सॉफ्ट स्किल्स’ के बिन कॅरिअर है अधूरा -विजय गर्ग
आज के जॉब मार्केट में प्रतिस्पर्धा बहुत ही ज्यादा है। इसमें टिके रहने के लिए दमदार तकनीकी विशेषज्ञता का होना जरूरी है, किंतु सिर्फ इसी के दम पर आप अपने कॅरिअर में कामयाबी पा जाएं, इसकी कोई गारंटी नहीं है। जीआई ग्रुप होल्डिंग इंडिया के वाइस प्रेसिडेंट स्वदीप कुमार सेन ने कहा कि आज के दौर में नियोक्ता सॉफ्ट स्किल्स को बहुत अहमियत दे रहे हैं। सॉफ्ट स्किल्स, यानी वे व्यक्तिगत गुण और पारस्परिक क्षमताएं, जो असरदार सहयोग, संप्रेषण एवं समस्या हल करने की काबिलियत को उजागर करते हैं। ये कौशल आपके तकनीकी ज्ञान के पूरक बनते हैं और आपके कॅरिअर निर्माण में प्रभावशाली साबित होते हैं।
अनुकूलन क्षमताः अनुकूलन क्षमता वह कौशल है, जिसके होने से कोई व्यक्ति हो रहे बदलावों के अनुसार खुद को तेजी से ढाल लेता है और सकारात्मक रवैये के साथ नई चुनौतियों का सामना करता है। अनुकूलन क्षमता होने का मतलब यह है कि आप विभिन्न परिवेशों में आगे बढ़ सकते हैं, नए कौशल सीख सकते हैं और निरंतर बदलते हुए माहौल में प्रासंगिक बने रह सकते हैं। वास्तव में, नेतृत्व और नवप्रवर्तन के लिए अनुकूलन क्षमता को बुनियादी कौशल के रूप में देखा जाता है।
प्रभावी संप्रेषण : आपकी भूमिका या इंडस्ट्री कोई भी हो, संप्रेषण सफलता की कुंजी है। प्रभावी संप्रेषण में न केवल स्पष्टता व आत्मविश्वास से कहना, बल्कि ध्यान से सुनना और दूसरों के दृष्टिकोण को समझना भी शामिल है। चाहे आप कोई प्रस्ताव प्रस्तुत कर रहे हों, फीडबैक दे रहे हों या टीम सदस्यों के साथ मिलकर काम कर रहे हों, , पुख्ता संप्रेषण यह सुनिश्चित करता है कि आपके विचारों को लोग आसानी से समझ सकें।
भावनात्मक बुद्धिमत्ताः भावनात्मक बुद्धिमत्ता यानी इमोशनल इंटेलीजेंस (ईक्यू) आपको अपनी खुद की और दूसरों की भावनाओं को पहचानने, समझने व संभालने की क्षमता प्रदान करती है। यह एक ऐसा कौशल है, जो टीम में आपके प्रभावी ढंग से काम करने, मजबूत संबंध विकसित करने और विवादों को सृजनात्मक तरीके से संभालने की योग्यता बढ़ाता है। उच्च भावनात्मक बुद्धिमत्ता को अक्सर बेहतर नेतृत्व एवं निर्णय लेने की काबिलियत से जोड़ा जाता है, क्योंकि यह लोगों को कार्यस्थल पर पेचीदा सामाजिक संबंधों को संभालने में मददगार साबित होती है।
लचीलापनः लचीलापन वह क्षमता है, जिसके होने से व्यक्ति नाकामियों से उबरकर अपना काम जारी रखता है, चाहे कोई भी विपरीत स्थिति हो, वह हार नहीं मानता, गिर कर फिर उठ खड़ा होता है। पेशेवर दुनिया में नाकामयाबी से दो-चार होते रहना पड़ता है। कभी कोई प्रोजेक्ट फेल हो जाता है, कभी मौका हाथ से निकल जाता है या अप्रत्याशित बदलाव हो जाते हैं। जिनमें लचीलापन होता है, वे अपनी सोच सकारात्मक बनाए रखते हैं, अपने अनुभवों से सीखते हैं और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में अपने प्रयासों को निरंतर जारी रखते हैं।
सहयोगः जैसे-जैसे कार्यस्थल पहले से ज्यादा सहयोगात्मक और क्रॉस-फंक्शनल बनते जा रहे हैं, वैसे-वैसे टीम में रह कर काम करने की योग्यता और ज्यादा जरूरी होती जा रही है। सहयोग का मतलब है विचारों को साझा करना, दूसरे कर्मचारियों की क्षमताओं का उपयोग करना और साझे लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु समूह के प्रयासों में योगदान देना। जो पेशेवर प्रभावशाली तरीके से सहयोग कर सकते हैं, वे न केवल अपने काम की गुणवत्ता में इजाफा करते हैं, बल्कि अपने सहयोगियों के संग ज्यादा मजबूत रिश्ते भी कायम करते हैं।
नेतृत्वः नेतृत्व का तात्पर्य सिर्फ टीम का प्रबंधन करना भर नहीं है, बल्कि इसका आशय है दूसरों को प्रेरित करना, फैसले लेना और सफलता की ओर समूह का मार्गदर्शन करना। भले ही आप औपचारिक रूप से नेतृत्व के ओहदे पर न हों, किंतु फिर भी पहल करना, जवाबदेही दर्शाना और सकारात्मक रूप से दूसरों को प्रभावित करना, ये सभी गुण नेतृत्व के ही हैं। मजबूत नेतृत्व कौशल वाले पेशेवर अक्सर बड़े जिम्मेदार पदों पर पाए जाएंगे, क्योंकि वे परियोजनाओं और टीमों का असरदार ढंग से मार्गदर्शन करने में सक्षम होते हैं।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब