
गहराता जल संकट, बढ़ती मुश्किलें -विजय गर्ग
भारत में जल संकट बड़ी समस्या बन चुका है। इससे हर साल करोड़ों लोग प्रभावित होते हैं। गर्मियों की आहट के साथ ही यह संकट बढ़ जाता है। गांवों से लेकर महानगरों तक पानी के लिए लिए त्राहि-त्राहि मचने लगती है। यह संकट न केवल ग्रामीण और शहरी आबादी के लिए गंभीर चुनौती है, बल्कि कृषि पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ रहा है। लगातार गिरता भूजल स्तर, जल संसाधनों की बर्बादी, बढ़ती जनसंख्या और जलवायु परिवर्तन इस संकट को और अधिक विकराल बना रहे हैं। जाहिर है, अगर समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में स्थिति और गंभीर हो सकती है। पूरी दुनिया में साल-दर-साल पानी की किल्लत बढ़ रही रही है। धरती पर जितना पानी उपलब्ध है, उसमें से सिर्फ 2.5 फीसद मीठा पानी है और इसमें से भी मात्र एक फीसद मानव उपयोग के लिए उपलब्ध है। विश्व के जल संसाधनों में भारत की हिस्सेदारी चार फीसद है। देश में उपलब्ध जल का लगभग 80 फीसद कृषि क्षेत्र में उपयोग किया जाता है। कृषि के अलावा बिजली उत्पादन, उद्योग और घरेलू जरूरतों के लिए जल की उपलब्धता आवश्यक है। मगर जरूरत के हिसाब से जल संसाधन सीमित हैं। पानी के कुशल प्रबंधन से ही सभी को इसकी आपूर्ति संभव है। समय-समय पर हुए अध्ययनों और सर्वेक्षण रपटों में भारत में जल संकट को चिंताजनक बताया जाता रहा है। अमेरिका स्थित विश्व संसाधन संस्थान की ओर से प्रकाशित आंकड़ों से पता चलता है कि विश्व में जो सत्रह देश सर्वाधिक जल संकट झेल रहे हैं, भारत उनमें तेरहवें स्थान पर है।
वर्ष 2019 में जारी नीति आयोग की रपट के मुताबिक देश की 60 करोड़ से अधिक आबादी पानी की गंभीर किल्लत झेल रही है और हर वर्ष लगभग दो लाख लोग असुरक्षित जल पीने से मर जाते हैं। 75 फीसद आबादी को पीने के पानी के लिए दूर तक जाना पड़ता है। इस रपट में नीति आयोग ने चेताया था कि 2030 तक देश में जल की मांग आपूर्ति के मुकाबले दोगुनी होने का अनुमान है। इससे करोड़ों लोगों के सामने जल संकट की स्थिति उत्पन्न होगी। बड़ा सवाल यह है कि इस रपट के छह साल बाद हमने जल संकट को कम करने की दिशा में क्या कदम उठाए हैं?
देश में जल संकट गहराने के कई कारण हैं। हमें पता है कि पानी सीमित है, फिर भी उसे बूंद-बूंद बचाने के बजाय हम उसे व्यर्थ बहा रहे हैं। देश की तेजी से बढ़ती आबादी के कारण पानी की मांग बढ़ती रही है, लेकिन जल संसाधनों का उतनी ही अधिक तेजी से क्षय हो रहा है। भारत दुनिया में सबसे ज्यादा भूजल निकालने वाला देश है। कृषि, उद्योग और घरेलू उपयोग के लिए भूजल का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है, जिससे भूजल स्तर गिरता जा रहा है। नदियों, झीलों और भूजल में औद्योगिक कचरे, रसायनों और प्लास्टिक के बढ़ते स्तर के कारण पीने योग्य पानी की लगातार कमी आ रही है। केंद्रीय भूजल बोर्ड की शोध रपट से पता चलता है कि समूचे देश में भूजल प्रदूषण चिंताजनक रूप से बढ़ गया है। इनमें से अधिकतर इलाकों में नाइट्रेट का स्तर बहुत अधिक है। यह रासायनिक प्रदूषक पर्यावरणीय समस्याएं पैदा करता है। इससे खासकर, छोटे बच्चों के लिए गंभीर स्वास्थ्य खतरा है। बढ़ते तापमान और अनियमित मानसून के कारण कई क्षेत्रों में सूखा और बाढ़ की स्थिति बन रही है।
