ज्ञान परंपरा का जीवन-विजय गर्ग
वर्तमान विश्व में व्यक्ति और समाज में जिस स्तर पर उतार-चढ़ाव देखने में आ रहा है, उसमें शांति की जरूरत ज्यादा शिद्दत से महसूस की जाने लगी है। इस शांति की खोज में कई बार व्यक्ति थोड़ा निराश हो जाता है, भावनाओं के स्तर पर उथल-पुथल का शिकार हो जाता है। इसके बाद शुरू होती है अमूर्तन में शांति की खोज और उसमें नाहक भटकना । जबकि भारतीय ज्ञान परंपरा व्यक्ति के भीतर की शांति और मन की भावनाओं को नियंत्रण में रख सकती है। दरअसल, भारतीय ज्ञान परंपरा दुनिया भर में समृद्ध और सबसे प्राचीन परंपराओं में से मानी जाती है। मगर आज यह कोई मुख्य विषय नहीं है । सवाल है कि फिर भारतीय ज्ञान परंपरा से परहेज किसको है। ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय ज्ञान और संस्कृति को कमजोर करने का जो बारीक प्रयास हुआ, उसे आजादी के बाद वापस समृद्ध करने की कोई ठोस पहल नहीं हो सकी है। हालांकि इसका गुणगान करने में कोई कमी नहीं की जाती है। सवाल है कि हमारे देश के विश्वविद्यालयों में भारतीय ज्ञान परंपरा को पढ़ाने में इतनी हिचकिचाहट क्यों दिखती है। देश के ज्यादातर विश्वविद्यालयों में भारतीय ज्ञान परंपरा के विभाग नहीं है।
उपनिषदों, पुराणों और वेदों जैसे विषयों में इसका विस्तार हमें पढ़ने को मिलता है। हमारे वेद उपनिषद में योग और ध्यान, आयुर्वेद चिकित्सा, दर्शन और न्याय जैसे विषय भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रमुख विषय रहे हैं । यह किसी व्यक्तिगत समूह या व्यक्तियों के अधिकार क्षेत्र में नहीं है, बल्कि यह प्राचीन परंपराओं का दर्शन रहा। वहीं हमारे देश में शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान की प्राप्ति था और आज की शिक्षा उपाधि- पत्र प्राप्ति तक सिमट कर रह गई है ।
भारत सदियों से ज्ञान परंपरा और संस्कृति के लिए अपनी अलग पहचान रखता है। परंपरागत ज्ञान भाषा, दर्शन, ज्ञान की अपरिहार्यता, लोक, मूर्तिकला पर आधारित है । कहने को राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 में प्राचीन ज्ञान परंपरा और आधुनिक शिक्षा का समावेश करते हुए शिक्षा प्रणाली को आगे ले जाने की बात की जा रही है, लेकिन अब तक देश के ज्यादातर विश्वविद्यालयों में भारतीय ज्ञान परंपरा के विषय को सुचिंतित तरीके से शुरू करने को लेकर पहल नहीं हुई है। हालांकि जिन कुछ विश्वविद्यालयों में यह विषय पहले से संचालित है, उनका उदाहरण हमारे सामने है। विगत तीन सौ वर्षों में इसका लोप हुआ है। भारतीय ज्ञान परंपरा वैदिक और उपनिषद काल के बाद बौद्ध और जैन काल में भी कायम रही । ऋग्वेद में लिखा है- ‘ आ नो भद्राः क्रतवो यंतु विश्वतः ‘ यानी सात्विक विचार हर दिशा से आने चाहिए । स्वयं को और अन्य को किसी चीज से वंचित नहीं करना चाहिए। ज्ञान की बातों को ग्रहण करना चाहिए।
वेद और वेदवांग्मय भारतीय ज्ञान परंपरा की आत्मा हैं । भारतीय जीवन-दर्शन को जो स्वरूप वेद-उपनिषदों से ही मिला है, वह भारतीय ज्ञान परंपरा के मूल में है । भारतीय ज्ञान परंपरा के मूल वेद विचार को भी महत्त्वपूर्ण बनाता है। वर्तमान युग में वेद अध्ययन और वैदिक परंपरा का उल्लेख प्रत्येक ग्रंथ में देखने और सुनने को मिलता है। भारतीय विश्वविद्यालय में वेदों और वैदिक वांग्मय पर हुए अनुसंधान कार्यों से भारतीय ज्ञान परंपरा की जो उपादेयता बनी है, वह आने वाली पीढ़ी के सम्मुख रखी जानी चाहिए।
वैदिक परंपरा का संरक्षण एवं संवर्धन भारतीय ज्ञान परंपरा करती है। आधुनिक ज्ञान के स्रोत भी वेद ही हैं। वैदिक विचारों की सामाजिक उपयोगिता, वैदिक चिंतन और विश्व शांति जैसे सवाल का जवाब भारतीय ज्ञान परंपरा के पठन-पाठन से ही संभव है। भविष्य में जीवन को श्रेष्ठ और सुंदर कैसे बनाया जाए, यह हमारी भारतीय ज्ञान परंपरा में छिपा हुआ है। नई पीढ़ी को भारतीय ज्ञान से परिचित कराने के लिए ठोस पहल होनी चाहिए, ताकि हमारे अतीत में क्या अच्छा रहा है या क्या अच्छा नहीं रहा, इस पर विवेक आधारित विश्लेषणात्मक चिंतन परंपरा मजबूत हो । वेद और उपनिषदों के अध्ययन से आध्यात्मिक और दार्शनिक ज्ञान ने भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक संरचनात्मकता को प्रभावित किया है, वहीं अनेक गूढ़ रहस्यों का विवरण भी देखने को मिलता है। योग और ध्यान रोजगार के बड़े साधन के रूप में हमारे सामने आ रहे हैं । भारतीय दर्शन और न्याय जीवन कर्म, धर्म, मोक्ष और सत्य की उच्चतम विचारों की व्याख्या ही है, जो वर्तमान समाज की प्रेरणा का स्रोत है। भारतीय ज्ञान परंपरा को विद्यार्थियों के बीच पहुंचाए जाने से हमारी वर्तमान पीढ़ी के लिए करियर के अवसर भी पैदा होंगे और वर्तमान शिक्षा व्यवस्था को भी बल मिलेगा ।
विचारणीय सवाल यह है कि पिछले एक दशक में भारतीय ज्ञान परंपरा को महान बताने के बावजूद ठोस रूप से इसके अध्ययन-मनन की बात कौन कर रहा है। इससे संबंधित विषय प्रारंभ होंगे तो हमारे वेद और उपनिषदों का अध्ययन होगा, भारतीय दर्शन और न्याय की पढ़ाई कराई जाएगी, आयुर्वेद और चिकित्सा विज्ञान की बात और ज्यादा आगे बढ़ेगी। ज्ञान के क्षेत्र में विश्व भर में अब तक जो भी उपलब्धियां रही हैं, उनका अध्ययन, विश्लेषण आधारित चिंतन और उन्हें कसौटी पर रखा जाना ज्ञान की परंपरा को और मजबूत ही करेगा। कोई भी समा ज्ञान की परंपराओं का अध्ययन करके ही उसके मूल तत्त्वों के दर्शन पर विचार कर सकता है। उसके बाद वर्तमान और भविष्य के समाज और विश्व के निर्माण के संदर्भ में बेहतर रास्तों की खोज हो सकती है ।
Post Views: 11