
डिजिटल अर्थव्यवस्था के खतरे- विजय गर्ग
समय, काल और परिस्थितियों के अनुरूप जो परिवर्तन आते हैं, उनमें अर्थव्यवस्था से जुड़े विभिन्न आयामों में आने वाले परिवर्तन भी स्वाभाविक हैं। आज डिजिटलीकरण के दौर में अर्थव्यवस्था भी डिजिटल हो रही है। डिजिटल अर्थव्यवस्था में डिजिटल तकनीक के जरिए संचालित होने वाली आर्थिक गतिविधियां जैसे आनलाइन लेन-देन, ई-कामर्स, ई-बिजनेस और डिजिटल मार्केटिंग जैसी कई गतिविधियां शामिल हैं। इनमें अर्थव्यवस्था में इंटरनेट, मोबाइल, डेटा रखरखाव की प्रणाली और सूचना और संचार प्रौद्योगिकी से जुड़ी क्रियाओं का भी समावेश होता है। डिजिटल अर्थव्यवस्था के माध्यम दूरदराज के क्षेत्रों में इंटरनेट और डिजिटल सेवाओं द्वारा व्यावसायिक के क्रिया संचालन सुगमता से संभव हो जाता है। इससे व्यवसायों के लिए नए आर्थिक अवसर उपलब्ध होते हैं। इसके माध्यम से शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को भी आनलाइन उपलब्ध कराने का अवसर मिला है। ई-गवर्नेस की व्यवस्था भी इसी के कारण संभव हुई है। डिजिटल अर्थव्यवस्था का लाभ ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाने के लिए भारत सरकार द्वारा शुरू की गई ‘भारतनेट’ परियोजना का उद्देश्य भी प्रत्येक ग्राम पंचायत को किफायती ‘हाई स्पीड इंटरनेट’ की पहुंच प्रदान करना है। दुनिया भर के देश डिजिटल अर्थव्यवस्था समझौतों द्वारा अपने आपसी व्यापार को विनियमित करने में लगे हैं।
भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था का ‘आकलन और माप’ शीर्षक रपट से पता चलता है कि वर्ष 2022-23 में डिजिटल क्षेत्र की राष्ट्रीय आय में लगभग 11.74 फीसद हिस्सेदारी है, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 31.64 लाख करोड़ रुपए का योगदान करती है। वर्ष 2024-25 तक यह 13.42 फीसद होने का अनुमान है। संभावना है कि वर्ष 2029-30 तक यह देश की कुल अर्थव्यवस्था में लगभग पांचवें हिस्से के बराबर योगदान देगी। डिजिटल अर्थव्यवस्था ने रोजगार के नए अवसर भी उपलब्ध कराए हैं। इस अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में वर्ष 2022-23 में एक करोड़ चालीस लाख 67 हजार कर्मचारी कार्यरत थे। डिजिटल साक्षरता में भी वृद्धि हो रही है। बैंक और वित्तीय संस्थाओं ने डिजिटल लेन-देन और अन्य गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए अपने ऐप भी विकसित कर लिए हैं, जिनसे एक व्यक्ति घर बैठे इनसे जुड़ी सेवाओं और सुविधाओं का लाभ लेने लगे हैं। अलग-अलग भुगतान ऐप भी विकसित हो गए हैं, जो एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के साथ अपने बैंकों के माध्यम से लेन-देन को सुगम बना रहे हैं।
भारत सरकार के वित्त मंत्रालय का वित्तीय सेवा विभाग (डीएफएस) देश में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभा रहा है। ‘यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस’ (यूपीआइ) जैसी तेज भुगतान प्रणाली को बढ़ावा देने के प्रयासों के कारण वित्तीय लेन-देन के तरीके में क्रांति आ रही है। इससे लाखों लोगों के लिए वास्तविक समय में सुरक्षित और निर्वाध भुगतान संभव हो गया है। डिजिटल लेन-देन की कुल संख्या वित्तवर्ष 2017-18 के 2,071 करोड़ रुपए से बढ़ कर वित्तवर्ष 2023-24 में 18,737 करोड़ रुपए हो गई है। इसके अतिरिक्त मौजूदा वित्तवर्ष 2024-25 के अंतिम पांच महीने अप्रैल से अगस्त के दौरान लेन-देन की मात्रा 8,659 करोड़ रुपए तक पहुंच गई।
