
भारत की जैव विविधता: एक दोहरी कहानी – संकट और आशा
डॉ विजय गर्ग
भारत, अपनी विशाल भौगोलिक विविधता के कारण, दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण जैव विविधता हॉटस्पॉट में से एक है। हालाँकि, यह देश गंभीर वन्यजीव संकट का सामना कर रहा है, जहाँ कई जीव-जंतुओं की प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं। इसी निराशाजनक परिदृश्य के बीच, हाल ही में उभयचर जीवों की तेरह नई प्रजातियों की खोज वास्तव में एक राहत भरी खबर लेकर आई है और यह जैव विविधता के संरक्षण के महत्व को रेखांकित करती है।
विलुप्ति के कगार पर खड़ी प्रजातियाँ
वन्यजीवों के लिए संकट लगातार गहरा रहा है। मानवीय हस्तक्षेप, आवास का विनाश, जलवायु परिवर्तन, अवैध शिकार और प्रदूषण जैसे कारक कई प्रजातियों के अस्तित्व को खतरे में डाल रहे हैं।
प्रमुख संकटग्रस्त प्रजातियाँ: बाघ, एशियाई शेर, हिम तेंदुआ, एक सींग वाला गैंडा, काला हिरन, लायन टेल्ड मकाक (सिंह- पूँछ वाला बन्दर), गंगा डॉल्फिन, घड़ियाल और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (गोडावण) जैसी प्रतिष्ठित प्रजातियाँ गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं।
आंकड़ों की भयावहता: अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ की रेड लिस्ट के अनुसार, भारत में कई वन्यजीव प्रजातियाँ ‘गंभीर रूप से संकटग्रस्त’ श्रेणी में सूचीबद्ध हैं। कुछ अनुमानों के अनुसार, भारत में जंगली जानवरों, सरीसृपों और पक्षियों की 133 प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर हैं।
उभयचरों पर विशेष खतरा: उभयचर , जो जल और थल दोनों पर जीवन व्यतीत करते हैं, पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति अत्यंत संवेदनशील होते हैं और इसलिए उन्हें “बायो-इंडिकेटर्स” माना जाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पाए जाने वाले 426 उभयचर प्रजातियों में से 136 विलुप्त होने के कगार पर हैं, जो पश्चिमी घाट जैसे क्षेत्रों में विशेष रूप से चिंताजनक है।
आशा की नई किरण: 13 नई उभयचर प्रजातियों की खोज
इन्हीं चिंताओं के बीच हाल ही में भारत के पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर क्षेत्र में उभयचर जीवों की तेरह नई प्रजातियों की खोज एक सुखद आशा लेकर आई है। यह खोज सिर्फ वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं, बल्कि इस बात का प्रमाण है कि प्रकृति के गर्भ में अभी भी विविधता छिपी है, जिसे समझने और संरक्षित रखने की आवश्यकता है। नई प्रजातियों की पहचान बताती है कि अभी भी हमारे जंगलों में कई रहस्य अनछुए हैं और अगर संरक्षण सही तरीके से किया जाए तो जैव–विविधता को बचाया जा सकता है।
यह खोज भारत की वैज्ञानिक टीमों की मेहनत, आधुनिक डीएनए तकनीकों, और लगातार क्षेत्रीय सर्वेक्षणों का परिणाम है। इससे यह भी संदेश मिलता है कि यदि अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाए और वन्य क्षेत्रों को संरक्षित रखा जाए तो जोखिम में पड़ी प्रजातियों को बचाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकते हैं।
लेकिन राहत की यह खबर हमारी जिम्मेदारी भी बढ़ाती है। नई प्रजातियों की खोज केवल उत्साह का विषय नहीं, बल्कि यह चेतावनी भी है कि वर्तमान संरक्षण नीतियों और प्रयासों को और मजबूत करना होगा। अगर जंगल सुरक्षित रहे, प्रदूषण नियंत्रण में हो, और स्थानीय समुदायों को संरक्षण योजनाओं से जोड़ा जाए तो भारत की जैव–सम्पदा को बचाया जा सकता है।
इस अंधेरे दौर में, पूर्वोत्तर भारत से आई एक खबर ने जैव विविधता के प्रति आशा को जगाया है। भारतीय वन्यजीव संस्थान के शोधकर्ताओं ने हाल ही में उभयचरों की 13 नई प्रजातियों की खोज की है।
खोज का स्थान: ये प्रजातियाँ मुख्य रूप से पूर्वोत्तर भारत के राज्यों जैसे अरुणाचल प्रदेश (6 प्रजातियाँ), मेघालय (3 प्रजातियाँ), असम, मिजोरम, नागालैंड और मणिपुर में पाई गई हैं।
महत्व: ये सभी नई प्रजातियाँ ‘रावोर्चेस्टेस’ जीनस से संबंधित हैं, जिन्हें बुश मेंढक कहा जाता है। इस नवीनतम खोज से भारत में ज्ञात बुश मेंढक प्रजातियों की संख्या 82 से बढ़कर 95 हो गई है।
जैव विविधता हॉटस्पॉट: यह खोज पूर्वोत्तर भारत की छिपी हुई जैव विविधता को उजागर करती है, जो वैश्विक जैव विविधता के हॉटस्पॉट का हिस्सा है। इस तरह की खोजें यह बताती हैं कि प्रकृति ने अभी भी अपने खजानों को पूरी तरह से नहीं खोला है, और यदि संरक्षण के प्रयास किए जाएं तो और भी कई अज्ञात प्रजातियों का अस्तित्व सामने आ सकता है।
निष्कर्ष: संरक्षण का संकल्प
विलुप्त होती प्रजातियों का संकट एक अलार्म है कि हमें अपने प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा के लिए तत्का
ल और कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है। हालाँकि, 13 नई प्रजातियों की खोज से यह भी स्पष्ट होता है कि हमारे पास अभी भी अज्ञात जैव विविधता को बचाने और उसका दस्तावेजीकरण करने का अवसर है।
यह खोज इस बात पर जोर देती है कि संरक्षण के प्रयास सिर्फ संकटग्रस्त प्रजातियों को बचाने तक ही सीमित नहीं होने चाहिए, बल्कि उन क्षेत्रों की सुरक्षा पर भी केंद्रित होने चाहिए जो अभी भी प्रकृति के रहस्यों को समेटे हुए हैं। भारत को अपनी वन्यजीव संरक्षण नीतियों को मजबूत करने, आवासों की रक्षा करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए युद्ध स्तर पर काम करना होगा, ताकि संकट और आशा की इस दोहरी कहानी में आशा की जीत हो सके।
डॉ विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब
Post Views: 5