



पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति किसी से छिपी नहीं है। इन्हीं हरकतों के कारण वह आर्थिक रूप से कमजोर होता जा रहा है। आईएमएफ की रिपोर्ट के अनुसार 2025 के शुरुआती महीनों में पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार महज 3.1 अरब डॉलर था, जो मुश्किल से कुछ हफ्तों का आयात खर्च चला सकता है। महंगाई दर 30 प्रतिशत के पार जा चुकी है, बेरोजगारी करीब नौ प्रतिशत तक पहुंच चुकी है और जनता राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता से त्रस्त है। ऐसे में पाकिस्तान की फौजी हुकूमत का इस प्रकार का उकसावे भरा बयान यह दर्शाता है कि पाकिस्तान के पास अब कोई दूसरा उपाय नहीं बचा है, सिवाय इसके कि वह अपने लोगों का ध्यान भटकाने के लिए पुराने और साम्प्रदायिक मुद्दों को उछाले।
जनरल मुनीर ने अपने भाषण में विदेशों में बसे पाकिस्तानियों से अपील की कि वे अपने बच्चों को यह सिखाएं कि पाकिस्तान क्यों बना और हिंदू और मुसलमान कभी एक जैसे नहीं हो सकते। उनका यह बयान पाकिस्तान की संस्कृति और पहचान को हिंदुओं से श्रेष्ठ बताने वाला था, जबकि आज की वैश्विक दुनिया में यह सोच पूरी तरह से अप्रासंगिक हो चुकी है। टू नेशन थ्योरी, जिसकी नींव पर पाकिस्तान बना था, वह 1971 में ही धराशायी हो गई थी, जब बांग्लादेश ने पाकिस्तान से अलग होकर अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की थी। यह विभाजन यह साबित करता है कि धर्म के आधार पर बनी राष्ट्र की अवधारणा टिकाऊ नहीं हो सकती, और पाकिस्तान की असफलता इस सिद्धांत का प्रमाण बन चुकी है।
आज बलूच, सिंधी और पख्तून समुदाय भी अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़ रहे हैं, और यही पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा खतरा है। जनरल मुनीर को यह डर सता रहा है कि अगर उन्होंने हिंदुओं के खिलाफ नफरत का एजेंडा नहीं चलाया, तो पाकिस्तान की नई पीढ़ी उनसे सवाल पूछेगी। इसलिए वह कमजोर और अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय को एक बार फिर दुश्मन के तौर पर पेश कर रहे हैं, जबकि पाकिस्तान में बचे-खुचे हिंदू समुदाय की स्थिति बेहद दयनीय है। 1947 में पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी 23 प्रतिशत थी, जो आज घटकर महज 3 प्रतिशत रह गई है। या तो वे पलायन कर गए, मारे गए, या फिर धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर कर दिए गए। फिर भी, जनरल मुनीर को इनसे डर क्यों लगता है? क्योंकि वह जानते हैं कि यदि नफरत का यह माहौल समाप्त हो गया, तो पाकिस्तान के सत्ता ढांचे की बुनियाद हिल जाएगी।
पाकिस्तान की मशहूर सीरीज जिंदगी गुलज़ार है में भी यह दिखाया गया था कि पाकिस्तान में हिंदुओं को किस प्रकार हाशिए पर रखा जाता है, और यह किसी से छिपा नहीं है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति बहुत खराब है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब अल्पसंख्यक समुदाय पहले से ही इतना शोषित है, तो उनके खिलाफ नफरत फैलाने की आवश्यकता क्यों महसूस की जा रही है? अंतरराष्ट्रीय पत्रकार और न्यूयॉर्क टाइम्स के लेखक ताहा सिद्दीकी ने एक्स पर लिखा था कि जनरल असीम मुनीर बच्चों के दिमाग में जहरीली सोच भरना चाहते हैं ताकि उनका ब्रेनवॉश किया जा सके। उन्होंने कहा कि मुनीर दो राष्ट्र सिद्धांत का प्रचार कर रहे हैं, जो 1971 में ही असफल हो चुका था। यह बयान यह दर्शाता है कि जनरल मुनीर पाकिस्तान के भीतर की अस्थिरता और विघटन को लेकर बेहद चिंतित हैं।
परवेज मुशर्रफ, जिन्होंने कारगिल युद्ध छेड़कर भारत से सीधा टकराव किया था, उन्होंने भी कश्मीर को हथियाने के लिए हर संभव प्रयास किया था। उन्होंने आतंकवाद को राज्य नीति का हिस्सा बनाया और भारत में कई आतंकवादी हमले कराए थे। अब जनरल मुनीर भी वही भाषा बोल रहे हैं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान फिर से वही आत्मघाती रास्ता अपनाना चाहता है? पाकिस्तान अब कमजोर है, लेकिन उसकी सेना और खुफिया एजेंसियां अभी भी आतंकवाद को हथियार बनाकर भारत को अस्थिर करने की कोशिश करती रहेंगी। जम्मू-कश्मीर में हालिया समय में आतंकवादी गतिविधियों में थोड़ी कमी आई है, लेकिन यह मानना भूल होगी कि खतरा पूरी तरह से टल गया है। भारत को पाकिस्तान की असलियत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उजागर करते रहना चाहिए। साथ ही, पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर को भी भारत में पुनः शामिल करने की दिशा में कूटनीतिक प्रयास तेज किए जाने चाहिए। भारत को दुनिया को यह दिखाना होगा कि वह शांति चाहता है, लेकिन अपनी सीमाओं की रक्षा भी जानता है। जहां तक पाकिस्तान की बात है,वह 77 साल तक भारत से दुश्मनी का नतीजा देख चुका है,अच्छा होगा कि पाकिस्तान,भारत से लड़ने झगड़ने की बजाये उसके विकास कार्याे से बराबरी करे।