डिजिटल अर्थव्यवस्था की आपसी साझेदारी बढ़ाने के लिए विभिन्न देश समझौते भी कर रहे हैं। चिली, न्यूजीलैंड और सिंगापुर के बीच डिजिटल अर्थव्यवस्था भागीदारी समझौता सभी डब्लूटीओ सदस्यों के लिए खुला पहला डिजिटल व्यापार समझौता है, जो जून 2020 में इलेक्ट्रानिक रूप से हस्ताक्षरित होने वाला पहला समझौता है। इसे एपीईसी और ओईसीडी जैसे अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों के भीतर चल रहे ई-कामर्स और डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए डब्लूटीओ वार्ता के पूरक के रूप में तैयार किया गया था। पारंपरिक आर्थिक जुड़ाव की सीमाओं को आगे बढ़ा कर यह अपनी तरह का पहला समझौता व्यापार नीति में एक नया आयाम है। इसने पहले ही दुनिया की कुछ सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। इनमें कनाडा, चीन और दक्षिण कोरिया शामिल होने का प्रयास कर रहे हैं। इसी प्रकार ब्रिटेन और सिंगापुर डिजिटल इकोनामी एग्रीमेंट जून 2022 में लागू हो चुका है। इस समझौते के तीन मुख्य लक्ष्य हैं- अधिक सुरक्षित डिजिटल वातावरण की सुविधा देना, विश्वसनीय डेटा प्रवाह को सुनिश्चित करना और डिजिटल व्यापार में सहयोग करना अर्थव्यवस्था में डिजिटल भुगतान, डेटा प्रवाह और डिजिटल सेवाओं का महत्त्व तेजी से बढ़ रहा है।
डिजिटल व्यापार के समक्ष कई चुनौतियां और खतरे भी हैं। डिजिटल संरक्षणवाद बढ़ रहा है। इससे खासकर छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों (एसएमई) सहित अन्य क्षेत्रों के लिए व्यवसाय के अवसरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा, वैश्विक डिजिटल व्यापार समझौते की अनुपस्थिति डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं के बीच समन्वय की समस्या चुनौतियों को और बढ़ाती है। डिजिटल अर्थव्यवस्था में कई अन्य समस्याएं और चुनौतियां भी हैं, जिनमें अभी डिजिटल साक्षरता की कमी, साइबर सुरक्षा के खतरे, साइबर आर्थिक अपराध, खराब डिजिटल बुनियादी ढांचा डेटा गोपनीयता जैसी समस्याएं शामिल हैं। इनमें सबसे बड़ा खतरा साइबर सुरक्षा का है। डिजिटल अर्थव्यवस्था में साइबर हमले का खतरा बढ़ गया है, इसके कई उदाहरण हमारे सामने आते रहते हैं।
भारत में साइबर आर्थिक अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं। वर्ष 2022 में 65,893 मामले दर्ज हुए जो 2021 की तुलना में 24.4 फीसद अधिक हैं। इसके कारण वित्तीय नुकसान भी 2022 में 1,935.51 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। पंजीकृत मामलों में साइबर धोखाधड़ी के मामले सबसे अधिक 64.8 फीसद थे। इसके बाद जबरन वसूली 5.5 फीसद और यौन शोषण 5.2 फीसद था। आर्थिक धोखाधड़ी के सर्वाधिक शिकार वरिष्ठ नागरिक होते हैं। उनको तकनीक की पर्याप्त जानकारी नहीं होती। सेवानिवृत्ति पर मिली एकमुश्त राशि पर साइबर अपराधियों की नजर रहती है, वे उनको अधिक ब्याज और अन्य लाभ देने जैसी कथित योजनाओं के जाल में फंसा कर जमा राशि हड़पने का प्रयास करते हैं। यदि उन अपराधियों की कोई शिकायत कर देता है, तो कई बार उनके जाल में फंसे लोगों के लाखों रुपए जमा वाले बैंक खाते ‘निष्क्रिय’ हो जाते हैं, इस कारण वे अपनी सामान्य जरूरतों का लेन-देन भी नहीं कर पाते।
कई ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में अभी डिजिटल बुनियादी ढांचे तक पहुंच का अभाव है जो डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास बाधा डालता है। इसके लिए एक सशक्त, उपयुक्त नियामक और कानूनी ढांचे की आवश्यकता है, जो उपभोक्ताओं की डिजिटल सुरक्षा सुरक्षा सुनिश्चित कर सके और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दे सके। यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि सभी की डिजिटल सेवाओं तक सुरक्षित और सस्ती पहुंच हो। इस क्षेत्र में कई अवसर हैं, लेकिन इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसके लिए डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना, साइबर सुरक्षा को मजबूत करना, सशक्त ‘एंटीवायरस’ विकसित करना समय-समय पर उनको अद्यतन करना, डिजिटल बुनियादी ढांचे में सुधार करना, डेटा गोपनीयता की रक्षा और डिजिटल विभाजन को कम करने जैसी गतिविधियों के माध्यम से डिजिटल अर्थव्यवस्था के समग्र विकास को संभव बना सके।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब
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