डा• आकांक्षा दीक्षित(BREAKING NEWS EXPRESS )
क्लास का होना यूं तो बड़ी प्रतिष्ठा की बात मानी जाती है, परन्तु एक ऐसी क्लास भी है जिसके कंधों पर संस्कारों, मूल्यों, परंपराओं, मान्यताओं की जिम्मेदारी संविधान की अलिखित धारा के तहत डाल दी गई है। यह एक ऐसा क्लास है, जिसकी जिंदगी हर पल, हर दिन क्लास लगाए रहती ही है। अधिक सोचने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इस मिडिल क्लास के विषय में सोचने की फुर्सत किसी और के पास क्या, खुद मिडिल क्लास के पास भी नहीं है। मिडिल क्लास या मध्यमवर्ग की वही हालत है, जो आमतौर पर तीन भाई-बहनों में बीच वाले की होती है। अपवादों को छोड़कर बड़ा वाला प्यारा, छोटा वाला दुलारा और बीच वाला हालात का मारा ही पाया जाता है। मध्यमवर्गीय होने का एक लाभ यह भी है कि बिना कुछ किए जिन्दगी इंटरेस्टिंग बनी रहती है। एक टंटा ख़त्म होने से पहले ही दूसरा आकर खड़ा हो जाता है। मिडिल क्लास आदमी का जीवन इनसे ही जूझते -जूझते तमाम हो जाता है। इनके पास चर्चा के लिए विषय का अभाव कभी नहीं होता। बिजली कटौती, पानी की किल्लत, झगड़ालू पड़ोसी से लेकर नींबू,प्याज और टमाटर के भाव पर यहां निर्बाध चर्चा जारी रहती है। मजे की बात ये कि ऐसा कभी नहीं होता कि मिडिल क्लास मुद्दालेस हो जाए। इनकी एक विशेषता यह.भी है कि यहां जिनकी घर में कोई नहीं सुनता वो भी चाय की टपरी से लेकर फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर तक मुहल्ला पंचायत के मुद्दों सहित राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय मसलों पर गदर काटे रहते हैं।
मिडिल क्लास घरों की कुछ विशेषता इतनी सामान्य है कि इनका होना तो अनिवार्य ही है। यहां कभी भी बच्चे के सही नाप के कपड़े नहीं लिए जाते, हमेशा एक साइज बड़े ही लिए जाते हैं। क्या पता अचानक सोते-सोते दो इंच लंबा हो गया तो। और मान लो कि नहीं भी हुआ तो छोटा भाई या बहन पहनेंगे। रिस्क काहे को लेना। मिडिल क्लास समझदार बच्चों के जीवन में अफेयर की उम्र, करेंट अफेयर में ही निकल जाती है। हर मध्यमवर्गीय माँ-बाप सोते-जागते बच्चों को याद दिलाते रहते है कुछ बन जाओगे तभी कोई पूछेगा।
इन घरों में एक तो बाहर से खाना मंगाना ही क्लेश का कारण होता है, पर यदि किसी दिन अवसर विशेष हो या खाना बनाने वाली ने कलछुल-चमचा डाउन हड़ताल कर दी हो, ऐसे में यदि बाहर से खाना आ भी जाए तो जिन डब्बों में आता है, उनको धोकर दो-चार बार प्रयोग करना रवायत है। जो ऐसा नहीं करता उसे शुद्ध मध्यमवर्गीय नहीं समझा जाता है। किसी मेहमान को खाना बांधकर देना हो तो ये डब्बे बहुत काम आते है। विशेष परिस्थितियों में ही बाहर होटल, रेस्टोरेंट में खाना खाने जाने पर एक तो मिडिल क्लास परिवार पहले मेनू के दाहिने नजर डालता है। इटैलियन से लेकर कांटीनेंटल तक सब पर निगाह मारने के बाद छोटे भटूरे या बहुत हुआ तो स्पेशल डोसा खाकर वापस आ जाता है। मध्यमवर्गीय प्राणी कभी मिनरल वाटर आर्डर नहीं करता और कहीं कर दे तो उसकी खाली बोतल को खाली छोड़कर आने का पाप कभी नहीं करता। इन परिवारों में टूथपेस्ट, शैम्पू , क्रीम इत्यादि की बोतले और ट्यूब उनकी अंतिम सांस तक निचोड़कर प्रयोग किए जाते है और ऐसा ना करना इतना खतरनाक होता है कि आपको मिडिल क्लास से बाहर होने का अहसास कराने वाला ‘ये तो बड़े आदमी हैं’ वाला ताना तक सुनना पड़ सकता है। बच्चों की जिद से त्रस्त कभी-कभार पिज्जा लेने वाली मिडिल क्लास मम्मियां, कभी भी फ्री में साॅस, कैचेप, आरिगेनो और चिली फ्लेक्स के पाउच मांगना और उनको घर लाना नहीं भूलतीं। शुद्ध मिडिल क्लास वाले
सब्जी खरीदने पर फ्री का धनिया -मिर्चा लेना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते है। पेट्रोल के दाम मध्यरात्रि से पचास पैसे बढ जाने की घोषणा सुनते ही मिडिल क्लास के लोग झटपट अपनी स्कूटर, मोटरसाइकिल और स्कूटी में सौ -दो सौ का पेट्रोल डलवाने चल देते हैं। टंकी फुल करवाना इनके सिलेबस से बाहर की बात होती है। मिडिल क्लास प्रसन्न भी बहुत जल्दी हो जाता है। किसी फ्री योजना का नाम सुनते ही इनकी आंखे चमक उठती हैं। ये और बात हे कि ये योजनाएं उनके किसी काम की नहीं होती। मिडिल क्लास वो क्लास है जिसे ना तो गरीबों की योजनाओं के लाभ मिलते है और ना अमीरों जैसा सुख प्राप्त होता है। यह वर्ग जीवन भर मेहनत करता है। ट्रैफिक चालान से लेकर, वाटर टैक्स, हाउस टैक्स और इनकम टैक्स तक पूरी ईमानदारी से टैक्स भरता है, पर सुविधाओं के नाम पर इनके हाथ शायद ही कुछ लगता हो। ये वर्ग वो वर्ग है जो लखटकिया कार आने की बात सुनते ही प्रसन्न हो उठता है। जिनका मन मयूर सेल और डिस्काउंट के नाम पर ही नर्तन करने लगता है। कुल मिलाकर यह वर्ग कभी निराश नहीं होता। सपने देखना और उन्हें सच करने की जद्दोजहद में ही इनका जीवन निकल जाता है, पर सच यह भी है कि यही वह क्लास है जो किसी भी समाज की रीढ़ की हड्डी होता है और सारी आशाओं, उम्मीदों और स्वप्नों को समेटे सदैव सकारात्मक रहता है ।
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