
कन्नौज में यज्ञ परंपरा का पुनर्जागरण
स्वामी रामदास जी महाराज का दिव्य संकल्प और ११०८ कुण्डीय महायज्ञ का ऐतिहासिक आयोजन।
“यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म” – अर्थात यज्ञ ही सर्वोच्च कर्म है। भारतीय संस्कृति में यज्ञ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि धर्म, समाज सुधार, पर्यावरण संतुलन और आध्यात्मिक उत्थान का आधार रहा है। कन्नौज, जो कभी वैदिक संस्कृति और आध्यात्मिक चेतना का प्रमुख केंद्र था, धीरे-धीरे अपनी यज्ञीय परंपरा को भूलता चला गया। लेकिन जब स्वामी रामदास जी महाराज ने ११०८ कुण्डीय महायज्ञ का संकल्प लिया, तो यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि कन्नौज के गौरवशाली अतीत को पुनर्जीवित करने का एक महाप्रयास था।
कन्नौज की प्राचीन यज्ञीय परंपरा
कन्नौज की भूमि पर यज्ञों की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। राजा वेणु और महाराजा हर्षवर्धन ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। राजा वेणु ने समरसता और समाज सुधार के लिए यज्ञों का आयोजन किया, जबकि महाराजा हर्षवर्धन ने प्रयाग में पंचवर्षीय महायज्ञ की परंपरा शुरू की, जिसमें हजारों संत, ब्राह्मण और धर्माचार्य भाग लेते थे।
११०८ कुण्डीय महायज्ञ: स्वामी रामदास जी महाराज का दिव्य संकल्प
चार माह पूर्व, जब स्वामी रामदास जी महाराज ने कन्नौज की भूमि पर पदार्पण किया, तो उन्होंने संकल्प लिया कि यहाँ ११०८ कुण्डीय महायज्ञ करना है। यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि धर्म जागरण और सामाजिक समरसता का एक महान यज्ञ था।
महायज्ञ की चुनौतियाँ और भक्तों की परीक्षा
जब उन्होंने यह विचार व्यक्त किया, तो शुरुआत में लोगों ने इसे असंभव समझा। इतनी बड़ी योजना बिना किसी बाहरी सहायता के कैसे सफल होगी? लेकिन जैसे-जैसे महाराज जी की तपस्या और आत्मविश्वास प्रकट हुआ, श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती गई।
महाराज जी ने दिसंबर की ठंडी रातों में खुले आसमान के नीचे निवास किया, बिना किसी संसाधन के। उन्होंने संकल्प लिया कि यज्ञ में किसी से कोई चंदा या भिक्षा नहीं ली जाएगी। यह सुनकर लोग और भी चकित हो गए। इतना बड़ा आयोजन बिना धन के कैसे होगा? लेकिन श्रद्धा, भक्ति और समर्पण से असंभव भी संभव हुआ।
महायज्ञ की प्रमुख विशेषताएँ
1.जाति-पाति से मुक्त समरस समाज – सभी लोग महामाई के नाई बनकर एकसाथ जुटे।
2.भिक्षा व चंदा रहित आयोजन – यज्ञ की संपूर्ण व्यवस्था केवल श्रद्धा और निःस्वार्थ सेवा से सम्पन्न हुई।
3.संपूर्ण कन्नौज की भागीदारी – गाँव-गाँव, गली-गली में जाकर सनातन धर्म का प्रचार किया गया।
4.पर्यावरण शुद्धि और आध्यात्मिक जागरण – वेद मंत्रों की ध्वनि से वातावरण शुद्ध हुआ।
5.अखण्ड संकीर्तन और धार्मिक अनुष्ठान – इस महायज्ञ के दौरान अखण्ड संकीर्तन, प्रवचन और अन्य धार्मिक क्रियाएँ सम्पन्न की गईं।
महायज्ञ की दिव्यता और भक्तों की अटूट श्रद्धा
१८ मार्च को निकली कलश यात्रा कन्नौज के इतिहास का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन बनी। पीले वस्त्रों में हजारों श्रद्धालु कतारबद्ध होकर निकले, और ऐसा प्रतीत हुआ मानो कन्नौज एक बार फिर वैदिक काल में लौट आया हो।
महायज्ञ के आयोजन स्थल पर ११०८ कुण्ड स्थापित किए गए, जहाँ हजारों श्रद्धालुओं ने गाय के घी, बेलपत्र, हवन सामग्री और शुद्ध जड़ी-बूटियों से आहुति दी। यज्ञस्थल पर वेद मंत्रों की ध्वनि गूँज रही थी, वातावरण में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार हो रहा था।
महायज्ञ के दौरान गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय जाप, श्रीसूक्त, पुरुषसूक्त और देवीसूक्त का अखण्ड पाठ हुआ, जिससे पूरा क्षेत्र एक दिव्य ऊर्जा केंद्र में बदल गया।
भक्तों का संकल्प इतना दृढ़ था कि जब किसी ने यज्ञ को छोटा करने का प्रस्ताव रखा, तो एक श्रद्धालु ने भावावेश में कह दिया –
“महायज्ञ तो होगा, चाहे उसके लिए कुछ भी करना पड़े!”
बस, फिर क्या था! संकल्प शक्ति के आगे हर बाधा दूर होती गई और स्वामी रामदास जी महाराज का दिव्य यज्ञ पूर्णता की ओर बढ़ता गया।
पूर्णाहुति: विश्व मंगल की कामना के साथ महायज्ञ का समापन
२७ मार्च को यज्ञ की पूर्णाहुति संपन्न हुई। हजारों श्रद्धालुओं ने विश्व शांति, धर्म रक्षा और मानव कल्याण की कामना के साथ आहुति दी। इस महायज्ञ के माध्यम से कन्नौज ने यह सिद्ध कर दिया कि जब समर्पण और श्रद्धा एक साथ मिलते हैं, तो असंभव भी संभव हो जाता है।
अब अगले महायज्ञ की प्रतीक्षा…
स्वामी रामदास जी महाराज का यह यज्ञ केवल एक अध्याय नहीं, बल्कि सनातन धर्म के पुनर्जागरण की शुरुआत थी। अब वे अगले महायज्ञ की ओर अग्रसर हैं। स्थान और समय का निर्णय भगवती महामाई ने कर दिया है, अगला महायज्ञ इटावा में होगा।
समाप्ति नहीं, एक नई शुरुआत…
राजा वेणु और महाराजा हर्षवर्धन की यज्ञीय परंपरा को स्वामी रामदास जी महाराज ने पुनर्जीवित किया है। अब कन्नौज सिर्फ इत्र की खुशबू से नहीं, बल्कि धर्म की दिव्य अग्नि से भी पूरे विश्व को आलोकित करेगा।
“यज्ञ केवल आहुति देने का कार्य नहीं, यह आत्मा का शुद्धिकरण, समाज का उत्थान और धर्म का पुनर्जागरण है।”

श्वेतांक अरुण तिवारी
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