स्वास्थय के क्षेत्र में एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है। झोला छाप ,मेडिकल स्टोर के साथ साथ एक्सपर्ट डॉक्टर भी बिना किसी ठोस कारण के एंटीबायोटिक दवाओं का चलन बढ़ाते जा रहे है ,जो दवा आपके उत्तम स्वास्थय के लिए दी जानी चाहिए ,वहीँ एंटीबायोटिक दवाएं धीरे- धीरे आदमी की जान ले रही है। दुनिया अभी समझ नहीं रही है, कि एंटीबायोटिक दवाओं के गलत सेवन की वजह से ये कैंसर से ज्यादा खतरनाक महामारी बन कर उभर रही है। आगे हम इसी आर्टिकल में बताएँगे ,कि हर साल लाखों लोगों की जान सिर्फ एंटीबायोटिक दवाओं के गैर जिम्मेदार रवैये के सेवन के कारण जा रही है। हालाँकि, स्वास्थय मंत्रालय ,WHO ,के अलावा कई संस्थान ऐसे है जो लगातार इस महामारी पर नियंत्रण के लिए तमाम प्रयाश कर रहे है। एंटीबायोटिक दवाओं (Antibiotic Medicines) के दुरुपयोग को रोकने के लिए आई॰सी॰एम॰आर एल्गोरिदम बनाएगा. एंटीबायोटिक का सेवन सामान्य बीमारियों के लिए भी किया जा रहा है. आई॰सी॰एम॰आर एंटीबायोटिक दवाओं के इंप्रिकल उपयोग पर दिशानिर्देशों पर काम कर रहा है.
अनुभवजन्य एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग से एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस पैदा होता है, जो भारत में एक प्रमुख स्वास्थ्य चुनौती है. आई॰सी॰एम.आर ऊपरी श्वसन संक्रमण, बुखार और निमोनिया के लिए एंटीबायोटिक दवाओं के अनुभवजन्य उपयोग पर देश का पहला दिशानिर्देश विकसित करने के लिए काम कर रही है. इन बीमारियों की स्थितियों में उनका सबसे अधिक उपयोग किया जाता है.॰
अप्रैल 2024 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी की गई एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि दुनिया भर में कोविड-19 महामारी के दौरान एंटीबायोटिक दवाओं के अंधाधुंध उपयोग ने एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस का लेवल तेजी से बढ़ा दिया है. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में पाया गया कि करीब 75 प्रतिशत रोगियों का इलाज एंटीबायोटिक दवाओं से किया गया, भले ही वे असर करती हों या नहीं. हालांकि अस्पताल में भर्ती कोविड के केवल 8 प्रतिशत रोगियों को बैक्टीरियल इन्फेक्शन से लड़ने के लिए एंटीबायोटिक दवाएं जरूरी थीं.
भारत में एंटीबायोटिक का उपयोग विश्व में सबसे अधिक है, जो वैश्विक खुदरा बिक्री का लगभग 23% है। यह स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि एंटीबायोटिक के नए वर्गों की कमी है। आखिरी बार एक नया एंटीबायोटिक वर्ग 20 साल पहले बाजार में आया था। इस बीच, सुपरबग्स के कारण हर साल लाखों लोग अपनी जान गंवा रहे हैं। भारत में, हर साल लगभग 3,00,000 लोग, जिनमें 60,000 नवजात बच्चे शामिल हैं, एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी संक्रमणों के कारण मरते हैं।अध्ययन के अनुसार, जो *The Lancet* में प्रकाशित हुआ है, अनुमान है कि 2050 तक एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध (AMR) के कारण 39 मिलियन से अधिक लोग अपनी जान गंवा सकते हैं। यह आंकड़ा इस बात का संकेत है कि यदि हम एंटीबायोटिक प्रतिरोध के खिलाफ ठोस कदम नहीं उठाते हैं, तो इसके परिणाम कितने गंभीर हो सकते हैं।
*एंटीबायोटिक प्रतिरोध के कारण**
1. **एंटीबायोटिक का अत्यधिक उपयोग**: भारत में एंटीबायोटिक का उपयोग बिना डॉक्टर की सलाह के किया जाता है, जिससे प्रतिरोधी बैक्टीरिया का विकास हो रहा है।
2. **जन जागरूकता की कमी**: आम जनता को एंटीबायोटिक प्रतिरोध के बारे में जानकारी नहीं है। कई लोग यह नहीं समझते कि एंटीबायोटिक का पूरा कोर्स न लेना या बिना आवश्यकता के उनका उपयोग करना कितना खतरनाक है।
3. **संक्रमण नियंत्रण में कमी**: अस्पतालों में संक्रमण नियंत्रण के उपाय अक्सर अपर्याप्त होते हैं, जिससे अस्पताल में होने वाले संक्रमणों की दर बढ़ जाती है।
4. **पशुपालन में एंटीबायोटिक का उपयोग**: कृषि, पशुपालन में एंटीबायोटिक का उपयोग बैक्टीरिया के प्रतिरोध को बढ़ा रहा है।
