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भारतीय उड्डयन क्षेत्र की प्रगति -विजय गर्ग
भारत का उड्डयन क्षेत्र इस समय महत्वपूर्ण मोड़ पर है। देश की विशाल जनसंख्या तथा तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के बावजूद उसे हवाईअड्डों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। क्या कभी आपने सोचा है कि अमेरिका में कितने हवाईअड्डे हैं? यह संख्या आपके अधिकाधिक अनुमान से बहुत अधिक यानी लगभग 19,000 है। लगभग 330 मिलियन जनसंख्या वाले अमेरिका ने हवाईअड्डों का व्यापक संजाल बना कर देश भर में सहज कनेक्टिविटी सुनिश्चित की है।
अब इसकी तुलना भारत से करें। अमेरिका से तीन गुना अधिक जनसंख्या वाले भारत में वर्तमान समय में केवल लगभग 500 हवाईअड्डे हैं। यह तथ्य और भी अधिक आश्चर्यजनक है कि इनमें से को ही अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे केवल का दर्जा मिला है। यह भयानक भिन्नता केवल एक आंकड़े से आगे जाती है। इससे भारत के सामने उड्डयन क्षेत्र में ढांचागत चुनौतियां स्पष्ट हैं तथा इसके साथ ही इस क्षेत्र के व्यापक विस्तार की आवश्यकता भी उजागर होती है। भारत तथा विदेशों में उड्डयन क्षेत्र की तुलना करने के दृष्टिकोण से पश्चिम बंगाल और ब्रिटेन के बीच भी ‘तुलना की जा सकती है। दोनों की जनसंख्या लगभग बराबर है र उनके उड्डयन नेटवर्क में बहुत बड़ा अंतर है।
जहां ब्रिटेन में लगभग 150 हवाईअड्डे हैं, वहीं पश्चिम बंगाल में केवल तीन यात्री हवाई अड्डे – कोलकाता, बागडोगरा और अंडाल हैं। यह अंतर केवल सुविधा के दृष्टिकोण से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इससे खोए हुए आर्थिक अवसरों की रूपरेखा स्पष्ट होती है तथा इसके साथ ही तेज ढांचागत विकास की आवश्यकता भी रेखांकित होती है। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में हवाईयात्रा दैनिक सुविधा की चीज है क्योंकि यह सस्ती, सक्षम तथा दैनिक जीवन से जुड़ी है। इससे लोगों को ट्रैफिक से मुक्ति मिलती है, उनका समय बचता है तथा आर्थिक विकास की गति
तेज होती है। लेकिन अब भी भारत में हवाईयात्रा को शानोशौकत की चीज माना जाता है और इसकी पहुंच केवल कुछ विशिष्ट लोगों तक ही है। भारत का उड्डयन नेटवर्क उसकी बढ़ती हुई मांग को देखते हुए पूरी तरह अपर्याप्त है। केवल 29 अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डों तथा लगभग कुल 500 हवाईअड्डों के साथ उड्डयन क्षेत्र की ढांचागत संरचना घरेलू और अंतरराष्ट्रीय हवाई यात्रियों की संख्या से निपटने के लिए संघर्ष कर रही है। दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरू जैसे बड़े शहरों में हवाईअड्डे लगातार भारी भीड़ से भरे रहते हैं जिसके कारण विलंब, भीड़ तथा अक्षमता का सामना करना पड़ता है। इसके उलट देश के विशाल हिस्से, खासकर छोटे कस्बे और ग्रामीण क्षेत्र एक दूसरे अलगाव का सामना करते हैं और साधनों वे रेलवे व राजमार्गों जैसे पुराने परिवहन : नर्भ हैं। वर्तमान समय में एयरपोर्ट अथारिटी आफ इंडिया- एएआई लगभग 150 हवाईअड्डों का प्रबंधन करत है, लेकिन अमेरिका के लगभग 5000 सिविलियन हवाईअड्डों की तुलना में यह संख्या नाटकीय रूप से नगण्य है। यह अंतर उस समय और भी अधिक चिन्ताजनक हो जाता है, जब यह तथ्य सामने रखा जाता है कि भारत की जनसंख्या अमेरिका की जनसंख्या से तीन गुना अधिक है। स्पष्ट है कि भारत को अपने उड्डयन ढांचागत संरचना का व्यापक विस्तार करना चाहिए। यह विस्तार तत्काल करने की आवश्यकता है। भारत में सीमित उड्डयन नेटवर्क के भारी नुकसान होते हैं। इससे क्षेत्रीय कनेक्टिविटी सीमित होती है, पर्यटन बढ़ाने में बाधा आती है तथा आर्थिक वृद्धि तेज करने की गति धीमी हो जाती है। भारत को यह कमी दूर करने के लिए निर्णायक कदम उठाने चाहिए। भविष्य के लिए साहसी दृष्टिकोण में आने वाले वर्षों में नए हवाईअड्डे बनाने की दिशा में तेजी से कदम उठाए जाने चाहिए।
से कम 1,500 भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर बड़े जनसंख्या क्षेत्र में प्रति 100 किलोमीटर पर एक हवाईअड्डा जरूर हो। इस विशाल उड्डयन ढांचागत संरचना का निर्माण कर भारत छोटे शहरों तथा कस्बों की आर्थिक क्षमताओं को विकास का पूरा अवसर दे सकता है। भारत जैसे विशाल देश में सुविकसित हवाई ढांचागत संरचना का विकास और उससे होने वाले आर्थिक लाभ पूरी तरह स्पष्ट हैं। हवाई यात्रा केवल परिवहन का नवीनतम साधन है, बल्कि यह सर्वाधिक सुरक्षित तथा सर्वाधिक सक्षम है। ऐसे देश में जहां सड़कें और रेलवे अक्सर बहुत अधिक भीड़ होने के कारण विलंब का शिकार बनते हैं, एक जीवन्त उड्डयन नेटवर्क वर्तमान परिवहन व्यवस्थाओं से बोझ घटा सकता है तथा देश भर में आवागमन को ज्यादा सहज बना सकता है। इसके आर्थिक लाभ भी असाधारण संख्या में वृद्धि से हजारों रोजगारों का सृजन होगा, निवेश आकर्षित होगा तथा क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा मिलेगा। बेहतर हवाई कनेक्टिविटी से बिजनेस गतिविधियां बढ़ेंगी, पर्यटकों की यात्रा आसान होगी तथा आम जनसंख्या को भी समय खर्च करने वाली सड़क व रेल यात्राओं का विकल्प मिलेगा। हालांकि, नए हवाईअड्डों के विकास के लिए भारी निवेश और समय की जरूरत होगी, पर भारत में खोजी समाधान निकालने की क्षमता है।
ऐसा एक दृष्टिकोण राजमार्गों को आपातकालीन रनवे में बदलना है। इस माडल का अमेरिका में सफल क्रियान्वयन हुआ है। भारत में राजमार्गों के परिवर्तन में इस अवधारणा का व्यापक प्रयोग हो सकता है। इससे छोटे विमान दुर्गम क्षेत्रों के बीच महत्वपूर्ण हवाई कनेक्टिविटी सुनिश्चित कर सकते हैं और इसमें पूरी तरह नए हवाईअड्डे बनाने पर होने वाला खर्च भी बचेगा।
पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में यह रणनीति गेमचेंजर हो सकती है। रोड-रनवे हवाई कनेक्टिविटी को आगे बढ़ाने में लागत प्रभावी विकल्प हो सकते हैं, इससे दैनिक यात्रियों को लाभ होगा तथा प्राकृतिक आपदा जैसे संकटों के समय आपातकालीन सेवाओं को लाभ मिलेगा। पश्चिमी देशों में हवाई यात्रा का विकास दैनिक जीवन के अंग के रूप में हुआ है। यह सस्ती, सक्षम तथा व्यापक पहुंच में है। लेकिन भारत में हवाईयात्रा अब भी शानोशौकत की चीज मानी जाती है जो औसत नागरिक की पहुंच से बाहर है।
यह दृष्टिकोण बदलने की जरूरत है। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले बहुत बड़े देश में हवाई यात्रा एक मूलभूत आवश्यकता है जिसे सभी आर्थिक स्तर वाले लोगों को लाभ मिलना चाहिए। उड्डयन नेटवर्क के विस्तार से उड़ानें जनसंख्या के बड़े हिस्से के लिए ज्यादा सस्ती और व्यावहारिक हो जाएगी। भारत उड्डयन यात्रा में महत्वपूर्ण मोड़ पर है। देश की आर्थिक प्रगति तथा विशाल जनसंख्या लिए समान रूप से तेज हवाई यात्रा ढांचे का विस्तार जरूरी है। ‘उड़ान’ योजना जैसी सरकारी पहलों का लक्ष्य क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है। यह सही दिशा में एक कदम है, लेकिन बहुत कुछ करना बाकी है। निकट भविष्य में कम से कम 1,500 1 हवाई करने का लक्ष्य होना चाहिए ताकि हर क्षेत्र, खासकर पश्चिम बंगाल जैसे अविकसित क्षेत्रों को बेहतर कनेक्टिविटी मिल सके। हाईवे रनवे जैसे खोजी विचारों से हवाई यात्रा ज्यादा सस्ती होगी तथा भारत में उड्डयन कमी दूर करने की दिशा में हवाई पट्टियों के विस्तार में योगदान मिलेगा। भारत में एक जीवन्त उड्डयन ढांचागत संरचना का तत्काल विकास आवश्यक है और इस पर फौरन काम शुरू किया जाना चाहिए।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कोर चंद मलोट पंजाब
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