



सबसे बड़ी बात यह है कि राहुल गांधी बिहार में तेजस्वी के समानांतर कांग्रेस के एक नेता को उभारना चाह रहे हैं। राहुल गांधी का कन्हैया कुमार को बिहार में आगे करना और समय-समय पर उनका साथ देना, आरजेडी को साफ तौर पर चुभता है। लालू यादव को यह डर सताता है कि कांग्रेस कहीं उनके यादव वोट बैंक में सेंध न लगा ले, और यही डर तेजस्वी यादव के व्यवहार में भी झलकता है। तेजस्वी खुद को बिहार की राजनीति में एकमात्र विकल्प के रूप में स्थापित करने में लगे हैं, और ऐसे में कन्हैया कुमार जैसे नेताओं का उभार उन्हें असहज कर देता है। यह असहजता सिर्फ जातिगत समीकरणों की वजह से नहीं है, बल्कि कांग्रेस की बदली हुई रणनीति का संकेत भी देती है, जिसमें वह अब खुद को हर वर्ग में स्वीकार्य बनाना चाहती है, चाहे वह सवर्ण हों, दलित हों या यादव। लेकिन समस्या यह है कि लालू यादव कांग्रेस को सवर्णों की राजनीति करने से नहीं रोकते, लेकिन जैसे ही कांग्रेस बिहार के यादव या दलित वोट बैंक में हाथ डालती है, उन्हें परेशानी होने लगती है। पप्पू यादव और कन्हैया कुमार ये दोनों चेहरे लालू यादव के लिए खतरे की घंटी बन गए हैं।
गौरतलब है लालू यादव हमेशा से अपने मुस्लिम-यादव समीकरण पर भरोसा करते रहे हैं, और इसी समीकरण को बचाए रखने के लिए वे कांग्रेस को इस दायरे में आने से रोकना चाहते हैं। 2019 में जब कांग्रेस का मुस्लिम चेहरा किशनगंज से जीत गया, और 2020 में कांग्रेस के चार मुस्लिम विधायक विधानसभा में पहुंचे, तो यह आरजेडी के लिए एक तरह की चेतावनी थी। आरजेडी चाहती है कि मुस्लिम वोट पूरे तौर पर उनके पास रहें, लेकिन कांग्रेस के सक्रिय होने से इस समीकरण में दरार आने लगी है। बात यहीं तक सीमित नहीं है राजेश कुमार को बिहार कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने पर भी लालू यादव की नाराज हैं। वे चाहते थे कि अध्यक्ष वही बने जो उनके करीब हो, लेकिन राहुल गांधी ने राजेश को चुना जो दलित समाज से आते हैं और कांग्रेस को इस वर्ग में पैठ दिलाने की कोशिश कर रहे हैं। लालू यादव की आपत्ति इस बात पर है कि कांग्रेस अगर दलित और यादव, दोनों वोट बैंक में सेंध लगाने लगी तो आरजेडी की प्रासंगिकता क्या रह जाएगी? राहुल गांधी का जातिगत जनगणना पर आक्रामक रुख भी लालू यादव को अखरता है। लालू खुद कास्ट सेंसस के सबसे बड़े समर्थक रहे हैं, और जब राहुल गांधी ने बिहार सरकार द्वारा कराई गई जातीय गणना को फर्जी बता दिया था, तब यह एक सीधी चुनौती की तरह लगा। यह बयान, उस वक्त आया जब आरजेडी इसे अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बता रही थी, और महागठबंधन इसे प्रचारित कर रहा था। यह और बात है कि राजद इस पर खुलकर नहीं बोल रही है। कहा तो यह भी जा रहा है कि तेजस्वी यादव चाहे जितना भी दावा करें कि महागठबंधन में कोई विवाद नहीं है, लेकिन सच यही है कि महागठबंधन एक बेहद असहज समझौते पर चल रहा है। कांग्रेस का अंदरखाने यह मानना है कि तेजस्वी की स्वीकार्यता सीमित है, और अगर वे चेहरा बनते हैं, तो कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। इसलिए कांग्रेस चाहती है कि चुनाव में चेहरा न हो,ताकि जरूरत के हिसाब से निर्णय लिया जा सके। यह रणनीति जहां एक ओर कांग्रेस के लिए सुरक्षित है, वहीं आरजेडी को असुरक्षित बनाती है।