चिनार वृक्ष को मिला डिजिटल आधार-विजय गर्ग
जम्मू-कश्मीर में चिनार के वृक्षों के संरक्षण और सटीक निगरानी के लिए अनोखी पहल की गई है। दरअसल जम्मू-कश्मीर वन अनुसंधान संस्थान द्वारा राज्य में शुरू की गई ‘डिजिटल वृक्ष आधार’ परियोजना के तहत लोगों को मिलने वाली ‘आधार’ की तरह चिनार के प्रत्येक वृक्ष के लिए एक विशिष्ट पहचान संख्या प्रदान किया जा रहा है। 10 अंकीय इस विशिष्ट पहचान संख्या के आधार पर चिनार के किसी भी वृक्ष की आयु, ऊंचाई, स्थान और सर्वेक्षण वर्ष आदि का पता लगाया जा सकता है। इस पहल का उद्देश्य कश्मीर में चिनार के वृक्षों की स्थिति और सेहत को डिजिटल रूप से निगरानी करना, वृक्ष की जानकारी को सुलभ बनाना, उसकी अवैध कटाई को रोकना और उसके संरक्षण के निमित्त तत्परता दिखाना है। चिनार जम्मू-कश्मीर का राजकीय वृक्ष है। यह शाही वृक्ष कश्मीर की संस्कृति का अहम हिस्सा रहा है। कश्मीर के निशात बाग और शालीमार बाग में इसकी बहुलता के कारण इसकी जड़ें मुगलकाल जुड़ी हुई बताई जाती हैं । चिनार के वृक्षों को देखने मात्र से मन कश्मीर की वादियों में विचरण करने लगता है। जम्मू- कश्मीर में चिनार के वृक्षों की संख्या 40 हजार से अधिक होने का अनुमान लगाया गया है। इसमें से 28,560 वृक्षों की पहचान कर उन्हें विशिष्ट पहचान संख्या जारी किया जा चुका है।
व्यापक पारिस्थितिकीय भूमिका वाले चिनार मुख्यतः पर्याप्त पानी वाले और ठंडे जलवायु वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। ये पर्णपाती वन समूह में आते हैं । चिनार वृक्ष पर कौवों और चील जैसी पक्षी प्रजातियों का निवास होता है। इस तरह चिनार जैव विविधता की रक्षा में सहायक हैं। साथ ही, यह स्थानीय वातावरण में तापमान कम करने तथा छाया प्रदान करने में भी ये वृक्ष सहायक हैं। हालांकि जम्मू- कश्मीर में पिछले कुछ समय से चिनार के वृक्षों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। तीव्र शहरीकरण, वनों की कटाई और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के कारण चिनार के वृक्षों को विनाश का सामना करना पड़ रहा है।
चिनार के वृक्षों के संरक्षण के लिए सबसे पहले वर्ष 1969 में इसे संरक्षित प्रजाति घोषित किया गया था। वहीं 2009 में राज्य में चिनार के वृक्षों की कटाई और छंटाई पर प्रतिबंध लगा दिया, जबकि 2019 में चिनार के वृक्षों पर होर्डिंग्स लगाने पर और अधिक प्रतिबंध लगा दिया गया। अब डिजिटल आधार जारी कर चिनार के वृक्षों को बचाने का अनूठा प्रयास किया जा रहा है। बहरहाल, चिनार के वृक्षों के संरक्षण के लिए सामुदायिक भागीदारी आवश्यक है। यह वृक्ष न केवल कश्मीर की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, बल्कि ये इको- पर्यटन को बढ़ावा देने में भी सहायक हैं। अतः इसके संरक्षण के निमित्त गंभीर और संवेदनशील होने की दरकार है, जिससे यह वृक्ष कश्मीर की वादियों में सबको सदैव मोहित करता रहे।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्राचार्य शैक्षिक स्तंभकार गली कौर चंद एमएचआर मलोट
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