
नशामुक्ति के रास्ते स्वस्थ भारत-विजय गर्ग Healthy India on the path of de-addiction
Healthy India on the path of de-addiction:भारत विश्व की सबसे प्राचीन और समृद्ध संस्कृतियों में से है, लेकिन आज यह अनेक सामाजिक समस्याओं से जूझ रहा है। इनमें से एक समस्या नशे की बढ़ती लत है, जिसने न केवल समाज की जड़ों को कमजोर किया है, बल्कि नई पीढ़ी के भविष्य को भी अंधकारमय बना दिया है। युवा किसी भी राष्ट्र की रीढ़ होते हैं। उनकी ऊर्जा किसी भी देश की प्रगति और विकास की दिशा तय करती है। भारत विश्व का सबसे युवा देश है। यहां 65 फीसद से अधिक आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है, लेकिन दुखद है कि देश आज नशे की समस्या समस्या से जूझ रहा है। नशा एक ऐसी बुराई है जो युवा वर्ग की क्षमता, नैतिकता और उनके उज्जवल भविष्य को निगल रही है। यह समस्या केवल व्यक्तिगत स्तर तक सीमित नहीं, बल्कि इसका प्रभाव समाज और राष्ट्र के विकास पर भी पड़ता है। आजकल युवाओं में नशे की लत तेजी से बढ़ रही है। शराब, तंबाकू, गांजा, अफीम और नशीली दवाइयों के अलावा, आधुनिक समय में कोकीन, हेरोइन और ‘सिंथेटिक ड्रग्स’ का प्रचलन भी खूब बढ़ा है।
नशा एक ऐसी समस्या है, जो किसी भी व्यक्ति के जीवन को खोखला कर देता है। इसका असर नशा करने वाले व्यक्ति तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि नशे की लत का दायरा बहुत व्यापक होता है जो परिवार, समाज और यहां तक कि पूरे राष्ट्र को अपनी चपेट में ले लेता है। नशा करने वाला शारीरिक और मानसिक दोनों स्तरों पर कमजोर होने लगता है। लगातार नशा करने से हृदय रोग, फेफड़ों समस्या और लीवर खराब होने के साथ कैंसर और अन्य घातक बीमारियां हो सकती हैं। इसके अलावा व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है, जिससे वह वह दूसरी बीमारियों का भी शिकार बनता जाता है। यह नशा ही है जो तनाव, अवसाद, भूलने की बीमारी और आत्महत्या की प्रवृत्ति को जन्म देता है। व्यक्ति निर्णय लेने की क्षमता तक खो देता है, जिससे उसकी रोजमर्रा की जिंदगी पर गहरा असर पड़ता है। नशे की लत व्यक्ति के आचरण को बदल देती है। वह चिड़चिड़ा और असंवेदनशील हो जाता है। यह बदलाव उसकी हा है। सामाजिक प्रतिष्ठा और रिश्तों को प्रभावित करता है।
नशे पर होने वाला खर्च परिवार की आर्थिक स्थिति को कमजोर कर देता है। सीमित संसाधनों के बावजूद नशे की लत पूरा करने के लिए परिवार के अन्य सदस्यों की जरूरतों की अनदेखी की जाती है। नशा करने वाले व्यक्ति का स्वभाव आक्रामक हो जाता है, जिससे घरेलू हिंसा की घटनाएं बढ़ती हैं। महिलाएं और बच्चे इसके प्रमुख रूप से शिकार होते हैं। नशे की लत में डूबे पिता के बच्चे शिक्षा में पिछड़ने लगते हैं, क्योंकि घर के नकारात्मक माहौल के कारण उनका मानसिक और भावनात्मक विकास बाधित होता है कई बार बच्चे भी नशे की ओर आकर्षित हो जाते हैं। समाज एकजुटता और सामंजस्य से चलता है, लेकिन नशे की समस्या इसे गंभीर रूप से प्रभावित करती है। नशा करने वाला व्यक्ति अपनी लत पूरी करने के लिए गलत काम करने लगता है। इसके अलावा नशे की तस्करी और वितरण से जुड़े गिरोह समाज में असुरक्षा फैलाते हैं। शराब या अन्य मादक पदार्थों के नशे में वाहन चलाने से सड़क दुर्घटनाएं भी बढ़ती हैं। युवा पीढ़ी गलत आदतों को अपनाने लगती है, जिससे समाज का भविष्य खतरे में पड़ जाता है। नशा न केवल उनकी शिक्षा और करिअर को बाधित करता है, बल्कि उनके सपनों और तमाम संभावनाओं को भी नष्ट कर देता है। नशा करने के पीछे कई कारण हैं। तनाव, अवसाद, अकेलापन और असफलता के कारण लोग नशे की और आकर्षित होते हैं। दूसरी और रिश्तों से जुड़ी समस्याओं और बेरोजगारी के कारण भी युवा तनाव में आने से नशे का सहारा लेते हैं। कभ-कभी दोस्तों के प्रभाव में आकर भी नशा करने लगते हैं।
