
forest fire becomes a disaster:अमेरिका अब तक की सबसे भीषण आग से झुलस रहा है। इसके प्रांत कैलिफोर्निया के बड़े इलाके में जंगल धधक उठे हैं। दो दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है। हजारों घर राख हो गए हैं। बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हो चुके हैं हजारों एकड़ क्षेत्र बर्बाद हो गया है। यह आग असाधारण इसलिए भी कही गई। क्योंकि आम तौर पर जनवरी में वहां जंगल की आग का कोई मौसम नहीं होता। दावा किया गया कि जलवायु परिवर्तन, ऊंचे तापमान, शुष्क मौसम और सूखे ने अचानक ऐसे हालात पैदा कर दिए कि भड़की चिंगारियों ने तेज हवाओं के संग खौफनाक रूप धर लिया और बड़े इलाके को इस तरह तबाह कर दिया, मानो वहां कोई बड़ा बम गिरा दिया गया हो।
पहली बार ऐसा लगा कि दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क, कैलिफोर्निया के लास एंजिलिस इलाके में बेहद तेजी से फैली आग के आगे निरुपाय हो गया। इस आग से निपटने की नीतियों को लेकर वहां राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। जहां तक पर्यावरणीय और वैज्ञानिक कारणों की बात है, तो अमेरिका के ‘नेशनल ओसियानिक एंड एटमास्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन’ (नोआ) का कहना है कि पिछले दो दशकों में पश्चिमी अमेरिका में जलवायु परिवर्तन के कारकों की अनदेखी ने जो हालात पैदा किए हैं, वे इस आग के लिए मुख्यतः जिम्मेदार हैं। आमतौर पर वहां मई जून से लेकर अक्तूबर के बीच जंगल की आग लगने की कुछ घटनाएं हर साल होती रही हैं, लेकिन इधर लगने लगा है कि इस आग की समयावधि का दायरा बढ़ गया है। इस बार सबसे पहले जंगल की आग कैलिफोर्निया के पैलिसेड्स इलाके में भड़की आसमानी बिजली या किसी इंसान की करतूत से छोटे स्तर पर जंगल में लगी आग वहां बहने वाली तेज हवाओं के कारण इस कदर बेकाबू हो गई कि एक बड़ा इलाका देखते-देखते राख हो गया, जहां हालीवुड की अनेक हस्तियों के आलीशान घर थे।
लास एंजिलिस के ईटन नामक उत्तरी हिस्से में लगी आग आल्टाडेना जैसे शहरों में फैल गई। कहने को तो यह सिर्फ जंगल की आग है, लेकिन जिन कारणों से अमेरिका बुरी तरह झुलसा है, उससे पूरी दुनिया में यह चिंता फैल रही है कि ऐसा तो कहीं भी और कभी भी हो सकता है। जलवायु परिवर्तन, गर्म और शुष्क मौसम और सूखे की स्थितियों में अमेरिका के इस इलाके में यह आग तब लगी, जब इसके लगने की कोई आशंका नहीं थी। यानी जिस मौसम में इन इलाकों के जंगल करीबन हर वर्ष या दूसरे वर्ष दहकते थे, वह मौसम अभी वहां आया ही नहीं था। इसलिए बेमौसम लगी जंगल की आग ने ऐसा तांडव मचा दिया कि महाशक्ति अमेरिका की सांसें भी फूल गई।
वन क्षेत्रों में आग लगने के सबसे अहम कारणों में सूखे का मौसम और तेज हवाओं के साथ आकाशीय बिजली गिरने को गिना जाता है, लेकिन लास एंजिलिस में फैली आग के पीछे इंसानी हाथ हो सकता है, ऐसा एक दावा कैलिफोर्निया की दमकल सेवा के प्रमुख डेविड एक्यूना ने किया। उन्होंने कहा कि इस इलाके में 95 फीसद आग इंसान ही लगाते आए हैं और हो सकता है कि इस बार भी ऐसा हुआ हो। मौसम विशेषज्ञों ने पश्चिमी अमेरिकी जंगलों में आग के खतरे और इसकी प्रमुख वजह के रूप में जलवायु परिवर्तन को चिह्नित किया है। जलवायु संकट से तापमान बढ़ा है, लंबे समय तक सूखे और शुष्क मौसम की स्थितियां बनी हैं, जिनसे अब पूरे वर्ष आग लगने और उसके फैल जाने की आशंका पैदा हो गई है। इसमें सितंबर के अंत से मई तक बीच-बीच में सौ मील या उससे ज्यादा रफ्तार से चलने वाली ‘सेंटा एना’ हवाओं ने आग में घी का काम किया है। कैलिफोर्निया के पहाड़ों से समुद्र की तरफ बहने वाली ये हवाएं जब जंगल की आग के साथ बहती हैं, तो त्रासदी कुछ उसी तरह बढ़ती है, जैसी इस बार बढ़ी है।
