



Justice Prashant Kumar Row: SC ने जस्टिस प्रशांत कुमार को आपराधिक मामलों की सुनवाई से हटाने वाला अपना आदेश वापस लिया
हाईकोर्ट के 13 जजों ने जस्टिस प्रशांत कुमार केस में सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर नाराजगी जताई थी।
Justice Prashant Kumar Row: सुप्रीम कोर्टऔर हाईकोर्ट में टकराव की स्थिति हुए सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार को आपराधिक मामलों की सुनवाई से हटाने वाला अपना आदेश वापस ले लिया है। इस मामले में हाईकोर्ट के 13 जजों ने जस्टिस प्रशांत कुमार केस में सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर नाराजगी जताई थी। हाई कोर्ट के 13 जजों ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) को पत्र लिखा था। CJI बीआर गवई के अनुरोध पर सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार (8 अगस्त) को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज कुमार पर आपराधिक मामलों की सुनवाई पर प्रतिबंध लगाने वाला अपना आदेश वापस ले लिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस प्रशांत कुमार के खिलाफ अपनी टिप्पणियों को भी हटा दिया है, जिन्हें आपत्तिजनक बताया गया था। साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा, “हम इस मामले को बंद करते हैं। जस्टिस प्रशांत कुमार को फटकार लगाने वाले अपने आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हमारा इरादा हाई कोर्ट के जजों पर आक्षेप लगाना या उन्हें शर्मिंदा करना नहीं था।” पीटीआई के मुताबिक, शीर्ष अदालत ने कहा, “हम दोहराते हैं कि हमने जो कुछ भी कहा वह न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखने के लिए था।”
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अपनी वह टिप्पणी भी हटा दी जिसमें उसने जज की ‘सबसे खराब’ आदेश पारित करने के लिए आलोचना की थी। शीर्ष अदालत ने कहा किहम पूरी तरह से मानते हैं कि हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रोस्टर के मास्टर हैं, हम मामले में फैसला लेने का काम उन पर छोड़ते हैं। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने 4 अगस्त को एक आदेश में जस्टिस कुमार को एक दीवानी मामले में जारी आपराधिक समन को बरकरार रखने के उनके फैसले पर आपराधिक मामलों की सुनवाई से रोक दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के एक आदेश पर नाराजगी जताई था, जिसमें वह निश्चित अवधि की सजा पर रोक लगाने की याचिका को खारिज करते समय स्थापित कानूनी सिद्धांतों को लागू करने में विफल रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने एक दीवानी मामले में आपराधिक कार्यवाही की अनुमति देने के लिए जस्टिस प्रशांत कुमार के प्रति नाराजगी जताई थी। पीठ ने 4 अगस्त को एक अभूतपूर्व आदेश में जस्टिस प्रशांत कुमार को आपराधिक मामले न सौंपने का निर्देश दिया था, क्योंकि उन्होंने एक दीवानी विवाद में आपराधिक प्रकृति के समन को गलती से बरकरार रखा था।
इसी पीठ ने एक अन्य मामले में हाई कोर्ट के फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। पीठ ने कहा, “इलाहाबाद उच्च न्यायालय का एक और आदेश है जिससे हम निराश हैं।” जस्टिस पारदीवाला ने छह अगस्त के आदेश में कहा, “सबसे पहले विषय-वस्तु पर गौर करना बहुत जरूरी होता है। उसके बाद अदालत को संबंधित मुद्दे पर गौर करना चाहिए। अंत में, अदालत को वादी की दलील पर गौर करना चाहिए और फिर कानून के सही सिद्धांतों को लागू करना चाहिए।” शीर्ष अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट का आदेश कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण है तथा स्थापित न्यायशास्त्र के प्रति उपेक्षा दर्शाता है।