देश में सदियों से जल संरक्षण के लिए पारंपरिक तरीके इस्तेमाल किए जाते रहे हैं, जो आज भी प्रासंगिक और कारगर हैं। तालाब, बावड़ियां और कुंड जैसी जल संरचनाएं वर्षा जल को संचित करने में हमेशा मददगार रही हैं। हमारे यहां वैज्ञानिक ढंग से बनाए गई झीलें और तालाब ग्रामीण जल आपूर्ति का आधार रहे हैं। देश के सभी क्षेत्रों में लोगों ने जल संरक्षण के कोई न कोई उपाय विकसित किए। आज बढ़ते जल संकट से निपटने के लिए जल संरक्षण के पारंपरिक और आधुनिक तकनीकों को एक साथ अपनाने की जरूरत है। देश जल संचय के प्रभावी साधन के तौर पर स्वीकार किए गए कुओं, बावड़ियों, तालाबों, जोहड़ों और झीलों की फिक्र करना हमने छोड़ दिया है। जल संरक्षण और पारंपरिक जलस्रोतों की सार-संभाल हमारी समृद्ध परपंरा रही है, पर हाल के दशकों में अपने पुरखों की इस परपंरा को बिसरा दिया है।
भारत में जल संकट एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है। इसे हल करने के लिए प्रभावी उपायों की आवश्यकता है। इसके लिए वर्षा जल संचय को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, ताकि बारिश का पानी व्यर्थ न जाए और भूजल स्तर बढ़े। बूंद-बूंद और फव्वारा सिंचाई जैसी कृषि तकनीकों को अपना कर पानी की बर्बादी रोकी जा सकती है। शहरी क्षेत्रों में औद्योगिक और घरेलू जल का पुनः उपयोग करने के लिए जल पुनर्चक्रण और अपशिष्ट जल उपचार अनिवार्य किया जाना चाहिए। घरेलू स्तर पर नल बंद रखने, कपड़े और बर्तन धोने में कम पानी का उपयोग करने जैसी कम पानी की खपत करने वाली आदतों को अपनाना होगा। कम पानी में उपजने वाली फसलों, जैसे बाजरा, ज्वार और दालों के उत्पादन को बढ़ावा देना होगा।
जल संकट के समाधान के लिए सरकार कई योजनाओं पर काम कर रही रही है। । केंद्र सरकार ने जल जीवन मिशन के तहत हर घर में नल जल उपलब्ध का लक्ष्य रखा है। गंगा नदी के पुनर्जीवन के लिए नमामि गंगे योजना के तहत काम किया रहा है। । भूजल स्तर में में सुधार के लिए अटल भूजल योजना में देश भर काम किया जा रहा । हाल में सरकार ने लोकसभा में बताया कि वह सात राज्यों गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के 80 जिलों में जल संकट से ग्रस्त क्षेत्रों में अटल भूजल योजना’ लागू कर रही है, जिसका उद्देश्य सतत भूजल प्रबंधन के माध्यम से भूजल स्तर में गिरावट को रोकना है। अमृत सरोवर योजना के तहत भी गांव- गांव में यह काम किया जा रहा है।
सरकार के प्रयास अपनी जगह हैं, लेकिन यह काम सिर्फ सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा जाना चाहिए। जल संकट का समाधान तभी हो सकता है, जब आम आदमी भी पहल करे। सरकार कई बार कह चुकी है कि देश में पानी की कमी नहीं है, पर पानी का प्रबंधन एक बड़ा मसला है। यह काम जनता की भागीदारी से ही किया जा सकता है। नागरिकों को पानी की बचत और पारंपरिक जल संरचनाओं के संरक्षण के लिए जागरूक करना होगा। यदि जल संसाधनों की बर्बादी नहीं रोकी गई और पारंपरिक जल संरक्षण प्रणालियों को पुनर्जीवित नहीं किया गया, तो भविष्य में स्थिति और भयावह हो सकती है। जल एक सीमित संसाधन है। इसकी हर बूंद अनमोल है। इसलिए जल संरक्षण को जन-आंदोलन बनाना होगा और सरकार, समाज तथा प्रत्येक व्यक्ति को मिल कर इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। ऐसा होने पर ही सबकी प्यास बुझ सकती है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब
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