सच्ची मित्रता – वर्षा पटेल, ब्रुकलिन स्कूल, देहरादून।
हमारे जीवन में हमें बहुत लोग देखने को मिलते हैं। कुछ मतलबी होते हैं तो कुछ अच्छे होते हैं ,कुछ भला चाहते हैं तो कुछ दूसरों का अपमान चाहते हैं l हम अपने जीवन में बहुत दोस्त बनाते हैं पर सच्चे दोस्त हमेशा शुरुआत में ही बनते हैं , कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हमारे साथ अपने मतलब के लिए रहते हैं और कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हर मुश्किल समय में हमारी सहायता करते हैं l कुछ ऐसे होते हैं जो हमारे साथ सिर्फ आज भर रहते हैं और अगले दिन चले जाते हैं पर कुछ ऐसे होते हैं जो हमेशा हमारे साथ ही रह जाते हैं l
एक बार की बात है एक गांव में तीन दोस्त रहा करते थे l उनके घर पास ही थे, एक का नाम था अनन्या दूसरे का नाम था वैष्णवी और तीसरे का नाम था वर्तिका l वर्तिका बहुत ही ज्यादा पैसों के तंगी से गुजर रही थी। क्योंकि काफी समय से उसे कोई नौकरी नहीं मिल रही थी और इसी वजह से वह परेशान भी रहती थी। परंतु अनन्या और वैष्णवी बहुत ही अमीर थे l एक दिन वर्तिका शहर में नौकरी ढूंढने जाती है और उसे नौकरी मिल जाती है परंतु जिस कंपनी में वह काम करना चाहती थी , उस कंपनी के मालिक ने उससे पहले फार्म के नाम पर पैसे बहुत मांग लिए थे और फिर उसे नौकरी देने के नाम पर आजकल आजकल कर रहे थे। वर्तिका को कुछ दिन बाद पता चला कि वह नौकरी के नाम पर ठगी का शिकार हो गई। और उसके पैसे वापस भी नहीं वापस किए गए। अब वर्तिका के पास कुछ नहीं था क्योंकि उसने पैसे चुकाने के लिए अपनी सारी जमीन भी बेच दी थी अब वह और गरीब हो चुकी थी l परंतु उसने हार नहीं मानी वह अपनी दोस्त वैष्णवी के पास कुछ पैसे उधार लेने गई, परंतु वैष्णवी ने उसे ताना देते हुए कहा ” तुम गरीब लोग मेरे जैसे अमीरों के साथ शोभा नहीं देते और तुम चाहते हो कि मैं तुम्हें पैसे दूं और वैसे भी तुम्हें कितनी बार लोगों ने नौकरी देने से मना कर दिया और तुम एक लूजर की तरह मुंह उठाकर मेरे पास चली आई, और हां तू सुन अब मेरे पास कभी मत आना। अब से हमारी दोस्ती खत्म हो चुकी है l” यह सुनकर वर्तिका बहुत परेशान और दुखी हो जाती है और अपने आप से कहती है “काश मैंने ऐसे दोस्त बनाए ही ना होते l” उसके बाद वह थोड़ी उम्मीद लेकर अनन्या के पास जाती है और उससे पैसे उधार मांगती है और वादा करती है कि वह यह सारे पैसे अगले महीने वापस कर देगी, और अनन्या कहती है कि ” तुम्हें पैसे वापस करने की कोई जरूरत नहीं क्योंकि तुम मेरी दोस्त हो इसलिए तुम्हें जितने पैसे चाहिए मैं वह तुम्हें दूंगी और तुम्हें उन पैसों को लौटने की जरूरत नहीं है l मैं बस यह आशा करती हूं कि तुम्हें एक अच्छी नौकरी मिले l” यह सुनते ही वर्तिका बहुत खुश हो जाती है और उसे पता चल जाता है कि अच्छे और बुरे दोस्त कौन होते हैं l कुछ दिनों बाद उसे एक नौकरी भी मिल जाती है और वह अनन्या को सारा कर्ज वापस कर देती है और थोड़े दिनों में करोड़पति बन जाती है परंतु वैष्णवी की कंपनी डूब जाती है और वह गरीब हो जाती है इसलिए वह वर्तिका से पैसे मांगने आती है परंतु वर्तिका उसे याद दिलाती है कि पिछले बार उसने क्या कहा था और वैष्णवी अपने घर वापस चली जाती है l