दीपक कुमार त्यागी
अधिवक्ता, स्वतंत्र पत्रकार, स्तंभकार व राजनीतिक विश्लेषक
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बांग्लादेश में हिंदुओं का नरसंहार जारी है, दुनिया के मुस्लिम देशों के साथ-साथ अधिकांश देश बांग्लादेश में चल रहे हिंदुओं के नरसंहार को चुपचाप देख रहे हैं, इतिहास की पुनरावृत्ति हो रही है। क्योंकि ठीक उसी तरह से ही जम्मू-कश्मीर में नब्बे के दशक में हुए हिंदुओं के नरसंहार को भी तत्कालीन भारत सरकार व दुनिया के अन्य देशों के द्वारा चुपचाप देखा गया था। जिसका भयावह परिणाम जम्मू-कश्मीर के अमन चैन पसंद लोगों के साथ-साथ पूरी दुनिया ने देखा था, मज़हबी उन्माद में पूरी तरह से अंधे हो चुके कट्टरपंथी आतंकियों के खुली छूट देने के परिणामस्वरूप कई दशक बीतने के बाद भी आज तक भी जम्मू-कश्मीर आतंकवाद की आग में झुलस रहा है। लेकिन जब नब्बे के दशक के कट्टरपंथियों के भयावह कारनामों को लेकर के वर्ष 2022 में “द कश्मीर फाइल्स” नाम की फिल्म बाक्स आफिस पर रिलीज हुई थी, तब देश व दुनिया के धर्मनिरपेक्ष लोगों की एक बहुत बड़ी जमात ने अपने क्षणिक राजनीतिक हितों को साधने के लिए “द कश्मीर फाइल्स” फिल्म को पूरी तरह से झूठ व काल्पनिक बताते हुए, यहां तक कहा था कि कट्टरपंथियों की जमात ने कश्मीर में ऐसा बर्ताव हिंदुओं के साथ कभी भी नहीं किया था, उन लोगों ने फिल्म को देश में जानबूझकर धर्म विशेष व कुछ लोगों की छवि खराब करने की एक बड़ी साज़िश बताया था। लेकिन आज मुझे खेद के साथ यह कहना पड़ रहा है कि आज जब हम बांग्लादेश के हालात को देखते हैं तो हमारी आंखों के सामने “द कश्मीर फाइल्स” फिल्म के उन दर्दनाक खौफनाक मंजरों की पुनरावृति होते हुए नज़र आती है और उस पुनरावृति पर आज भी भारत के राजनैतिक लोगों व अधिकांश धर्मनिरपेक्ष लोगों की जमात क्षणिक राजनीतिक लाभ के लिए एकबार फिर से बेशर्मी के साथ चुप्पी साधे नज़र आती है। वहीं दूसरी तरफ पूरी दुनिया भर के मुद्दों को लेकर के आये दिन भारत की जमीन पर भी बवाल खड़ा करने वाले कट्टरपंथियों की पूरी जमात बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे जघन्य अत्याचारों पर पूरी तरह से चुप्पी साधे नज़र आती है, जो बांग्लादेश में हो रहे भारत व मानवता विरोधी घृणित कार्य पर मौन सहमति देती नज़र आती है, जो कट्टरपंथी जमात की भारत व हिंदू विरोधी जहरीली मानसिकता को दर्शाने का कार्य करती है। हालांकि होना यह चाहिए था कि भारत के इस्लाम धर्म से जुड़े हुए प्रभावशाली लोगों को बांग्लादेश में भारत विरोधी गतिविधियों और वहां के हिंदुओं पर हो रहे जघन्य अत्याचारों पर खुल करके देश व दुनिया के विभिन्न सार्वजनिक मंचों से विरोध जताना चाहिए था, लेकिन अफसोस आज बांग्लादेश के हिंदुओं को पूरी दुनिया ने उनके हाल पर भगवान के भरोसे छोड़ दिया है।
बांग्लादेश में 5 अगस्त 2024 की दोपहर को हुए शेख हसीना की सरकार के तख्तापलट के बाद से ही वहां की कट्टरपंथी जहरीली जमात के द्वारा हिंदुओं के जान-माल व मंदिर को चुन-चुन कर के निशान बनाया जा रहा है, इन कट्टरपंथियों के द्वारा हिंदुओं के जान-माल को तब से ही जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है। हालांकि तख्तापलट के बाद बहुत सारे लोगों को यह उम्मीद थी कि अब देश में नोबेल पुरस्कार प्राप्त मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन होने के बाद वहां के हाल धीरे-धीरे पूरी तरह से सुधर जायेंगे। लेकिन अफसोस मोहम्मद यूनुस तो भारत व हिंदूओं के विरोध में अंधे होकर के खुद इन कट्टरपंथियों की गोद में जाकर बैठ गये हैं और कई माह बीतने के बाद भी बांग्लादेश के हालात सुधरने की जगह और खराब हो गये हैं। देश व दुनिया के मीडिया के सूत्रों से बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमलें की हजारों की संख्या में जघन्य अपराध वाली घटनाएं घटित हो चुकी हैं, हिंदू इन घटनाओं में अपनी अनमोल जान-माल को गंवा रहे हैं, जो बांग्लादेश के अंदरुनी भयावह हालात के बारे में बताने के लिए काफी हैं। मीडिया