



बसपा प्रमुख मायावती की ख़राब कार्यशैली के बावजूद बसपा की राजनीतिक ताकत अभी भी कायम -UDITRAJ
जिस तरह से एक दौर में दलितों की हालत बेहद खराब थी ठीक उसी तरह से आज के दौर में मुस्लिमो की हालत खराब है-UDITRAJ
“सुश्री मायावती की क्रूरता और अक्षमता के बावजूद कार्यकर्ता और मतदाता संघर्ष करते रहे।
लखनऊ (BNE ) पूर्व लोकसभा सांसद उदितराज ने सोमवार को प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मीडियाकर्मियों से बातचीत में कहा कि बसपा सुप्रीमो मायावती के गलत व्यवहार ,भ्रष्टाचार और लालच के वाबजूद ने बसपा की राजनैतिक ताकत लंबे समय तक कायम रही .उन्होंने कहा कि जिस तरह से एक दौर में दलितों की हालत बेहद खराब थी ठीक उसी तरह से आज के दौर में मुस्लिमो की हालत है।
लखनऊ में उदितराज ने कहा कि “1980 के दशक के बाद कांशीराम जी ने उत्तर प्रदेश में बहुजन जागरण की शुरुआत की, जो 2000 के दशक में अपने चरम पर पहुंच गया। भले ही इस आंदोलन की परिणति राजनीति में हुई, लेकिन इसकी सोच और आधार सामाजिक न्याय रहा है। अन्य राजनीतिक दल राजनीति से शुरू करते हैं और राजनीति पर ही खत्म करते हैं, लेकिन बहुजन समाज पार्टी के साथ ऐसा नहीं हुआ।”
मायावती पर हमला करते हुए उन्होंने कहा, “सुश्री मायावती की क्रूरता और अक्षमता के बावजूद कार्यकर्ता और मतदाता संघर्ष करते रहे। कार्यकर्ताओं के घर बिक गए, उनके बच्चे शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके और उनके साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया गया, फिर भी वे बहुजन राज लाने के लिए संघर्ष करते रहे। फुले, शाहू, अंबेडकर को मानने वाले लाखों कार्यकर्ता निराशा के दौर से गुजर रहे हैं। कुछ लोगों ने अपने स्तर पर छोटे-छोटे संगठन बनाए हैं, लेकिन उनकी सोच मरी नहीं है।”
उत्तर पश्चिमी दिल्ली से पूर्व लोकसभा सांसद ने यह भी कहा, “जिस तरह दलितों की हालत कभी खराब थी, आज मुस्लिम समुदाय भी उसी दौर से गुजर रहा है। मुस्लिम समुदाय अकेले इस स्थिति से नहीं लड़ सकता। दलित भी अकेले सक्षम नहीं हैं। जब भी मुस्लिम समुदाय अपनी समस्या उठाता है, तो उसका परिणाम सांप्रदायिकता में बदल जाता है।”
उन्होंने कहा कि एक दिसंबर 2024 को दिल्ली के रामलीला मैदान में डोमा परिषद की पहली रैली हुई जिसमें वक्फ बोर्ड को बचाने की मांग उठाई गई।
गौरतलब है कि पूर्व लोकसभा सांसद वर्तमान में दलित, ओबीसी, अल्पसंख्यक और आदिवासी (डोमा) परिसंघ के प्रमुख हैं।
उन्होंने अंबेडकरवादियों से एकजुट होने का आह्वान करते हुए कहा, “तथाकथित अंबेडकरवादी जाति व्यवस्था को तोड़ नहीं पाए, कम से कम जातिवाद और जाति संगठन को तो रोकें। कब तक ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के खिलाफ बोलकर लोगों को इकट्ठा करते रहेंगे। आज जरूरत है खुद को बदलने की। ऊंची जातियों की आलोचना करके मुस्लिमों और दलित-पिछड़ों के खिलाफ बोलकर हिंदू एकजुट होते हैं। इस रास्ते पर चलना बंद करें।”
उन्होंने कहा, “भगवान गौतम बुद्ध ने कहा था – अत्त दीपो भव। इसका मतलब है कि अपनी सोच बदलो। दलित और पिछड़े वर्ग चाहते हैं कि ऊंची जातियां खुद को बदलें, लेकिन वे आपस में जातिवाद करते रहें।”
बहुजनों के संगठनों पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, “अब तक बहुजनों के जो संगठन बने हैं, वे व्यक्ति और जाति के आधार पर बने हैं। आबादी 85 प्रतिशत है, लेकिन क्या संगठन में ऊपर से नीचे तक सभी वर्गों की हिस्सेदारी है? संगठन चलाने वाले अपनी जाति और अपने मित्रों को महत्वपूर्ण पदों पर बिठाते हैं और कहते हैं कि वे बहुजनों का कल्याण कर रहे हैं।”