नववर्ष 2026: नव चेतना, नव संकल्प और संतुलित जीवन की शुरुआत
-सुनील कुमार महला
‘नववर्ष प्रभात में बरसे, ईश्वर का शुभ आशीष अपार,
मार्तण्ड रश्मियों से जागे, नव-जोश, उमंग, नव-विस्तार।
खिले मन सभी के जग में, दुःख-अवसाद का नाम न हो,
मंगलमय हो जीवन-पथ, शुभकामनाएं अविराम कहो।’
अंग्रेजी वर्ष 2025, इकतीस दिसंबर को समाप्त हो गया और अब हम सभी वर्ष 2026 के नवप्रभात में प्रवेश कर गए हैं। वर्ष 2025 में हम सभी ने बहुत से संकल्प रखे, कुछ पूरे हो गए, कुछ अधूरे। जीवन का एक क्रम है, आदमी जो चाहे,वह सब कुछ पूरा हो जाए, ऐसा बहुत कम ही होता है। जीवन की धूप-छांव में कुछ पूरा, कुछ अधूरा चलता रहता है। आदमी का काम है-कर्म करना, निरंतर मेहनत और ईमानदारी से कर्तव्य पथ पर चलना। संघर्ष ही असली जीवन है। बिना संघर्ष के जीवन, जीवन नहीं है।जीवन में समस्याएँ आना स्वाभाविक है, उनसे डरना या घबराना समाधान नहीं है। असली फर्क इस बात से पड़ता है कि हम समस्या को देखने और उससे निपटने का दृष्टिकोण कैसा रखते हैं। मन के भीतर यदि अशांति, भय और नकारात्मकता है, तो वही बाहर की परिस्थितियों में भी दिखाई देगी और यदि मन शांत, संतुलित और स्वीकार भाव से भरा है, तो बाहरी समस्याएँ भी उतनी बड़ी नहीं लगेंगी। समय हर समस्या को बदल देता है, इसलिए किसी भी वर्तमान संकट को स्थायी मानकर भयभीत नहीं होना चाहिए। समस्या को कितना महत्व देना है, यह हमारे हाथ में है। साथ ही, अपने इष्टदेव और परमात्मा पर पूर्ण विश्वास और समर्पण रखना चाहिए, यह समझते हुए कि वही शक्ति भीतर आत्मा के रूप में विद्यमान है।
हर स्थिति ईश्वर की ही व्यवस्था है:-
जीवन में कुछ अच्छा हो तो उसे केवल अपना पुरुषार्थ कहना और बुरा हो तो ईश्वर पर डाल देना, यह सही दृष्टि नहीं है। वास्तव में हर स्थिति ईश्वर की ही व्यवस्था है। हमें परिस्थितियों को स्वीकार करना चाहिए, लेकिन प्रयत्न करना कभी नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि प्रयत्न करना हमारा कर्तव्य है।संक्षेप में, यह विचार सिखाता है कि समर्पण, संतुलन, आत्मविश्वास और निरंतर प्रयास-यही जीवन की समस्याओं से निपटने का सही मार्ग है। यदि जीवन में सबकुछ आसानी और सरलता से मिलता चला जाए, तो जीवन जीने की असली अनुभूति कभी होगी ही नहीं, इसलिए जीवन पथ पर ईश्वर ने पग-पग संघर्ष की भी रचना की तो पथ को सरल व आसान भी बनाया। नववर्ष के साथ अब हम नव शुरूआत करने जा रहे हैं।हर वर्ष की भांति हर किसी के पास नये संकल्प हैं, नव ऊर्जा है, नया विश्वास है, जोश है, उमंग है। संकल्पों का तो जैसे उजास है। मन में बहुत कुछ संजोए रखा है, हम सभी ने नववर्ष के लिए। नववर्ष में हम बुरे समय को भूलें, कुछ नया व अच्छा करने की सोचें। सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ें।बीते पलों, बीती बातों की धूल को झाड़कर नव संकल्प की पगडंडियां पकड़ें। आदमी के मन में संकल्प हो, दृढ़ विश्वास हो, सकारात्मक सोच हो, तो क्या संभव नहीं हो सकता है ? हमारी स्मृतियां हमें याद नहीं करनीं हैं, भूत; भूत होता है।हम वर्तमान में जीएं, भविष्य की चिन्ता छोड़ें।आगे क्या होगा, कैसे होगा, सब भूलें। वर्तमान ही जीवन है। भविष्य के पथ पर आगे बढ़ें, लेकिन भविष्य के लिए ज़्यादा सोचें नहीं। तनाव, अवसाद आदमी को कहीं का नहीं छोड़ता। चिंता किसी भी बात की नहीं करनी है। चिंता का फायदा क्या है ? जब कोई चीज़ हमारे वश में ही नहीं है, तो उस पर चिंता करके हम क्या कर लेंगे ?
