सोचिए, आप किसे फॉलो कर रहे हैं
लोकप्रियता नहीं, आदर्श ही जीवन की दिशा तय करते हैं
फॉलो करना केवल सोशल मीडिया पर बटन दबाना नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन की दिशा तय करता है। करोड़ों लोग किसी को फॉलो करें, इसका अर्थ यह नहीं कि वह सच्चा आदर्श है। पान–गुटखा बेचने वाला खुद गुटखा नहीं खाता, यही दिखावे और सच्चाई का अंतर है। असली प्रेरणा हमें शहीदों, महापुरुषों और भारतीय संस्कृति से लेनी चाहिए, क्योंकि वही हमारे जीवन को सार्थक बनाते हैं। सोच–समझकर फॉलो कीजिए, क्योंकि आपका चयन ही आने वाली पीढ़ियों का रास्ता तय करेगा।
डॉ सत्यवान सौरभआज का युग सोशल मीडिया का युग है। यहाँ हर व्यक्ति कहीं न कहीं किसी का फॉलोवर है और किसी न किसी का आदर्श चुनता है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यही है कि आखिर हम किसे फॉलो कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं। करोड़ों फॉलोअर्स वाले लोग अक्सर केवल एक या दो को ही फॉलो करते हैं। यह संकेत देता है कि असली प्रेरणा संख्याओं से नहीं बल्कि चयन से आती है। जैसे पान–गुटखा बेचने वाला व्यक्ति विज्ञापन में लाखों लोगों को खाने की प्रेरणा देता है, लेकिन खुद उस ज़हर को नहीं छूता। इसका अर्थ यही है कि जो सामने दिख रहा है, वही सच्चाई नहीं होता। जो हमें प्रेरणा देने का दावा करते हैं, उनके जीवन में वही मूल्य हों, यह ज़रूरी नहीं।
हमारे समाज में फॉलो करने की संस्कृति नई नहीं है। पहले के समय में लोग गुरुओं को, विचारधारा को या अपने आदर्श नायकों को फॉलो करते थे। परन्तु तब यह चयन गहरी समझ और अनुभव के आधार पर होता था। आज की डिजिटल दुनिया में यह चयन अक्सर केवल बाहरी चमक–दमक, लोकप्रियता, दिखावटी लाइफ़स्टाइल और आकर्षण पर आधारित हो गया है। लाखों की भीड़ किसी व्यक्ति को फॉलो करती है, लेकिन यह नहीं सोचती कि वह व्यक्ति वास्तव में समाज को क्या दे रहा है। क्या उसका जीवन दूसरों के लिए उदाहरण है, या केवल मनोरंजन और व्यर्थ का समय खर्च करने का साधन। यही सबसे बड़ा प्रश्न है जिस पर हर व्यक्ति को विचार करना चाहिए।
हमारे शहीदों और महापुरुषों ने कभी भी लोकप्रियता के लिए त्याग नहीं किया। भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खाँ जैसे वीरों ने अपने जीवन का हर क्षण देश के लिए समर्पित किया। उन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि उन्हें कितने लोग फॉलो कर रहे हैं, बल्कि उनका ध्यान केवल इस पर था कि उनकी प्रेरणा से कितने लोग सही मार्ग पर चलें। उनके आदर्श ही असली प्रेरणा हैं जिन्हें हमें फॉलो करना चाहिए।
आज सोशल मीडिया पर सितारे अपनी फिल्मों, फैशन या जीवनशैली से करोड़ों फॉलोवर बटोरते हैं। मगर क्या उनकी चमक हमारे जीवन की अंधेरियों को मिटा सकती है? क्या उनकी जीवनशैली को फॉलो करना हमारे लिए व्यावहारिक है? क्या उनका दिखाया गया रास्ता हमारे भविष्य को सुरक्षित कर सकता है? शायद नहीं। क्योंकि जो व्यक्ति अपने जीवन में आराम, विलासिता और दिखावे को ही सर्वोपरि मानता है, वह आम आदमी के संघर्षों को कभी समझ ही नहीं सकता। उनके संदेश हमारे जीवन को दिशा नहीं दे सकते, केवल मनोरंजन भर कर सकते हैं।
इसके उलट हमारी संस्कृति हजारों वर्षों से हमें सिखाती रही है कि असली आदर्श वही है जो हमारे जीवन को उपयोगी दिशा दे। गीता का संदेश केवल युद्धभूमि तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन के हर संघर्ष में हमें प्रेरणा देता है। उपनिषद हमें ज्ञान की ओर ले जाते हैं, विवेकानंद हमें आत्मविश्वास देते हैं, गांधी हमें सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाते हैं, डॉ. भीमराव अंबेडकर हमें समानता और अधिकारों का बोध कराते हैं। यह सभी व्यक्तित्व ऐसे हैं जिनका अनुसरण करना न केवल हमारे लिए बल्कि पूरे समाज के लिए लाभकारी है।