स्रोतों से जो खबरें लोगों को निरंतर मिल रही हैं, वह देश व दुनिया के सभी हिंदुओं के साथ-साथ इंसान व इंसानियत को बेहद बुरी तरह से झकझोर देने वाली है। क्योंकि तख्तापलट के बाद से बांग्लादेश में कट्टरपंथियों के द्वारा भारत विरोध व हिंदुओं के जान-माल को जानबूझकर जमकर के निशान बनाया जा रहा है। हिंदुओं को मोहम्मद यूनुस सरकार के संरक्षण प्राप्त इस्लामिक कट्टरपंथियों के द्वारा सरेआम मौत के घाट तक उतारा जा रहा है। वहां हिंदुओं के मंदिर, मकान, दुकान व फेक्ट्रियों आदि को तोड़फोड़ कर के बड़े पैमाने पर आग के हवाले खुलेआम किया जा रहा है और अफसोस की बात यह है कि बांग्लादेश की पुलिस-फोर्स नियम-कायदे व कानून के अनुसार मानवता की रक्षा ना करके खुल्लम-खुल्ला इन भारत व हिंदूओं की विरोधी कट्टरपंथियों की जमात का साथ दे रही है। लेकिन इस हाल में हम भारतवासियों के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि पूरे विश्व के किसी भी कौने में अगर इस्लाम धर्म के किसी व्यक्ति के साथ किसी अन्य धर्म के व्यक्ति के द्वारा कोई अप्रिय घटना घटित कर दी जाती है, तो हमारे प्यारे देश भारत तक में भी इस्लामिक कट्टरपंथियों के इशारे पर उनके बहुत सारे लोगों को जमकर सड़कों पर बवाल काटते देखा जाता है। लेकिन अब जब बांग्लादेश में हिंदुओं को चुन-चुन कर के निशाना बनाया जा रहा उस वक्त इन लोगों की पूरी जमात की जुबान से एक शब्द भी हिंदुओं की रक्षा की अपील तक के लिए नहीं निकल रहा है, जो स्थिति हम सभी सनातन धर्म के अनुयायियों व देश के सभी नीति-निर्माताओं के लिए चिंताजनक व विचारणीय है।
यहां आपको याद दिला दें कि पूरी दुनिया ने देखा है कि किस तरह से वर्ष 1971 में तत्कालीन भारत सरकार ने पाकिस्तानियों के अत्याचार से बांग्लादेश की जनता को एक अलग राष्ट्र बांग्लादेश का निर्माण करके अत्याचार से मुक्ति दिलाने का कार्य भारतीय सेना के जांबाजों के नेतृत्व में ही किया था, जिसके चलते ही भारत के लंबे समय से बांग्लादेश से मधुर संबंध रहे हैं। लेकिन मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में वहां की अंतरिम सरकार के बनने के बाद भारत-बांग्लादेश के संबंधों में बहुत तेज़ी के साथ कड़वाहट शुरू हुई है। संबंध खराब करने के लिए रही-सही कसर पाकिस्तान के इशारे पर बांग्लादेश के इस्लामिक कट्टरपंथियों के द्वारा हिंदुओं को निशाना बनाकर पूरी की जा रही है। जिस बेहद तनावपूर्ण स्थिति के चलते ही संत चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ़्तारी के बाद अब दोनों देशों के बीच काफ़ी तल्ख़ कूटनीतिक भाषा का इस्तेमाल हो रहा है, जो स्थिति आने वाले समय में भारत-बांग्लादेश के संबंधों व वैश्विक स्तर पर ठीक नहीं है।
यहां आपको एकबार फिर से याद दिला दें कि बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद से ही भारत विरोधी गतिविधियां और हिंदुओं पर हमले के मामले बहुत तेजी से बढ़े हैं। जिसके बाद से ही बांग्लादेश का हिंदू समुदाय अपनी सुरक्षा करने की मांग को लेकर व हमले के दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग को लेकर के पूरे बांग्लादेश में जगह जगह छोटे-बड़े विरोध प्रदर्शन निरंतर कर रहा है। जिन प्रदर्शनों में हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास बढ़-चढ़कर के भाग ले रहे थे और वह पूरे बांग्लादेश में घूम-घूमकर अत्याचार के खिलाफ हिंदुओं को संगठित कर रहे थे और भारत व दुनिया से बांग्लादेश के हिंदुओं की सुरक्षा करने की मांग कर रहे थे, जिसके चलते ही हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस सरकार की आंखों का कांटा बने हुए थे, जिस वजह से ही हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास को बांग्लादेश सरकार के इशारे पर गिरफ्तार कर लिया गया था और वहां के न्यायालय में हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास की आवाज़ उठाने वाले अधिवक्ता पर भी जानलेवा हमला करके व उसके चैंबर में तोड़फोड़ करके उसको भी निशाना बनाया गया था।
