



चीन-बांग्लादेश की बढ़ती नजदीकी: भारत के लिए खतरे की घंटी?
शी जिनपिंग से मिले मोहम्मद यूनुस, नौ अहम समझौतों पर हस्ताक्षर
बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस की चीन यात्रा ने वैश्विक राजनीति में हलचल मचा दी है। उन्होंने बीजिंग में राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की, जिसमें दोनों देशों के बीच नौ महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। इनमें आर्थिक और तकनीकी सहयोग, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, मीडिया, स्वास्थ्य और शास्त्रीय साहित्य के अनुवाद जैसे विषय शामिल हैं। यूनुस ने चीनी नेतृत्व से बांग्लादेश में स्थिरता बनाए रखने में सहयोग की अपील की, खासकर तब जब ढाका में छात्र विरोध के चलते सत्ता परिवर्तन हुआ है।
राजनयिक संबंधों के 50 वर्ष और चीन का बढ़ता दखल
बांग्लादेश और चीन ने 2025 में अपने राजनयिक संबंधों के 50 वर्ष पूरे किए। यूनुस सरकार के सत्ता में आने के बाद बीजिंग ने बांग्लादेश के कई राजनीतिक और कूटनीतिक प्रतिनिधिमंडलों की मेजबानी की, जिनमें विपक्षी दल और कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों के नेता भी शामिल थे। विश्लेषकों का मानना है कि चीन ढाका की राजनीतिक अस्थिरता पर गहरी नजर बनाए हुए है और अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।
चीन-बांग्लादेश व्यापारिक संबंध: भारत के लिए क्या संकेत?
बांग्लादेश के डेली स्टार अखबार के अनुसार, चीन इस समय जापान, विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक के बाद बांग्लादेश का चौथा सबसे बड़ा ऋणदाता है, जिसने 1975 से अब तक 7.5 बिलियन डॉलर का कर्ज दिया है। 2023 में चीन ने बांग्लादेश में 1.4 बिलियन डॉलर का निवेश किया, जबकि दोनों देशों के बीच व्यापारिक लेन-देन 22.9 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। चीन से आयातित वस्तुओं में परिष्कृत पेट्रोलियम और कपड़ा उद्योग से जुड़े उत्पाद प्रमुख हैं।
बांग्लादेश की चीन के प्रति यह बढ़ती निर्भरता भारत के लिए चिंता का विषय हो सकती है। क्या चीन बांग्लादेश को भारत के खिलाफ एक नए मोर्चे के रूप में इस्तेमाल कर सकता है? यह सवाल अब कूटनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन चुका है।