आमतौर पर जिन इलाकों में बारिश होती है, वहां अनुकूल वातावरण मिलने से पेड़-पौधे और जंगली इलाके में झाड़ियों की भरमार हो जाती है। गर्मियों में झाड़ियां और घास फूस सूख कर आग लगने का माहौल तैयार कर देते हैं। प्राकृतिक रूप से जंगलों में लगने वाली आग से वहां के पेड़-पौधों को निपटने का तरीका मालूम है। कहीं पेड़ों की मोटी छाल बचाव का काम करती हैं, तो कहीं आग लगने के बाद भी जंगल को फिर से फलने-फूलने आता है। अफ्रीका के सवाना जैसे घास के मैदानों में बार-बार आग लगती रहती है, लेकिन घास-फूस जल्दी जलने से आग का असर जमीन के अंदर, जड़ों तक नहीं पहुंचता। यही वजह है कि आग खत्म होते ही मैदान फिर से हरे हो जाते हैं। अगर घास-फूस में आग नहीं लगेगी, तो इसके विशाल ढेर आगे चल कर बारूद का काम करते हैं।
हमारे देश के उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर के जंगलों की आग के पीछे भी कुछ ऐसे ही कारण हैं। यहां के जंगलों में चीड़ की बहुतायत है। जब चीड़ की पत्तियों के ढेर ज्यादा लग जाते हैं, तो जंगलों में जरा-सी चिंगारी विशाल रूप ले लेती है। उत्तराखंड के जंगलों में लगी के पीछे यही तथ्य बताया जाता है कि वहां हर साल करोड़ों टन चीड़ की सूखी पत्तियां जमा हो जाती हैं। सूखे मौसम में चीड़ की पत्तियों के ढेर किसी कारण आग पकड़ते हैं, तो यह प्रायः अनियंत्रित हो जाती है।
जंगल की आग बुझाने के तीन तरीके विशेषज्ञ सुझाते हैं। पहला, मशीनों जंगलों की नियमित सफाई हो। सूखी पत्तियों और झाड़ियों को समय रहते हटाया जाए, लेकिन यह बेहद महंगा विकल्प है। दूसरा विकल्प यह सुझाया जाता है कि मानव आबादी के नजदीकी जंगलों में नियंत्रित ढंग से आग लगाई जाए, ताकि गर्म मौसम में वहां खुद कोई आग न भड़के। अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका समेत कई देशों में यही किया जा रहा है, लेकिन इसके लिए भी काफी संसाधन चाहिए। तीसरा है कि पर्वतीय इलाकों में पलायन रोक कर जंगलों पर आश्रित व्यवस्था को बढ़ावा दिया जाए। इससे जंगलों की साफ-सफाई होगी और आग खतरे भी कम होंगे। अमेरिका के जिस इलाके में इस बार आग फैली है, अमीरों ने वहां की प्राकृतिक सुंदरता पर रीझ कर अपने आलीशान घर बनाए हैं। मगर इन लोगों की कोई भूमिका जंगलों की साफ-सफाई में रहती होगी, इसकी कोई सूचना नहीं है।
जहां तक हमारे देश की बात है, यहां नीति निर्माताओं और योजनाकारों ने जंगलों की आग की गंभीरता को ठीक से समझा नहीं है। इसलिए कहना मुश्किल है कि जंगल की आग को भड़कने से रोकने से संबंधित कोई भी तरीका उन्हें रास आएगा। ऐसे में इकलौता तरीका यही है कि सूचना मिलते ही विशालकाय बाल्टियों से लैस हेलिकाप्टर पानी के साथ दहकते जंगलों की तरफ रवाना किए जाएं। गांव, प्रशासन और सुरक्षा बल ऐसे नाजुक मौकों पर सजग रहें, लेकिन ये तरीके एक हद तक ही कारगर रहते हैं। अमेरिका में रोके नहीं रुक रही आग ने यह साबित कर दिया है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
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