नववर्ष आत्ममंथन, आत्मसुधार और नई शुरुआत का पावन अवसर:-
कहना ग़लत नहीं होगा कि नववर्ष आत्ममंथन, आत्मसुधार और नई शुरुआत का पावन अवसर है। नव प्रभात की श्वेत किरणें जब धरती पर उतरती हैं, तो केवल अंधकार ही नहीं मिटता, बल्कि चेतना के भीतर नई संभावनाओं के बीज भी बोए जाते हैं। नववर्ष समय की देहरी पर खड़ा होकर हमें नई दिशाओं का आमंत्रण देता है। बीते कल की थकान को उतारकर यह उम्मीदों की चादर ओढ़ा देता है। हर सुबह नए स्वप्नों की सुगंध लेकर आती है और हर शाम विश्वास की लौ जलाती है। मन के आंगन में संकल्पों के दीप प्रज्वलित होते हैं। टूटे अनुभवों से सीखकर आगे बढ़ने का साहस इसी क्षण जन्म लेता है। नववर्ष प्रेम, करुणा और सौहार्द का मधुर संगीत रचता है। यह जीवन के सूखे पन्नों पर रंग भरने का अवसर देता है। मुस्कानें गहरी होती हैं और रिश्ते और मजबूत बनते हैं। नववर्ष हमें स्वयं से बेहतर बनने की प्रेरणा देता है। सचमुच, नववर्ष नई रोशनी, नई ऊर्जा और नए विश्वास की अनुपम शुरुआत है।बीता हुआ समय अनुभव बनकर हमारे साथ रहता है-जो टूटा, वह सीख बना; जो हारा, वह ज्ञान। याद रखिए कि हर विफलता के गर्भ से ही दृढ़ संकल्प जन्म लेता है।जीवन की राहें कई बार थका देती हैं, पर नववर्ष हमें फिर से साहस के साथ आगे बढ़ने का आमंत्रण देता है। जो स्वप्न अब तक मौन में सोए थे, वे शब्दों में ढलकर, कर्म के रूप में निखरने को तैयार हैं। संघर्षों की कठोर शिलाओं पर अब हम विश्वास, परिश्रम और धैर्य से अपना नाम लिखेंगे। यह समय रुकने या झुकने का नहीं, बल्कि हर अंधियारी को चुनौती देकर हार को जीत में बदलने का है, क्योंकि वास्तव में यही तो हमारे जीवन की सच्ची तैयारी है। नववर्ष 2026 में सबसे पहला संकल्प स्वयं पर अडिग विश्वास का हो। हमारे भीतर अपार शक्ति छिपी है, जिसे पहचानना और हर दिन निखारना आवश्यक है। जब व्यक्ति स्वयं पर विश्वास करता है, तो परिस्थितियां भी उसका मार्ग देने लगती हैं।
अडिग हों हमारे संकल्प:-
याद रखिए कि इतिहास वही रचते हैं, जो अपने संकल्पों पर अडिग रहते हैं। इस नववर्ष में रिश्तों को प्राथमिकता देना समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। आधुनिक जीवन में आभासी दुनिया ने हमें स्क्रीन के करीब और अपनों से दूर कर दिया है। मोबाइल और सोशल मीडिया से थोड़ी दूरी बनाकर बुजुर्गों, अभिभावकों, रिश्तेदारों, मित्रों और परिवार के साथ समय बिताना ही सच्चा सुख है। बुजुर्गों का अनुभव, माता-पिता का स्नेह और मित्रों का साथ जीवन को संबल देता है। इसलिए स्क्रीन डिटॉक्स को केवल विचार नहीं, बल्कि व्यवहार में उतारने का संकल्प लें। प्रकृति के सान्निध्य में बिताया गया समय मन और तन दोनों को ही स्वस्थ करता है। खुली हवा में टहलना, पेड़ों, पक्षियों और वनस्पतियों के बीच समय बिताना हमें जीवन के मूल से जोड़ता है। नववर्ष में प्रतिदिन पैदल चलने, प्रकृति का आनंद लेने और पर्यावरण संरक्षण के लिए छोटे-छोटे प्रयास करने का संकल्प लें। पशु, पक्षियों और धरती के प्रति करुणा ही मानवता की सच्ची पहचान है। स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना भी नववर्ष का महत्वपूर्ण लक्ष्य होना चाहिए। मोबाइल से दूरी बनाकर पर्याप्त नींद लें, संतुलित दिनचर्या अपनाएं और शरीर के संकेतों को समझें। योग, ध्यान और मेडिटेशन केवल अभ्यास नहीं, बल्कि जीवन को संतुलित रखने के साधन हैं। अध्यात्म हमें भीतर से मजबूत बनाता है और बाहरी तनावों से लड़ने की शक्ति देता है। नववर्ष हमें कुछ नया सीखने और सिखाने की प्रेरणा भी देता है। ज्ञान का आदान-प्रदान समाज को समृद्ध बनाता है। साथ ही धन और समय-दोनों की कीमत समझना आवश्यक है। अनावश्यक तुलना छोड़कर आत्मसंतोषी बनना ही वास्तविक समृद्धि है। संसार में कोई पूर्ण नहीं है; ईश्वर ने सभी को अलग-अलग विशेषताओं के साथ रचा है। इसलिए स्वयं को कमतर आंकने या दूसरों से निरंतर तुलना करने का बोझ त्याग दें। इस नववर्ष में ‘ना’ कहना सीखना भी उतना ही जरूरी है। हर अपेक्षा को पूरा करने की कोशिश में स्वयं को थका देना बुद्धिमानी नहीं। आत्म-मूल्यांकन करें, अपनी सीमाओं को पहचानें और संयम रखें। कबीर का यह संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है कि ‘धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।’ धैर्य और संयम से ही स्थायी सफलता मिलती है। अंततः, नववर्ष 2026 आशा का वह दीप है, जो अंधकार की हर परत को आलोकित कर सकता है।यदि हम संकल्प, कर्म और करुणा का मार्ग चुनें। नई शुरुआत, नई चेतना और नई दृष्टि के साथ आज से बेहतर कल रचने का यही जीवन-संधान है। नववर्ष हमें यही सिखाता है कि जहां आशाएं थककर बैठी थीं, वहीं से उड़ान संभव है-बस विश्वास के पंख फैलाने होंगे। नववर्ष-2026 की मंगलकामनाओं के साथ।










