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हमारी अच्छी भली जिंदगी में कभी आ बैल मुझे मार की स्थिति पैदा हो जाती है। ऐसा भी होता है हम न चाहते हुए भी कभी चर्चा -ए -आम हो जाते हैं यानी बद से अच्छे बदनाम की दशा को प्राप्त हो जाते हैं। जी हाँ ! हम बेचारे लड्डू की ही बात कर रहे हैं। खा-मखां बदनाम हो गया। लेकिन हर जुबां की शान हो गया। टीवी की बहस में सरेआम हो गया।
शादी का लड्डू तो आपने खाया होगा। कहा जाता है कि शादी का लड्डू जिसने खाया वह पछताया और जिसने उसका स्वाद नहीं चखा वह भी पछताया। ठीक वहीं हालत हमारे लड्डू की हो गई है। अब जिसने प्रसाद के रूप में उसे खाया है वह पछता रहा है। लेकिन जिसने खाने की सोची थी लेकिन खाने का अवसर भगवान ने नहीं दिया वह भगवान के प्रति कृतज्ञ है।
आप कुछ भी करें लेकिन लड्डू को बेवजह बदनाम मत करिए वरना कितने बेचारे कुंवारे रह जाएंगे। वे सालों से शादी का लड्डू खाने का सपना संजोए हैं उनके साथ नाइंसाफी नहीं होनी चाहिए। शादी को लेकर उनके मन में अभी तक जो लड्डू फुट रहे हैं उसे फूटने दीजिए। उनके सपनों पर पानी फेरने का काम मत कीजिए। वैसे भी अब भगवान को भी शुद्ध प्रसाद की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए। क्योंकि यह मिलावट का दौर में शुद्धता की गारंटी कहाँ है। जब इंसान के खून में मिलावट, मुनाफाखोरी, नफ़रत, जातिवाद, धर्मवाद, अलगाववाद समाया है फिर उसकी सोच कैसे शुद्ध होगी।
अब लड्डू की बाजी लड्डू के हाथ में नहीं रही यह राजनीतिक लड्डू हो गया है। क्योंकि यह लड्डू सिर्फ प्रसाद ही नहीं वोटबैंक का भी लड्डू हो गया है। हालांकि इसकी पीड़ा हमारे देवों के अलावां उनके भक्तों को भी बहुत है तभी तो एक सियासी भक्त ग्यारह दिनों के उपवास पर चले गए हैं। जहाँ तक हमारा सवाल है हम तो अब असली चीजों का स्वाद ही भूल गए हैं। घी, तेल, दूध, दही, मिठाई और मसाला सब कुछ नकली आ गए हैं।
फिलहाल धरतीलोक के लिए एक बुरी खबर है। हाल के लड्डू विवाद और उस पर छिड़ी राजनीति पर देवलोक खासा नाराज है। धरती का टेंडर निरस्त कर सीधे देवलोक से प्रसाद भेजने का फैसला लिया गया है। इस फैसले का भक्तों ने दिल से स्वागत किया है। हलांकि राजनीतिक दलों ने इस पर चिंता जताते हुए इसे भक्तों के लोकतांन्त्रिक अधिकारों और आस्था के खिलाफ बताया है। इसे देवलोक की तानाशाही बताया गया है। लेकिन इस फैसले से भगवान और भक्त दोनों खुश हैं।