नशे की समस्या राष्ट्र की प्रगति और विकास को भी बाधित करती है। युवा पीढ़ी नशे के कारण कमजोर हो जाती है। इससे देश की उत्पादकता विकासशील क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके कारण होने वाले अपराध और दुर्घटनाएं भी देश की अर्थव्यवस्था पर भार डालती हैं। क पदार्थों की मादक तस्करी अक्सर अक्सर आतंकवादी गतिविधियों को फंड करने का जरिया बनती है। इससे देश की आंतरिक सुरक्षा को भी खतरा होता है। नशे की लत से उपजी समस्या केवल एक पीढ़ी तक सीमित नहीं रहती, बल्कि यह अगली पीढ़ी को भी प्रभावित करती है। गर्भवती महिलाओं द्वारा नशा करने से नवजात बच्चों पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है। ऐसी परिस्थितियों में शारीरिक विकृतियां और मानसिक समस्याएं आम हैं। इसका समाधान केवल कानून बना कर या सजा देकर संभव नहीं है। इसके लिए समाज को एकजुट होकर काम करना होगा। हर व्यक्ति को समझना होगा कि नशा एक धीमा जहर है, जो न केवल उसे बल्कि उसके आसपास के हर इंसान को प्रभावित करता है। जब तक हम इसके दुष्परिणामों को समझ कर इसे जड़ इसे मिटाने का प्रयास नहीं करेंगे, तब तक एक स्वस्थ और समृद्ध भारत का सपना अधूरा रहेगा।
भारत को नशामुक्त बनाना केवल सरकार की ही नहीं, हर नागरिक की जिम्मेदारी है। लोगों को नशा मुक्त बनाने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण कदम उठाना जरूरी है। स्कूलों और कालेजों में नशे के दुष्प्रभावों पर आधारित विशेष कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। सोशल मीडिया, टीवी और अन्य माध्यमों से युवाओं को जागरूक किया जाना चाहिए। युवाओं को यह समझाया जाए कि नशा एक झूठा सहारा है और यह उनके जीवन को बर्बाद कर सकता है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। युवाओं के लिए नशे की चीजें सुलभ न हों, इसके लिए पुलिस और प्रशासन को सतर्क रहना चाहिए। माफिया और अवैध नशीले पदार्थों के नेटवर्क को खत्म करना आवश्यक है। नशे के शिकार लोगों के के लिए अधिक पुनर्वास केंद्र खोले जाएं। प्रशिक्षित मनोचिकित्सकों और काउंसलरों की नियुक्ति हो। परिवारों को चाहिए कि वे बच्चों के साथ संवाद बढ़ाएं और उनकी समस्याओं को समझें। बच्चों को सकारात्मक माहौल दें, ताकि वे किसी भी तनाव या दबाव में न आएं। नशा करने वालों को नकारने के बजाय उन्हें सुधारने की कोशिश करनी चाहिए। युवाओं को खेल, संगीत, कला और अन्य रचनात्मक गतिविधियों की ओर प्रेरित किया। जाए।
नशा केवल एक व्यक्ति को ही नहीं, बल्कि पूरे देश को कमजोर करता है। अगर भारत को विश्वगुरु बनने की दिशा में बढ़ना है, तो नशे जैसी बुराई ई को खत्म करना आवश्यक है। यह तभी संभव है जब हम सब मिल कर प्रयास करें। नशामुक्त भारत का सपना तभी साकार होगा, जब हर नागरिक न केवल स्वयं नशे से दूर रहे, बल्कि दूसरों को इसके दुष्परिणामों से अवगत कराए। युवाओं को नशे के चंगुल से बाहर निकालना बेहद जरूरी यह केवल सामाजिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण के लिए आवश्यक कदम है। युवाओं को नशे से मुक्त करना सिर्फ एक समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि यह एक स्वस्थ, समृद्ध और खुशहाल भारत के निर्माण का आधार है। नशामुक्त युवा ही सशक्त भारत का निर्माण कर सकता है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
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