सोचने की बात यह है कि हम किसे अपना नायक बना रहे हैं। एक फर्जी लाइफ़स्टाइल दिखाने वाला सेलिब्रिटी या अपने प्राण न्यौछावर कर देने वाला शहीद? वह व्यक्ति जो केवल मनोरंजन करता है या वह महापुरुष जो हमारी आत्मा को झकझोरता है और हमें कर्मठ, साहसी और जागरूक बनाता है।
फॉलो करना केवल बटन दबाने का नाम नहीं है। फॉलो करना मतलब है किसी की सोच, उसके विचारों और उसके जीवन को अपने जीवन का हिस्सा बनाना। अगर हम किसी ऐसे व्यक्ति को फॉलो करते हैं जिसकी जीवनशैली खोखली है, तो हम भी धीरे-धीरे उसी खोखलेपन का हिस्सा बन जाते हैं। लेकिन अगर हम किसी महान व्यक्तित्व को फॉलो करते हैं, तो हमारे जीवन में भी उनकी महानता की झलक दिखाई देने लगती है।
आज के समय में युवाओं के लिए यह सबसे बड़ा चैलेंज है कि वे किसे अपना आदर्श मानें। दुनिया दिखावे की ओर भाग रही है, परन्तु हमें यह तय करना है कि हम दिखावे के पीछे भागेंगे या असली मूल्यों को अपनाएँगे। हमें यह समझना होगा कि असली स्टार वही है जो हमारे अंधेरों में रोशनी लेकर आए, न कि वह जो केवल चमकते मंच पर रोशनी में दिखे।
जब हम भारतीय शहीदों और संस्कृति को फॉलो करते हैं, तो हम न केवल अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं, बल्कि भविष्य को भी सुरक्षित बनाते हैं। संस्कृति हमें सिखाती है कि जीवन का लक्ष्य केवल भोग नहीं बल्कि त्याग और सेवा है। शहीद हमें सिखाते हैं कि राष्ट्रहित से बड़ा कोई धर्म नहीं। इनसे प्रेरणा लेने का अर्थ है अपने जीवन को सार्थक दिशा देना।
याद रखिए, भीड़ हमेशा सही दिशा में नहीं जाती। कभी-कभी भीड़ अंधेरे में भी दौड़ती है। समझदार वही है जो सोचकर तय करे कि उसे किस दिशा में जाना है। अगर करोड़ों लोग किसी को फॉलो कर रहे हैं, तो इसका अर्थ यह नहीं कि वह व्यक्ति महान है। महान वही है जो बिना फॉलोवर के भी अपने जीवन से दूसरों को प्रेरणा देता है।
इसलिए आज आवश्यकता है कि हम अपने चयन पर गंभीरता से विचार करें। किसी को फॉलो करने से पहले यह प्रश्न अवश्य पूछें कि क्या यह व्यक्ति मेरे जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकता है? क्या इसकी प्रेरणा मेरे समाज और देश के लिए उपयोगी है? क्या इसकी दिशा मुझे आगे बढ़ने में मदद करेगी? अगर उत्तर हाँ है, तो निःसंकोच उसे फॉलो करें। और यदि उत्तर नहीं है, तो भले ही उसके लाखों–करोड़ों फॉलोवर हों, हमें साहसपूर्वक उसे अनदेखा करना चाहिए।
फॉलो करना केवल व्यक्तिगत चयन नहीं है, यह समाज की दिशा भी तय करता है। यदि एक पीढ़ी गलत आदर्शों को फॉलो करेगी तो उसकी आने वाली पीढ़ियाँ भी उसी दिशा में भटकेंगी। और यदि एक पीढ़ी शहीदों और संस्कृति को फॉलो करेगी, तो आने वाली पीढ़ियाँ भी उन्हीं मूल्यों से प्रेरित होंगी। यही वह शक्ति है जो राष्ट्र को मज़बूत बनाती है।
अंत में यही कहना उचित होगा कि जीवन में आदर्श चुनते समय आँखें बंद नहीं करनी चाहिए। पान–गुटखा बेचने वाला खुद गुटखा नहीं खाता, यह सच हमें चेताता है कि दिखावे और वास्तविकता में बड़ा अंतर होता है। सोशल मीडिया पर चमकते चेहरे हमेशा सच्चाई नहीं होते। असली सच्चाई हमारे शहीदों के बलिदान में, हमारी संस्कृति की गहराई में और हमारे महापुरुषों की शिक्षाओं में है।
तो सोचिए, आप किसे फॉलो कर रहे हैं। क्योंकि आपका चयन ही आपके जीवन की दिशा तय करता है। भीड़ का हिस्सा बनने से बेहतर है कि सही रास्ते का यात्री बनें। और सही रास्ता वही है जो हमारे भारतीय शहीदों, संस्कृति और महान परंपरा की ओर ले जाता है।