
कृत्रिम डीएनए निर्माण की दिशा में बढ़ते कदम-विजय गर्ग
विज्ञानी अब अपनी प्रयोगशालाओं में जीवन की आधारशिला ‘डीएनए’ को पढ़ और मन-मुताबिक संपादित करने के साथ ही डीएनए को बिलकुल नए सिरे से कृत्रिम रूप से डिजाइन और निर्मित करने की दिशा में भी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। हाल ही में विश्व के पहले कृत्रिम मानव डीएनए निर्माण से संबंधित एक महत्वाकांक्षी और विवादास्पद परियोजना की शुरुआत की खबर सामने आई है। सिंथेटिक ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट नामक इस परियोजना लंदन स्थित वेलकम ट्रस्ट द्वारा वित्त पोषित किया जा रहा है, जो विश्व की सबसे बड़ी चिकित्सा चैरिटी फाउंडेशन है, जिसके तहत 1.27 करोड़ डालर का प्रारंभिक निवेश किया गया है।
कैंब्रिज के एमआरसी लैबोरेटरी आफ मालेक्युलर बायोलाजी (एलएमबी) के नेतृत्व में चलाई जा रही इस परियोजना का उद्देश्य मानव जीनोम को कृत्रिम रूप से संश्लेषित करना है, जिसका इस्तेमाल चिकित्सा अनुसंधान, विशेष रूप से जानलेवा बीमारियों के इलाज में हो सकता है। कृत्रिम डीएनए प्राकृतिक डीएनए की नकल हो सकती है या पूरी तरह से नया अनुक्रम हो सकता है, जो विशिष्ट कार्यों के लिए डिजाइन किया गया हो। शोधकर्ताओं ने पहले ही छोटे जीनोम, जैसे एक बैक्टीरिया (2010 में क्रेग वेंटर द्वारा) और ई. कोली के कृत्रिम जीनोम को संश्लेषित किया है। 2016 में शुरू हुई ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट – राइट परियोजना मानव डीएनए को कृत्रिम रूप से निर्मित करने की दिशा में एक वैश्विक प्रयास है। इस परियोजना के तहत आंशिक मानव जीनोम अनुक्रमों का सफल संश्लेषण और असेंबली हो चुकी है।
इस प्रोजेक्ट में शामिल विज्ञानियों ने इस पहल को ‘जीवविज्ञान में एक बड़ी छलांग’ कहा है। उनका कहना है, ‘लक्ष्य ऐसी चिकित्सा पद्धतियां विकसित करना है, जो स्वस्थ आयु प्रदान करें, बीमारियों की घटनाओं को कम करें और क्षतिग्रस्त अंगों जैसे यकृत, हृदय और यहां तक कि प्रतिरक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित करे । ‘ हालांकि, इस परियोजना ने विशेषज्ञों और आम जनता के बीच चिंता पैदा कर दी है । इस प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग किया जा सकता है- अधिक उन्नत मानव बनाने के प्रयासों से लेकर जैविक हथियारों के विकास तक। एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के प्रो. बिल अर्नशा ने चेताते हुए कहा है, “अगर किसी संगठन के पास आवश्यक उपकरण उपलब्ध हैं, तो उसे जो कुछ भी वह चाहता है, उसे संश्लेषित करने से रोकना लगभग असंभव है।”
बियांड जीएम अभियान की निदेशक ने भी इस पहल की आलोचना की है। वे प्रौद्योगिकी के व्यावसायीकरण और पेटेंट कानून ‘के हेरफेर के जोखिम के बारे में कहती हैं, ‘सिंथेटिक अंगों या निर्मित मनुष्यों का स्वामित्व कौन रखेगा ?”
बहरहाल, जब हम जीवन का रचयिता बनने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, तब यह सवाल और भी गहरा हो जाता है कि क्या हम उस उत्तरदायित्व के लिए तैयार हैं, जो इस शक्ति के साथ आएगा?
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब
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