वहीं बांग्लादेश के मुद्दे पर हाल ही में एक नियमित प्रेस ब्रीफिंग में सवाल पूछें जाने पर अमेरिकी विदेश विभाग के उप प्रवक्ता वेदांत पटेल ने कहा था कि – हम इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि मौलिक स्वतंत्रता का सम्मान होना चाहिए। सरकारों को कानून के शासन का सम्मान करने की आवश्यकता है, उन्हें आधारभूत मानवाधिकारों का सम्मान करने की आवश्यकता है। हम इस बात पर हमेशा जोर देते रहेंगे। किसी भी तरह का विरोध शांतिपूर्ण होना चाहिए। हम इस बात पर बल देते हैं कि हिरासत में लिए गए लोगों को भी उचित प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए और उनसे अधारभूत मौलिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के अनुरूप व्यवहार किया जाना चाहिए। हालांकि उनका यह बयान औपचारिकता मात्र है, हालांकि उनके इस बयान में भी बांग्लादेश के हिंदुओं की सुरक्षा के लिए कोई ठोस आश्वासन या समाधान नज़र नहीं आता है, उनका बयान केवल एक औपचारिकता मात्र है।
वहीं हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के बाद बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भी बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस पर जोरदार हमला करते हुए कहा कि उन्होंने बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों को रोकने में नाकामयाबी दिखाई है, शेख हसीना ने मोहम्मद यूनुस पर आरोप लगाया कि उन्होंने हिंदुओं के नरसंहार में सक्रिय रूप से भाग लिया है। शेख हसीना के इस बयान को दुनिया भर के ठेकेदार बनने वाले ताकतवर देशों व मानवाधिकार संगठनों को संज्ञान लेकर के हिंदुओं के नरसंहार को रोकने के लिए मोहम्मद यूनुस सरकार के खिलाफ वैश्विक स्तर पर कार्रवाई करनी चाहिए, जो पर अभी तक तो कोई पहल होती हुई नज़र नहीं आ रही है।
हालांकि भारत सरकार भी बार-बार बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार को विभिन्न फोरम पर उठाने का कार्य निरंतर कर रही है, लेकिन उसके बाद भी बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर कट्टरपंथियों की जमात के द्वारा जबरदस्त अत्याचार जारी हैं और हमारे देश के धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदार बन चुके लोगों की जमात इस बेहद ज्वलंत मुद्दे पर चुपचाप बैठकर के अब भी तमाशा देख रही है, वह जम्मू-कश्मीर के हिंदुओं की तरह ही बांग्लादेश हिंदुओं को भी तिल-तिल कर मरते हुए देख रही है, जो बांग्लादेश चंद माह पहले छात्रों के हिसंक आंदोलन में जल रहा था, वहां तख्तापलट के तुरंत बाद से ही भारत व हिंदुओं के ऋणों को भूलकर के छात्रों का यह हिंसक आंदोलन हिंदू विरोधी आंदोलन में अचानक कैसे तब्दील हो गया है, देश व दुनिया के विशेषज्ञों को इस स्थिति का निष्पक्ष रूप से आंकलन करने चाहिए कि आखिरकार किस के उकसावे पर बांग्लादेश में अचानक से स्थिति भारत व हिंदूओं के विरोधी कैसे हो गयी। विचारणीय यह है कि आरक्षण के विरोध की आग में झुलसता हुए बांग्लादेश अचानक से भारत व हिंदू विरोध की आग में कैसे झुलसा। तख्तापलट के बाद भी हिंसा आज भी अनवरत रूप से जारी है, लेकिन अब दंगा-फसाद में चिन्हित करके हिंदुओं को मौत के घाट उतारना जारी है। हिंदुओं की सुरक्षा की दृष्टि से पूरे बांग्लादेश में जबरदस्त अस्थिरता का माहौल व्याप्त है, मीडिया सूत्रों के अनुसार दंगाईयों को मोहम्मद यूनुस सरकार के द्वारा सरकारी संरक्षण मिलने के चलते हिंदुओं के जान-माल की भारी क्षति होना अब भी निरंतर जारी है। जिसके चलते बांग्लादेश के हिंदुओं के साथ-साथ पूरी दुनिया के हिंदू अब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर प्रसाद के साथ-साथ एनएसए अजीत डोभाल की तरफ बांग्लादेश के हिंदुओं की सुरक्षा करने की उम्मीद से देख रहे हैं, उन्हें उम्मीद है कि भारत सरकार अब बयानबाज़ी से इतर होकर के धरातल पर ठोस कदम उठाकर के तत्काल बांग्लादेश में भारत विरोधी सभी गतिविधियों व हिंदुओं के नरसंहार पर नकेल कसेगी।
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