
डिजिटल दौर में बचपन की चुनौती- डॉ विजय गर्ग
आधुनिक तकनीक ने हमारे जीवन को पूरी तरह से बदल दिया है, और इसका सबसे गहरा असर हमारे बच्चों के बचपन पर पड़ा है। जहाँ एक ओर डिजिटल क्रांति ज्ञान और अवसर के नए द्वार खोलती है, वहीं दूसरी ओर इसने बच्चों के सामने कई नई और जटिल चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं। आज का बचपन स्मार्टफोन, टैबलेट और इंटरनेट की चकाचौंध में पल रहा है, जिसने उनके सामाजिक, मानसिक और शारीरिक विकास को एक नए आयाम पर ला खड़ा किया है।
1. सामाजिक विकास पर प्रभाव
डिजिटल उपकरणों के अत्यधिक उपयोग से बच्चों का वास्तविक दुनिया से कटाव बढ़ रहा है।
कमजोर होते सामाजिक कौशल: स्क्रीन पर अधिक समय बिताने से वे साथियों के साथ आमने-सामने की बातचीत, भावनाओं को पढ़ने और संघर्षों को हल करने जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक कौशल सीखने से वंचित रह जाते हैं।
अकेलापन और अलगाव: वर्चुअल दुनिया की चमक अक्सर उन्हें वास्तविक रिश्तों से दूर कर देती है, जिससे अकेलापन और सामाजिक अलगाव की भावना पैदा हो सकती है।
2. मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य
डिजिटल दुनिया की निरंतर कनेक्टिविटी बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक दोहरा तलवार साबित हो रही है।
साइबर बुलिंग (Cyber Bullying): ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बच्चों को धमकी और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, जिसके गंभीर मनोवैज्ञानिक परिणाम हो सकते हैं।
तुलना और हीन भावना: सोशल मीडिया पर ‘परफेक्ट’ जीवन की अंतहीन तस्वीरें बच्चों में स्वयं की तुलना करने और हीन भावना (low self-esteem) विकसित करने का कारण बनती हैं।
ध्यान केंद्रित करने में कमी: तेजी से बदलती ऑनलाइन सामग्री के कारण बच्चों का ध्यान केंद्रित करने की क्षमता प्रभावित होती है, जिससे उनकी शैक्षिक प्रगति धीमी हो सकती है।
3. शारीरिक स्वास्थ्य जोखिम
डिजिटल उपकरणों का निष्क्रिय उपयोग (Passive use) बच्चों के शारीरिक स्वास्थ्य को भी खतरे में डाल रहा है।
गतिहीन जीवनशैली: घंटों स्क्रीन से चिपके रहने के कारण शारीरिक गतिविधि कम हो गई है, जिससे मोटापा और संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।
नींद की समस्याएँ: रात में स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी (Blue Light) बच्चों के नींद चक्र (Sleep Cycle) को बाधित करती है, जिसका असर उनकी एकाग्रता और मूड पर पड़ता है।
आँखों और रीढ़ की समस्याएँ: उपकरणों पर लगातार झुककर देखने से आँखों और गर्दन/रीढ़ की हड्डी से संबंधित समस्याएँ आम हो गई हैं।
4. ऑनलाइन सुरक्षा और सामग्री का जोखिम
इंटरनेट असीमित जानकारी का भंडार है, लेकिन यह बच्चों को अनुपयुक्त और खतरनाक सामग्री के संपर्क में भी ला सकता है।
अनुपयुक्त सामग्री: बच्चे अनजाने में हिंसा, अश्लीलता या खतरनाक विचारों वाली सामग्री तक पहुँच सकते हैं।
गोपनीयता और डेटा जोखिम: ऑनलाइन गेम और ऐप्स में बच्चों की व्यक्तिगत जानकारी का दुरुपयोग होने का खतरा रहता है।
इंटरनेट लत (Internet Addiction): गेमिंग या सोशल मीडिया की लत उनके जीवन के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं (जैसे पढ़ाई, खेल) को गौण बना सकती है।
अभिभावकों और शिक्षकों के लिए समाधानइस डिजिटल चुनौती का समाधान केवल तकनीक को दूर करने में नहीं है, बल्कि संतुलन और मार्गदर्शन में है।
निष्कर्ष
डिजिटल दौर में बचपन एक दोधारी तलवार के समान है। चुनौती गैजेट्स को बच्चों से दूर रखने में नहीं है, बल्कि उन्हें एक जिम्मेदार उपयोगकर्ता बनाने में है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि तकनीक हमारे बच्चों के विकास में एक सहायक उपकरण बने, न कि उनके बचपन पर हावी होने वाला एकमात्र माध्यम।
संतुलन, निगरानी, और डिजिटल शिक्षा ही वह कुंजी है जिसके द्वारा हम अपने बच्चों के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित डिजिटल भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं।
डॉ विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब
Post Views: 17