के समाधान और रचनात्मक सोच को बढ़ावा देता है। इसके अलावा, पढ़ना तनाव को कम करता है और मन को शांत करता है, लेकिन डिजिटल स्क्रीन पर अत्यधिक समय बिताने से चिंता और अवसाद बढ़ रहे हैं।
सबसे पहले, शैक्षिक प्रणाली में सुधार जरूरी है। स्कूलों को पाठ्यक्रम में साहित्यिक और रचनात्मक पुस्तकों को शामिल करना चाहिए। शिक्षकों को बच्चों में पढ़ने के प्रति उत्साह जगाने के लिए कहानी सत्र, पुस्तक क्लब और लेखक मुलाकात जैसे कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए। भारत में, जहां 65 फीसद स्कूलों में पुस्तकालय की सुविधा अपर्याप्त है (एएसईआर2022), सरकार को पुस्तकालयों के विकास और किताबों की उपलब्धता पर निवेश करना चाहिए। दूसरा, परिवारों को बच्चों में पढ़ने की आदत डालने के लिए प्रेरित करना होगा। माता-पिता को बच्चों के साथ किताबें पढ़ने और उनके लिए प्रेरणादायक कहानियां सुनाने का समय निकालना चाहिए। यह न केवल बच्चों में पढ़ने की रुचि बढ़ाएगा, बल्कि परिवार के बीच जुड़ाव को भी मजबूत करेगा। तीसरा, सामुदायिक स्तर पर पुस्तकालयों, पुस्तक मेला और साहित्यिक उत्सवों को बढ़ावा देना चाहिए।
बचा रहे पाठ
पढ़ने की आदत को बढ़ावा देने के लिए तकनीक का भी उपयोग किया जा सकता है। ई-बुक और आडियोबुक ने पढ़ने को अधिक सुलभ और आकर्षक बनाया है। कुछ आनलाइन मंच ने 2023 में भारत में 30 फीसद की वृद्धि दर्ज की, जो दर्शाता है कि लोग डिजिटल पाठ की ओर आकर्षित हो रहे हैं। सोशल मीडिया का उपयोग भी सकारात्मक तरीके से किया जा सकता है किताबों की समीक्षा के चैनल और आनलाइन पाठक समुदाय बनाकर। लेखकों और प्रकाशकों को विविध और रोचक सामग्री प्रदान करने की आवश्यकता है। भारत में, जहां क्षेत्रीय भाषाओं में किताबों की कमी है, ऐसे में स्थानीय भाषाओं में साहित्य को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है।
पढ़ने की आदत में कमी एक ऐसी चुनौती है, जिसका सामना केवल सामूहिक प्रयासों से किया जा सकता है। यह न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए, बल्कि समाज की बौद्धिक और सांस्कृतिक समृद्धि के लिए भी आवश्यक है। किताबें हमें नई दुनिया से जोड़ती हैं, हमारे दृष्टिकोण को व्यापक बनाती है और हमें बेहतर इंसान बनने के लिए प्रेरित करती हैं। अगर हम पढ़ने की आदत को मजबूत कर सकें, तो हम एक अधिक जागरूक, रचनात्मक और सहानुभूतिपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब
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