लखनऊ(तौसीफ कुरैशी) लोकसभा चुनाव 2024 के आम चुनाव में नौ विधायकों के सांसद बन जाने के बाद प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनावों को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में शह और मात का खेल चल ही रहा है साथ ही क्षेत्रीय आधार पर भी शह और मात का खेल चल रहा है और यह ऐसा खेल है इसमें शीर्ष स्तर पर चल रहे खेल को बिगाड़ा जा सकता हैं।भाजपा में भी स्थानीय स्तर पर सीटों को लेकर हो रहा घमासान किसी से छिपा नहीं है वहीं सपा भी इस घमासान से अछुती नहीं है क्षेत्रों से छन छन कर आ रही खबरें दोनों ही पालों का सियासी बीपी बढ़ाने का काम कर रही हैं, विपक्ष का आरोप है कि चुनाव आयोग की पीठ पर बैठ कर भाजपा चुनाव का रुख अपनी ओर मोडना चाहती है जबकि जनता भाजपा के खिलाफ है और उसे हार का स्वाद चखाने के लिए मतदान करने जा रही है और भाजपा हार से डर रही है।कानपुर की सीमामाऊ सीट से सपा की उम्मीदवार नसीम सौलंकी भी विवादों में घिर गई है यहां सपा का वोटबैंक कहें या बंधवा मजदूर मुसलमान छिटक सकता है क्योंकि यहां की सपा प्रत्याशी नसीम सौलंकी से चुनाव जीतने की चाहत में कुछ ऐसा करा दिया जो उनकी हार का कारण भी बन सकता है मुरादाबाद की कुरंदकी सीट से भाजपा उम्मीदवार मुसलमानों के बीच वोट मांगने जा रहे वही मुज़फ़्फ़रनगर की मीरापुर सीट से लोकदल की उम्मीदवार भाजपा से आयातित कर लाई गई मिथलेश पाल के लिए खतौली के पूर्व विधायक विक्रम सैनी जिन पर 2013 के दंगे भडकाने का आरोप है एक मामले में में उन्हें सजा भी हुई थी जब वह मतदाताओं को खुदा का हवाला देते नजर आए और वह यही नहीं रुके उन्होंने मतदाताओं को खुदा की कसम भी दी संघ और भाजपा का यही रंग है कि जहां उसे जैसा करने की जरुरत महसूस करते हैं वैसा ही कर लेते हैं मकसद चुनाव जीतना होता है। मीरापुर विधानसभा सीट पर जो समीकरण दिखाई दे रहे हैं वहां चुनाव को लेकर मतदाताओं में कोई उत्साह नजर नहीं आ रहा है उसकी वजह यह सामने आ रही है वह यह बताई जा रही है कि सपा और भाजपा की ओर से जो उम्मीदवार दिए गए हैं उनको जनता स्वीकार नहीं कर रही है रालोद ने उम्मीदवार दी है वह भाजपा से आयातित कर लाई गई है जबकि वह इससे पूर्व में रालोद में ही थी और रालोद से ही विधायक बनी थी सत्ता की चकाचौंध उन्हें भाजपा में ले गई थी सियासी मजबूरी में फिर अपने पूर्व के घर ही आना पड़ा यही वजह यहां विरोध का कारण बन रही है बाकी टिकट के दावेदार टिकट ना मिलने की वजह से खामोशी की चादर ओढ़कर सौ गए हैं, चंदन चौहान के सांसद बन जाने की वजह से यहां चुनाव हो रहे हैं सांसद चंदन चौहान भी अपनी पत्नी को चुनाव लडाने के इच्छुक थे लेकिन रालोद मुखिया चौधरी जयंत सिंह फिलहाल सत्ता की चाहत के चलते भाजपा के सामने समर्पण के भाव में नजर आ रहे हैं जैसे भाजपा चाह रही है वैसे ही रालोद में सियासी फैसले हो रहे हैं रालोद में यह अंदर ही अंदर विरोध हो रहा है। ऐसे ही हालत सपा में नजर आ रहे है सपा में भी टिकट के दावेदारों की लंबी कतार थी लेकिन टिकट लेने में बसपा से सांसद रहे कादिर राणा अपनी पुत्र वधु और बसपा से राज्यसभा सांसद रहे मुनकाद अली की बेटी को दिलाने में कामयाब रहे मुज़फ़्फ़रनगर की सियासत में मुस्लिम नेताओं का अभाव हो गया है पूर्व सांसद कादिर राणा को सपा का शीर्ष नेतृत्व टिकट नहीं देना चाहता था लेकिन उनके बाद ऐसा कोई नेता सपा के पास नहीं था जिस पर उप चुनाव का दांव खेला जा सकता फिर विवश होकर कादिर राणा जो खुद टिकट मांग रहे थे उनके नाम को पीछे किया गया और उनके पुत्र शाह मोहम्मद राणा के नाम पर विचार किया गया लेकिन चुनावी चौसर पर राणा परिवार का यह मोहरा भी सही फिट नहीं बैठा फिर बसपा सांसद रहे वरिष्ठ बसपा नेता की पुत्री और बसपा से पूर्व सांसद रहे सपा नेता कादिर राणा की पुत्र वधु के नाम पर अंतिम मोहर लगी क्षेत्रीय जनता इस नाम को हजम कर पाएगी या नही यह तो अब बीस नंवबर को पता चलेगा।2017 में मामूली अंतर से चुनाव हारे या यू भी कहा जा सकता है कि जानकारी के अभाव में या सीधे पन की वजह से सपा के सिंबल पर चुनाव लडे हाजी लियाकत भी नाराजगी जाहिर करते घूम रहे हैं। वहीं शिवपाल खेमे के गुज्जर नेता चौधरी इलम सिंह भी अपनी जाति के 20 हजार वोटों की खातिर सपा के टिकट की चाहत रखते थे वह भी उस तरीक़े से चुनाव में नजर नहीं आ रहे हैं देखा जाए तो यह स्थिति दोनों तरफ़ मोजूद है इस लिए यह कहना मुश्किल है कि मीरापुर उपचुनाव में सियासी ऊंट किस करवट बैठेगा यह अभी साफ़ नहीं हो पा रहा है मिथलेश पाल हिंदुत्व के सहारे और सपा की उम्मीदवार मुस्लिमों के साथ अन्य के सहारे अपनी अपनी चुनावी वैतरणी पार करने में जीतोड़ कोशिश करते नजर आ रहे हैं।