
टूटती उम्मीदें, बिखरते युवा- विजय गर्ग
विश्व के कुछ सर्वेक्षणों में कहा गया है कि भारत क युवा देश है, मगर यहां पर लोगों को काम की आदत नहीं है। लगभग आधी जनसंख्या देश के सकल घरेलू उत्पादन में कोई योगदान नहीं देती। इसमें बुजुर्ग शामिल हैं, तो वे महिलाएं भी, जो घर और बाहर दोनों जगह मोर्चा संभाल रही हैं। अफसोस कि उन्हें अपने ही खेतों या घरों में काम करने पर कोई भुगतान नहीं किया जाता। देश की आधी जनसंख्या कार्ययोग्य है, लेकिन उसे सही ढंग से काम नहीं मिलता। यह सचमुच निराशाजनक है कि इस देश में रोजगार : की कोई गारंटी नहीं। अलबत्ता, भूख से न मरने देने की गारंटी अवश्य है। अपने से सत्तारूढ़ होने की इच्छा रखने वाली राजनीतिक पार्टियां प्रायः उनकी अनुकंपा से सत्ता की थाल जाती रहती हैं। सीमा से निकल कर और प्रवासी बन कर अपनी जिंदगी संवारने के सपने ह। वहीं युवा पीढ़ी, देश की देखती है। जबकि अब अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सत्तारूढ़ होने के बाद नौजवानों का विदेशी धरती पर जाना और स्थायी नागरिकता पाना कठिन हो गया है। वहां जो गए, अब उन्हें अवैध प्रवासी बता कर बैरंग लौटाया जा रहा है। डिग्रीधारी नौजवानों के सामने किस कदर चुनौती है, इसे समझा जा सकता है।
अभी कृत्रिम मेधा और इंटरनेट शक्ति का बोलबाला है। देश डिजिटल और स्वचालित हो रहा है, लेकिन विद्यालयों में इसके अनुरूप न तो पाठ्यक्रम बदलते हैं और न ही प्रशिक्षित और प्रवीण अध्यापक रखे गए हैं। इसलिए युवा पीढ़ी को अपनी डिग्रियां अप्रासंगिक लगने लगी हैं। इन डिग्रियों से वे इस समय कोई अच्छी नौकरी नहीं पा सकते। नतीजा, वे पराजित और अवसादग्रस्त महसूस कर रहे हैं। कुछ समय बाद वे खुद को नशे के दलदल बाद व खुद का में पाते हैं। हैं। इससे वे बाहर नहीं निकलते, क्योंकि उन्हें कोई विकल्प नजर नहीं आता। आंकड़े भी बताते हैं कि देश में आत्महत्या के मामले बढ़े हैं। इनमें किसान हैं, तो नौजवान भी, जिन्हें मेहनत करने पर भी बेहतर जिंदगी नहीं मिलती। नतीजतन, वे नशे की कंदराओं में चले जाते हैं। हर राज्य में नशे के सौदागरों और तस्करों ने अपने साम्राज्य खड़े कर लिए हैं। हर तालाब में बड़ी मछली से प्रेरित छोटी मछलियां उनका हुक्म बजा रही हैं।
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के अनुसार हम इस देश की युवा शक्ति को जिंदा लाश नहीं बनने दे सकते। अभी हाल यह है कि चाहे हरियाणा हो या हिमाचल, राजस्थान हो या दिल्ली या फिर पंजाब, सब जगह बड़ी संख्या में नौजवान नशे की गिरफ्त में आ रहे हैं। ड्रोन की सहायता से घुसपैठ कर नशीले पदार्थों के पैकेट गिराए और पहुंचाए जाते हैं। हैरत की बात है कि जेलों में बंद माफिया और तस्कर भी इस अवैध व्यापार में शामिल हैं। मगर सब आंखें मूंदे हुए हैं। आखिर इस नशेबाजी बढ़ावा दे के पीछे कौन लोग हैं? इस सांठगांठ में शामिल काली भेड़ें प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवस्था में सरेआम विचरती हैं। मगर चौकसी करने वालों को ये दिखाई नहीं देतीं। इस तरह नशे का कारोबार लगातार फलता-फूलता है और नौजवान नशे के एक शिखर से दूसरे शिखर तक छलांग लगाते हुए अपने आप को मौत के हवाले कर देता है।
पिछले दिनों पंजाब में नशे के विरुद्ध महाअभियान चलाने का प्रण लिया गया। पुलिस बल जगह-जगह लगातार छापे मार रहे हैं। इस छापामारी में न केवल करोड़ों के नशीले पदार्थ बरामद हुए, बल्कि कई बड़े तस्कर भी पकड़े गए। इस अभियान को एक महीना हो चुका है।
