पुरखों को माँ गंगा ने दिया मोक्ष, हमने आँचल में दिया गंदगी
तर्पण सामग्री, उतारे बाल और प्लास्टिक की थैलियां गंगा घाटों पर बिखरी पड़ी
प्रभुनाथ शुक्ल
भदोही- BREAKING NEWS EXPRESS)भारत देश विविधताओं और अनेक संस्कृतियों को समेटे हुए है। धर्म , आस्था और ,परम्पराओं को समेटे इस देश के लोग प्रकति से लेते तो बहुत कुछ हैं ,लेकिन देने के नाम पर सिर्फ और सिर्फ गंदगी और पर्यावरण ,वातावरण को ख़राब करने वाला कचरा। अभी कुछ दिनों पहले ही श्राद्ध के दिन निकले हैं. पितृ विसर्जन पर गंगा तट पर अपने पितरों का पिंडदान करने आए हज़ारों लोग माँ गांग के पवित्र आँचल में गंदगी छोड़ कर चले गए। माँ गंगा तो हमारे पितरों को मोक्ष दिला दिया, लेकिन हमने उनकी विनम्रता के बदले घाटों पर मुंडन के उतारे बाल, तर्पण सामग्री और प्लास्टिक कचड़े छोड़ गए। गंगा को साफ करने की किसकी जिम्मेदारी है इस विचार नहीं किया। यह हाल सीतामढ़ी और दूसरे प्रमुख गंगा घाटों की है।
हिंदू धर्म संस्कार में पितृ विसर्जन का पर्व बहुत ही पवित्र माना जाता है। उस दिन पितरों का तर्पण और पिंडदान किया जाता है। आमतौर पर तर्पण नदियों, तालाबों और सरोवर के किनारे किया जाता है। भदोही जनपद में पिछले बुधवार को पितृ विसर्जन के दौरान गंगा तट पर पुरखों का तर्पण किया गया। दक्षिणांचल स्थित गंगा के घाटों पर लाखों की संख्या में लोगों ने श्राद्ध किया। गंगा घाट के किनारे मुंडन संस्कार और स्नान के बाद पितरों तर्पण किया। लेकिन तर्पण के बाद गंगा घाटों पर जिस प्रकार की गंदगी फैली है उसे देखकर शर्म आती है। तर्पण करने वाले लोग अपने साथ लाए प्लास्टिक की थैलियां, पूजा सामग्री और मुंडन के बाल वहीं छोड़ चले गए। घाटों पर जाकर देखिए कितनी गंदगी बिखरी हुई है। क्या इस तरह की सोच से हम गंगा को साफ सुथरा रख सकते हैं।
पौराणिक एवं धार्मिक स्थल सीतामढ़ी में गंगा तट पर गन्दगी का अम्बार लगा है। यह स्थिति सिर्फ सीतामढ़ी की नहीं दूसरे गंगा घाट की भी कमोबेश यहीं है। महर्षि बाल्मीक आश्रम माँ गंगा के तट पर स्थिति है। गंगा के आसपास गांवों में बसे लोग भोर से ही गंगा में डूबकी लगाकर सुबह की शुरआत पूजा-पाठ से करते हैं। जनपद भदोही के साथ-साथ कई जिलों के श्रद्धालु धार्मिक स्थल सीतामढ़ी आते हैं।
धार्मिक मान्यता कर अनुसार महर्षि बाल्मीकी का आश्रम सीतामढ़ी में था। माँ सीता ने अपना वनवास काल यहीं व्यतीत किया। बाल्मीक आश्रम में लवकुश कुमारों का जन्म हुआ। इसी महर्षि बाल्मीकी आश्रम में लवकुश कुमारों को शिक्षा मिली। भगवान श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा लवकुश ने यहीं बाधा था। ऐसी पावन धरती पर माँ गंगा का आँचल मैला हो गया है। इसके लिए कोई और नहीं हम आप ही जिम्मेदार हैं।
गंगा की स्वच्छता राष्ट्रीय बहस का मुद्दा रहा है। लेकिन हम सिर्फ सरकारों के भरोसे गंगा को साफ नहीं कर सकते। सफाई एक संस्कार है। भारत स्वच्छता मिशन और गंगा की स्वच्छता पर अरबों रुपए पानी में बह गए, लेकिन भागीरथी का आंचल मैला का मैला रह गया। गंगा को मैली करने में प्रकृतिक नहीं सिर्फ इंसान जिम्मेदार है। क्योंकि हमारी सोच आधुनिक है, लेकिन गिरी हुईं।
सीतामढ़ी में गंगा घाट तक जानें वाला रास्ता गन्दगी और कीचड़ से भरा हुआ है। घाट पर स्नान करने आने वाले लोग घाट तक बहुत मुश्किल से होकर गुजर रहें है। लेकिन जिम्मेदार लोग मौन हैं। अब गंगा घाट की सफाई कब होगी यह बड़ा सवाल है। फ़िलहाल गंगा घाट तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को मुश्किल से गुज़रना पड़ रहा है