(BNE DESK)जैसा आप सभी जानते हैं भारत के महत्वपूर्ण नेताओं मे से एक, सच्चे देशभक्त,अति ईमानदार, सादगी के प्रतिमूर्ति लाल बहादुर शास्त्री जी का आज 2 अक्टूबर को 118 वीं जयंती है । वैसे तो अनेकों ऐसे वाकये हैं जिससे हँसमुख स्वभाव वाले शास्त्रीजी की सादगी के अलावा विनम्रता, कर्मठता, सरलता, नियमबद्धता, दृढ़निश्चयता वगैरह स्पष्ट झलकती है। आज उनको नमन करते हुये आप सभी के साथ मैं यहाँ उनके बचपन के समय का एक ऐसा वाकया संक्षेप में सांझा कर रहा हूँ जिससे उनकी कर्मठता के साथ साथ नियमबद्धता, दृढ़निश्चयता स्पष्ट परिलक्षित होती है –
जैसा हम सभी जानते हैं, शास्त्रीजी जब केवल डेढ़ वर्ष के ही थे तभी उनके पिताजी, जो एक स्कूल शिक्षक थे का निधन हो गया था। इसलिये उनके परिवार को काफी गरीबी और मुश्किलों का सामना करना पड़ा यानि आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। एक बार उन्हें बनारस से गंगा पार कर अपने घर रामनगर वापस लौटना आवश्यक था मगर उनके पास किराये के पैसे नहीं थे। ऊपर से अंधेरा भी हो चला था। चूँकि परिवार के नियमानुसार रात्रि के पहले ही घर वापस पहुँचना आवश्यक था और पास में नौका से पार हो जाने के लिए पैसे नहीं थे अत: उस किशोर उम्र में कर्मठ व दृढ़निश्चयी शास्त्रीजी तैरकर ही घर पहुंचने का निश्चय किया हालाँकि उस समय गंगा नदी भी पूरे उफान पर थी फिर भी उन्होनें असीम साहस का परिचय देते हुये गंगा में छलांग लगा दी और गंगा तैरकर पार कर अपने गांव पहुंच गये। नौका से पार जा रहे सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए। वे सभी लोग आपस में उनकी साहस की प्रशंसा करते हुये एक दूसरे को दिखाते हुये कह रहे थे – इस लड़के को देखो….अकेले ही तैर रहा है।
अन्त में आप सभी के ध्यान में है ही तीस से अधिक वर्षों तक अपनी समर्पित सेवा के दौरान शास्त्रीजी ने ऐसे अनेक साहसिक व बुद्धिमत्तापूर्ण कदम उठाये हैं जिसके चलते वे एक ऐसे राजनेता बनकर उभरे जिन्होंने लोगों की भावनाओं को समझा। जबर्दस्त आंतरिक शक्ति वाले शास्त्री जी लोगों के बीच ऐसे दूरदर्शी थे जो देश को प्रगति के मार्ग पर लेकर आये। इन्हीं सभी कारणों के कारण हम सभी मानते हैं लाल बहादुर शास्त्रीजी हमारी भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठ पहचान हैं।
महान राजनीतिज्ञ लाल बहादुर जी शास्त्री के बलिदान और उनकी विनम्रता,दृढता,सहिष्णुता,सादगी,देशभक्ति एवं ईमानदारी के साथ साथ अंतिम दम तक निःस्वार्थ भाव से की गयी राष्ट्रसेवा के चलते उन्हें मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
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