…..आज तो हम तुम दोनों जने को समोसा खिला के रहेंगे।
….ठीक है ठीक है, पर राजू तुम पैसा कहाँ से लाओगे।
….. अरे यार हमारे हाथ खजाने की चाभी लग गई है ।
…अबे कौन सा खजाना कौन सी चाभी, फेंको न तुम।
….. अमा हम फेंक नहीं रहे बस तुम लोग आम खाओ पेड़ काहे गिन रहे ।
….ठीक है भइया खिलाओ, सिगरेट भी पिलाय दो। हमैं कौन प्राब्लम है।
….अरे बिल्कुल अब पार्टी करो ।
….सच में राजू तुमाये हाथ खजाने की चाभी लग गई क्या?
….हाँ यारों बड़के भइया के स्कॉलरशिप का जो बैंक खाता है ना वही। हम दोनो का साइन भी तो एकै जैसा है। और भैया भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए बाहर हैं। फिर क्या सागर में से एक दो मग्गा पानी निकाल ल्यो किसी को पता भी न चले।
….और जो मास्साब को पता चला तो छील डालेंगे तुम्हें।
….अबे पापा को स्कूल और खाना बनाने से फुर्सत मिलेगी तब छीलेंगे न।
ये दसवीं में पढ़ने वाले राजू और उनके मित्रों के बीच का वार्तालाप।
ऐसा नहीं था कि घर में पैसों की कमी थी पर हाँ इतना फालतू भी नहीं था कि उड़ाया जाए। पैंतालीस वर्ष के विधुर पिता इन्टर कॉलेज में लेक्चरर थे ।तीन जन का परिवार। सीधे साधे मास्टर साहब ।
धीरे-धीरे पूरा खाता समोसे और सिगरेट की भेंट चढ़ खाली हो गया। और बड़के भैया को पता चला तो राजू की खूब कुटाई हुई, कभी फूलों छड़ी से भी न छूने वाले पापा मार-मार के थक गए और हताश हो वहीं बैठ गए कि बिन माँ के दो बच्चे ,एक से संस्कार एक सी परवरिश पर दोनों इतने अलग कैसे। एक इतना मेहनती कि अपनी पूरी पढ़ाई अपने दम पर मिली छात्रवृत्ति के भरोसे पूरी कर रहा और दूसरा आवारा और चोर। मास्टर साहब ने कसम खाई कि मुंह नहीं देखेंगे राजू का।
और भेज दिया गया राजू को बोर्डिंग स्कूल।एक ही मार ने ज्ञान चक्षु खोल दिए जाते-जाते बोले “मुझे माफ़ कर दो भैया मैं एक-एक पाई चुका दूंगा”। तब बड़के भैया ने कलेजे से लगाते हुए कहा था कि “पगले तू इन पैसों की बात कर रहा तेरे ऊपर तो जान न्यौछावर कर दूँ।पर बस तू जीवन में कुछ अच्छा और सही कर के दिखा दे जिससे पापा की परवरिश पर कोई ऊँगली न उठा पाए माफी तो तुझे पापा से मांगनी होगी”।
बोर्डिंग स्कूल के आखिरी साल के वार्षिक उत्सव में जब स्टेज पर ‘मोस्ट डिसिप्लिन्ड स्टूडेंट’ राजेन्द्र शर्मा को बुलाया गया तब दर्शक दीर्घा में बैठे मास्टर साहब और भैया की आँखे एक बार फिर से भीग रही थीं।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब