
समस्या बढ़ाती सुंदर दिखने की चाहत — डॉ विजय गर्ग
आज की दुनिया में “सुंदर दिखना” सिर्फ एक विकल्प नहीं रहा, बल्कि मानो एक दबाव बन गया है। सोशल मीडिया के फ़िल्टर, ग्लैमर इंडस्ट्री के मानक, और समाज की अवास्तविक अपेक्षाएँ—इन सबने मिलकर सौंदर्य को एक प्रतिस्पर्धा में बदल दिया है। परिणाम? सुंदर दिखने की चाहत अब कई बड़ी समस्याएँ पैदा कर रही है—मन में, शरीर में, और पूरे समाज में।
1. सौंदर्य का बदलता अर्थ
कभी सौंदर्य का मतलब था स्वाभाविकता, सरलता और व्यक्तित्व।
अब सौंदर्य मापा जाने लगा है:
गोरे रंग से
पतली कमर से
तीखे नैन-नक्श से
मेकअप और फ़िल्टर से
फोटोशूट जैसी लाइफस्टाइल से
इस नकली “परफेक्शन” की दौड़ ने युवाओं में खतरनाक मानसिक दबाव पैदा किया है।
2. सामाजिक दबाव और तुलना का ज़हर
(1) सोशल मीडिया का प्रभाव
इंस्टाग्राम, स्नैपचैट और रील्स ने चेहरों को इतना बदला है कि लोग अपने असली रूप को ही कमतर समझने लगे हैं।
हर फोटो में “परफेक्ट” दिखने के दबाव ने तुलना को बढ़ाया और आत्मविश्वास को कम किया।
(2) समाज की टिप्पणियाँ
“इतने दुबले क्यों हो?”
“गोरी होती तो और सुंदर लगती।”
“थोड़ा मेकअप कर लिया करो।”
ऐसी बातें धीरे-धीरे कॉम्प्लेक्स बना देती हैं।
3. जब सुंदर दिखने की चाहत शरीर को नुकसान पहुँचाती है
(1) कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स का अत्यधिक उपयोग
क्रीम, सीरम, त्वचा गोरी करने वाले प्रोडक्ट्स, केमिकल ट्रीटमेंट—
इनमें मौजूद स्टेरॉयड, हाइड्रोक्विनोन, मेलाक्विन जैसे तत्व त्वचा को स्थायी रूप से खराब कर सकते हैं।
(2) वजन घटाने की गलत दौड़
कई युवा
पाउडर शेक
फैट बर्नर
बिना सलाह जिम
का सहारा लेते हैं।
यह हार्मोन असंतुलन, कमजोरी, एनीमिया और मानसिक थकावट का कारण बनता है।
(3) कॉस्मेटिक सर्जरी का बढ़ता चलन
नाक, होंठ, बोटॉक्स, fillers —
इनसे तुरंत सुंदर दिखना संभव है, लेकिन इनके खतरे भी उतने ही गंभीर हैं।
कई युवतियाँ सर्जरी एडिक्शन तक पहुँच जाती हैं।
4. मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर
(1) शरीर के प्रति असंतोष
युवाओं में यह समस्या तेजी से बढ़ रही है।
वे अपने असली रूप को स्वीकार ही नहीं कर पाते।
(2) चिंता और अवसाद
सुंदर दिखने की मजबूरी से
जैसी समस्याएँ बढ़ती हैं।
(3) आत्म-सम्मान का गिरना
व्यक्ति का आत्मविश्वास अब उसके “चेहरे” और “फोटो” पर निर्भर होने लगा है, न कि उसके गुणों पर।
यह बहुत खतरनाक बदलाव है।
5. समाज में बढ़ती भेदभाव की प्रवृत्ति
सौंदर्य का यह झूठा पैमाना
नौकरी
रिश्ते
स्कूल
हर क्षेत्र में पक्षपात को जन्म दे रहा है।
गौरवर्ण और पतले शरीर को श्रेष्ठता का प्रतीक बना देना एक सामाजिक अन्याय है।
6. समाधान: सुंदरता नहीं, स्वास्थ्य और आत्म-सम्मान पर ध्यान
(1) प्राकृतिक सुंदरता का मूल्य समझें
सुंदरता चेहरे से नहीं, आत्मविश्वास और स्वभाव से आती है।
(2) शरीर को स्वीकारना सीखें
हर शरीर अलग है—और यही उसकी खूबसूरती है।
(3) सोशल मीडिया की तुलना से दूर रहें
Filter की दुनिया नकली है; वास्तविक दुनिया में पूर्णता नहीं होती।
(4) कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स में सावधानी
डॉक्टर की सलाह के बिना किसी भी “गोरी करने की क्रीम” या सर्जरी का पीछा न करें।
(5) स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें
संतुलित आहार, नियमित नींद, व्यायाम और पानी—
ये आपको सच में बेहतर बनाते हैं।
क्यों बढ़ रही है यह चाहत?
सोशल मीडिया का प्रभाव: इंस्टाग्राम, फेसबुक और अन्य प्लेटफॉर्म पर फ़िल्टर और परफेक्ट तस्वीरें एक अवास्तविक दुनिया पेश करती हैं। लोग अपनी तुलना इन आदर्श ) छवियों से करने लगते हैं, जिससे उनमें हीन भावना पैदा होती है।
सौंदर्य उद्योग का दबाव: एंटी-एजिंग प्रोडक्ट्स, कॉस्मेटिक सर्जरी और तमाम ब्यूटी ट्रीटमेंट्स का बाज़ार खरबों रुपये का हो चुका है। कंपनियां लगातार यह संदेश देती हैं कि आप वैसे ही सुंदर नहीं हैं जैसा आपको होना चाहिए, और उनकी मदद से ही यह संभव है।
सांस्कृतिक मानदंड ): कई समाजों में, खासकर महिलाओं के लिए, सुंदर दिखना सफलता और स्वीकार्यता का पैमाना बन गया है। सुंदरता को अक्सर उनके वास्तविक गुणों और क्षमताओं से ऊपर रखा जाता है।
समस्या के मुख्य पहलू
सुंदर दिखने की अत्यधिक चाहत कई गंभीर समस्याओं को जन्म दे रही है:
1. शारीरिक स्वास्थ्य पर खतरा
खतरनाक ब्यूटी ट्रीटमेंट्स: चिर-यौवन की चाहत में लोग बोटॉक्स, ग्लूटाथियोन इंजेक्शन और अन्य महंगी व संभावित रूप से घातक प्रक्रियाओं का सहारा लेते हैं। कई मामलों में इन केमिकल्स के दुष्प्रभाव जानलेवा साबित हुए हैं।
अनैचुरल प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल: कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स में मौजूद हानिकारक रसायन त्वचा और शरीर को लंबे समय में नुकसान पहुंचाते हैं।
ईटिंग डिसऑर्डर : ‘परफेक्ट’ फिगर पाने के लिए लोग भूखे रहते हैं या खतरनाक डाइटिंग करते हैं, जिससे शरीर में पोषण की कमी हो जाती है।
2. मानसिक और भावनात्मक तनाव
आत्म-सम्मान में कमी : जब व्यक्ति स्थापित ‘सौंदर्य मानकों’ पर खरा नहीं उतर पाता, तो वह खुद को कमतर महसूस करने लगता है।
तनाव और चिंता: लगातार सुंदर दिखने की चिंता, खासकर सार्वजनिक कार्यक्रमों या तस्वीरों के लिए, अनावश्यक मानसिक तनाव पैदा करती है।
डिस्मॉर्फिया ): कुछ लोग अपने शरीर के किसी हिस्से को लेकर इतना चिंतित रहते हैं कि उन्हें वह वास्तव में जैसा है, उससे कहीं ज़्यादा बदसूरत नज़र आता है, जो एक गंभीर मानसिक विकार है।
3. आर्थिक बोझ
ब्यूटी प्रोडक्ट्स, सैलून, जिम मेंबरशिप और कॉस्मेटिक सर्जरी पर भारी खर्च होता है, जो अक्सर व्यक्ति के बजट को बिगाड़ देता है।

समाधान क्या है?
इस समस्या का समाधान बाहरी दुनिया में नहीं, बल्कि अपने भीतर है।
खुद को स्वीकारें: सबसे पहला कदम है खुद को वैसे ही प्यार करना और स्वीकार करना जैसा आप हैं। हर व्यक्ति अपने आप में अनूठा (unique) और खूबसूरत है।
आंतरिक सुंदरता पर ध्यान: अपने ज्ञान, दयालुता, प्रतिभा और अच्छे कर्मों पर ध्यान दें। चरित्र की सुंदरता किसी भी बाहरी चमक से ज़्यादा स्थायी और आकर्षक होती है।
स्वस्थ जीवनशैली अपनाएँ: प्राकृतिक सुंदरता के लिए स्वस्थ खान-पान, पर्याप्त नींद और नियमित व्यायाम सबसे अच्छा ‘ब्यूटी रूटीन’ है। यह बाहरी दिखावे के बजाय वास्तविक स्वास्थ्य पर केंद्रित होना चाहिए।
मीडिया साक्षरता (Media Literacy): सोशल मीडिया और विज्ञापनों में दिखाई जाने वाली हर चीज को सच न मानें। याद रखें, वे आपको कुछ बेचने के लिए बनाए गए हैं, न कि आपका आत्म-सम्मान बढ़ाने के लिए।
निष्कर्ष यह है कि सुंदर दिखने की चाहत तब तक हानिकारक नहीं है जब तक कि यह स्वस्थ और प्राकृतिक हो। लेकिन जब यह चाहत एक जुनून बन जाती है और हमें अपनी पहचान, स्वास्थ्य और खुशी से दूर करने लगती है, तो यह स्पष्ट रूप से एक समस्या है। हमें सुंदरता को उसके व्यापक अर्थ में देखना सीखना होगा, जहाँ स्वास्थ्य, आत्म-विश्वास और अच्छा व्यवहार, महंगे मेकअप और सर्जरी से कहीं ज़्यादा मायने रखते हैं।
7. निष्कर्ष
सुंदर दिखने की चाहत गलत नहीं है, लेकिन जब यह चाहत
स्वास्थ्य, आत्म-सम्मान और मानसिक शांति को नुकसान पहुँचाने लगे,
तो यह समस्या बन जाती है।
हमें समाज और सोशल मीडिया द्वारा बनाए नकली सौंदर्य मानकों को चुनौती देनी होगी।
असली सुंदरता वह है जो आपको भीतर से मजबूत बनाए, न कि आपको बदलने या दुख देने लगे।
डॉ विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब
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