नई दिल्ली (ब्रेकिंग न्यूज़ एक्सप्रेस ) सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार सुबह एक अहम फैसला सुनाते हुए अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जा पर होने पर अपनी मुहर लगा दी। इस फैसले में चीफ जस्टिस और जस्टिस पारदीवाला एकमत है जबकि जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा का फैसला अलग है।आपको बता दें कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा मिला हुआ है,जो धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने तथा उनके प्रशासन का अधिकार भी देता है
फैसला सुनाने वाली पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जे बी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा भी शामिल हैं। जजों की पीठ ने 8 दिन तक दलीलें सुनने के बाद एक फरवरी को इस सवाल पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
एक फरवरी को एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के मसले पर देश की शीर्ष अदालत ने कहा था कि एएमयू एक्ट में 1981 का संशोधन, जिसने प्रभावी रूप से इसे अल्पसंख्यक दर्जा दिया, ने केवल आधे-अधूरे मन से काम किया। प्रतिष्ठित संस्थान को 1951 से पहले की स्थिति में बहाल नहीं किया। एएमयू एक्ट, 1920 अलीगढ़ में एक शिक्षण और आवासीय मुस्लिम विश्वविद्यालय की बात करता है। जबकि 1951 के संशोधन के जरिए विश्वविद्यालय में मुस्लिम छात्रों के लिए अनिवार्य धार्मिक शिक्षा को खत्म करने का प्रावधान किया गया।
इस प्रतिष्ठित संस्थान की स्थापना साल 1875 में सर सैयद अहमद खान की अगुवाई में मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज के रूप में की गई थी। कई साल के बाद 1920 में, इसे एक विश्वविद्यालय में तब्दील कर दिया गया।