5. **स्वच्छ जल और स्वच्छता की कमी**: साफ पानी और स्वच्छता की कमी से संक्रामक बीमारियों का प्रसार होता है, जिससे एंटीबायोटिक का उपयोग बढ़ता है।
### **ICMR की 2023 रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष**
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने 2023 के लिए अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें भारत में एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध (AMR) के रुझानों की सातवीं व्यापक समीक्षा की गई है। इस रिपोर्ट में एंटीबायोटिक प्रतिरोध में वृद्धि और सामान्य रोगाणुओं की संवेदनशीलता में कमी के चिंताजनक रुझानों को उजागर किया गया है।यह डेटा जनवरी से दिसंबर 2023 के बीच एकत्र किया गया था, जिसमें 99,492 कल्चर-पॉजिटिव आइसोलेट्स शामिल थे।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्षों में यह स्पष्ट हुआ है कि मूत्र पथ संक्रमण (UTIs), रक्त संक्रमण, निमोनिया और टाइफाइड जैसी बीमारियाँ अब सामान्य एंटीबायोटिक के खिलाफ प्रतिरोधी होती जा रही हैं। विशेष रूप से, *E. coli* का प्रतिरोध बढ़ रहा है, खासकर गहन देखभाल इकाइयों (ICUs) और बाह्य रोगी सेटिंग्स में। कई एंटीबायोटिक, जैसे कि ceftriaxone, सेफ्टाज़िडाइम, सिप्रोफ्लोक्सासिन, और लेवोफ्लोक्सासिन, अब इस बैक्टीरिया के खिलाफ 20% से कम प्रभावी हैं।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि Piperacillin Tazobactum की प्रभावशीलता में चिंताजनक गिरावट आई है, जो 2017 में 56.8% से घटकर 2023 में केवल 42.4% रह गई है। यहां तक कि आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले एंटीबायोटिक जैसे Azithromycin, Levofloxacin, अमिकासिन और मेरोपेनम भी संक्रमणों के इलाज में अपनी प्रभावशीलता खो रहे हैं।
**समाधान की दिशा में कदम**
2018 में, भारतीय सरकार ने एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध पर राष्ट्रीय कार्य योजना शुरू की, जिसका उद्देश्य जागरूकता बढ़ाना, संक्रमणों को कम करना और मानव और पशु स्वास्थ्य में एंटीबायोटिक के जिम्मेदार उपयोग को बढ़ावा देना है।2019 में, भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने कोलिस्टिन पर प्रतिबंध लगा दिया, जो एक अंतिम उपाय एंटीबायोटिक है और जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा उच्च प्राथमिकता वाले महत्वपूर्ण एंटीमाइक्रोबियल (HPCIA) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। यह प्रतिबंध खाद्य उत्पादन करने वाले जानवरों, पोल्ट्री,एक्वाकल्चर और पशु आहार अनुपूरक में कोलिस्टिन के उपयोग को रोकने के लिए लागू किया गया था। यह कदम एंटीबायोटिक प्रतिरोध को नियंत्रित करने और सुरक्षित खाद्य उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया था।
डॉ. लोकेंद्र गुप्ता, सैक्टेम के अध्यक्ष और मेदांता लखनऊ के आपातकालीन चिकित्सा प्रमुख, का कहना है कि एंटीबायोटिक केवल डॉक्टर की पर्ची पर ही बेचे जाने चाहिए। उनका कहना है कि एंटीबायोटिक का गलत उपयोग संक्रमणों को और कठिन बना देता है और उपचार की लागत बढ़ा देता है।
### **सही उपयोग की आवश्यकता**
एंटीबायोटिक का उपयोग बिना उचित ज्ञान के करने से बचना चाहिए। लोगों को एंटीबायोटिक का जिम्मेदार उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना आवश्यक है, ताकि हम इन जीवन-रक्षक दवाओं को सुरक्षित रख सकें।
### **निष्कर्ष**
एंटीबायोटिक प्रतिरोध एक गंभीर समस्या है, जिसे हल करने के लिए हमें सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है।स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, नीति निर्माताओं और आम जनता को मिलकर काम करना होगा ताकि हम एंटीबायोटिक के दुरुपयोग को रोक सकें और बैक्टीरियल संक्रमणों से लड़ने की हमारी क्षमता को बनाए रख सकें।आइए, हम सभी मिलकर इस छिपी हुई महामारी का सामना करें और एक स्वस्थ भविष्य की ओर बढ़ें!