अब तक इस नशा – विरोधी अभियान में, जिसे शुरू में इसे ‘आपरेशन सील’ नाम दिया गया, इस दौरान 2384 प्राथमिकियां दर्ज की गई। अभियान के तहत 4142 तस्कर गिरफ्तार किए गए और 146.3 किलो हेरोइन जब्त हुई। इसके साथ अफीम, चूरा पोस्त और नशीली गोलियां आदि पकड़ी गई। पंजाब पुलिस तस्करों की अवैध संपत्तियों पर बुलडोजर कार्रवाई कर रही है। पहले पंजाब के कुछ सांसदों ने इस कार्रवाई पर सवाल किया था, लेकिन बाद में इसका समर्थन कर दिया। इस कार्रवाई के बाद और नशे को जड़ से उखाड़ने का संकल्प करने जो भी तस्कर पकड़े जाते हैं, उनमें से दंडित होने वालों की के बावजूद, संख्या बहुत कम है। इसलिए अब कानून का अनुपालन तेजी से करना होगा, , ताकि समाज को बर्बाद करने वाले तस्करों को जल्दी सजा मिले। इससे दूसरों को भी सबक मिलेगा।
अभी नशे के सौदागरों के जो अड्डे सामने आए हैं, उनमें से कुछ तो स्कूलों में भी पाए गए। यह बात नहीं कि हरियाणा या हिमाचल में नशीले पदार्थों की वजह से बर्बादी कम हो रही है, अभी हरियाणा के मुख्यमंत्री ने भी नशे के विरुद्ध एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। हिमाचल में चौंकाने वाली बात यह है कि वहां कुछ इलाकों में जो तस्कर गिरफ्तार किए गए उनमें से नब्बे फीसद नशे का धंधा कर रहे थे। । प्रतिदिन सीमा पार से तस्करी करने वाले गिरोह के भंडाफोड़ होते हैं। केवल पंजाब में नहीं, बल्कि राजस्थान की सीमा तक से। इसको चाहे सभी राज्य एक चुनौती के रूप में स्वीकार कर रहे हैं, लेकिन पंजाब ने तो इसे अपने ने प्रमुख एजेंडे में रखा है। । कोई दो मत नहीं कि पूरी तरह नशा उन्मूलन कर दिया जाए, तो पंजाब के नौजवान अपनी शक्ति का सही इस्तेमाल कर सकेंगे। जब नशा-विरोधी मुहिम का हम मूल्यांकन करते हैं, तो पा हैं कि इस मुहिम में जिन्हें बड़ी मछलियां कहा जाता है, उन पर पर तो ही नहीं डाला जाता। इसके अलावा पंजाब और राजस्थान जैसे इलाकों में अवैध शराब निकालने का धंधा भी बड़े जोर-शोर से किया जाता है। भारत इस समय एक बड़ी शक्ति बन चुका है। हम कृत्रिम मेधा
के विकास और डिजिटल बनने में किसी से कम नहीं। पश्चिमी देशों से भी बहुत पीछे नहीं। इसके अतिरिक्त हमारा अंतरिक्ष खोज अभियान भी बड़ी कामयाबी के साथ चल रहा है। हमने । हमने इन अभियानों को किफायत के साथ संपन्न करने और चंद्रयान-3 द्वारा चांद के दक्षिणी भाग उतारने में सफलता प्राप्त कर ली है, लेकिन सवाल कि नौजवानों की नई खेप इन अनुसंधानों में शामिल होती नजर क्यों नहीं आती? नशे के इस्तेमाल ने उनके दिमागों को जैसे कुंद कर दिया है। जब शिक्षा संबंधी सर्वेक्षण ये बताएं कि आठवीं और दसवीं का छात्र दूसरी कक्षा का गुणा- भाग भी नहीं कर सकता और अंग्रेजी की पूर्ण वर्णमाला भी नहीं बता सकता, तो हम इस शिक्षा के स्तर की क्या बात करें ? इसका बड़ा कारण यह है कि स्कूलों तक नशा पहुंच चुका है। इसको जड़ से उखाड़ने के लिए न केवल प्रशासन को आगे आना होगा, बल्कि लोगों को भी ‘सब चलता है’ की प्रवृत्ति को त्यागना होगा। अभिभावकों का उतना ही दायित्व है, जितना सरकार का है। निस्संदेह युवाओं का भविष्य का बचाना जरूरी है। अगर उन्हें समुचित शिक्षा मिले और बेहतर भविष्य की गारंटी दी जाए, तो वे नशे के अंधे गलियारे में कभी नहीं भटकेंगे।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब
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