



भाजपाइयों द्वारा संजय जोशी के धमाकेदार जन्मदिन मनाने से टीम गुजरात की नींद उड़ी!
मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नाराजगी के कारण वनवास काट रहे भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री संगठन संजय जोशी की भाजपा में वापसी होगी या नहीं संघ के शीर्ष नेतृत्व से हुई गुप्त भेंटों के बाद कार्यकार्याओं ने उनका धमाकेदार स्वागत शुरू कर दिया है। 6 अप्रैल को भारतीय जनता पार्टी के स्थापना दिवस के दिन ही वरिष्ठ संघ प्रचारक संजय जोशी का भी जन्मदिन पड़ता है।प्रतिदिन देश भर से आये हजारों कार्यकार्याओं की समस्या का समाधान करते संजय विनायक जोशी के इस बार के जन्मदिन पर लखनऊ में भी बधाई संदेशों से होडिग्स पटे पड़े रहे।गुजरात टोली खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमितशाह के खुलेआम विरोध के बाद भी होली-दीपावली देश भर के शुभेच्छुओं को मिष्ठान व बधाई संदेश देने वाले संजय जोशी सामाजिक परिदृश्य पर सदैव सक्रिय दिखते रहे।भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में उनका नाम उछलने के बाद संघ हो या भाजपा उनके चाहने वालों की संख्या में अचानक वृद्धि हो गयी है।वैसे भी मृदुभाषी संजय जोशी अपने घर आने वाले कार्यकार्याओं को बिना भोजन-चाय पूछे नहीं भेजते। लोगों के दिल्ली आने का प्रयोजन पूछ कर अविलंब उनके समाधान में जुट जाने की उनकी शैली पल भर में परायों को भी अपना बना लेती है।
लखनऊ में एयरपोर्ट से लेकर हजरतगंज, इंदिरा नगर, गोमती नगर, चारबाग रेलवे स्टेशन के अलावा अयोध्या, गोंडा, कानपुर, आगरा, वाराणसी, चित्रकूट व गोरखपुर में संजय जोशी के होडिग्स लगे हैं। लखनऊ के चेतन शुक्ला ने कहा कि संजय जोशी आज भी लाखों कार्यकार्याओं के विस्वास हैं। जब भी कोई मुसीबत आती है तो फोन करने से लेकर स्वयं कार्यकार्याओं के घर जाकर समाधान करने की उनकी शैली से उनके साथ अटूट रिश्ता बन गया है। उन्होंने कहा कि देश के अधिकांश कार्यकर्ता संजय जोशी को राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में देखना चाहते हैं। पिछले कुछ वर्षों में पार्टी में पनपी तानाशाही और आर्थिक आग्रह वालों के बढ़ते दबदबे से मूल कार्यकार्याओं में निराशा बढ़ी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेतृत्व में बैठे लोगों की भी यही इच्छा है कि संजय जोशी भाजपा में उसकी मूल आत्मा वापस करवा दें। पत्रकार डॉ अनूप चतुर्वेदी के अनुसार संजय जोशी भाजपा के विकृत व दुरव्यवस्थित स्वरूप को पुनः मूल रूप में लौटा सकते हैं। जहाँ वैचारिक व वरिष्ठ कार्यकार्याओं को सहानभूति से नहीं सम्मानपूर्वक देखा जायेगा। जब भाजपा के दो सांसद होते थे तब कार्यकार्याओं को कार्यालय में रुकने बैठने को मिल जाता था। देश भर में होटल टाइप कार्यालय तो बन गये लेकिन किसी भी कार्यालय में कार्यकार्याओं का सम्मान नहीं है। जब जे नरेंद्र मोदी और अमितशाह के चमचों के हाथ मे पार्टी के कार्यालय गये हैं तब से भाजपा कार्यालय कारपोरेट ऑफिस ज्यादा और एकात्म मानववाद का मंदिर के सुगंध से दूर हो गया।