T N Sinha (BREAKING NEWS EXPRESS )
वैसे ये बात सत्य है कि इस नश्वर संसार में कुछ भी शाश्वत नहीं है। ऐसा समझा जाता है कि अगर कुछ शाश्वत है, तो वो प्रेम है। लोग अमूमन इसे भौतिकवाद से जोड़ कर देखते हैं, जिसका अंजाम ज़िंदगी के साथ भी और ज़िंदगी के बाद भी, रोमांस की तलाश में रहता है।
बकौल श्रीलाल शुक्ल, पुनर्जन्म की अवधारणा में अदालतों का बहुत बड़ा योगदान है। ताकि वादी और प्रतिवादी इस अफ़सोस के साथ न मरें कि दीवानी मुकदमे का फैसला नहीं हुआ। उसके लिए अगला जन्म पड़ा है। अदालतों के अतिरिक्त ये बात रोमांस पर भी लागू होती है, जिसे ‘सौ बार जन्म लेंगे, सौ बार फ़ना होंगे’ गाने की शक्ल में समझाने की कोशिश की गई है।
प्रेम जो है, ये लड़कपन में ही, किसी न किसी से हो ही जाता है। इस मामले में आजकल का वक़्त अच्छा है। दूसरी ही मुलाक़ात में लड़का बेहिचक ‘आती क्या खंडाला’ कह देता है। लड़की भी होशियार होती है कि ये कहीं खंडाला ले जाकर, खाली एक वडा पाव खिलाकर टरका न दे, लिहाज़ा वो हाथ के बात साफ़ कर लेती है कि वहां जाकर करना क्या है ? जब लड़का घूमने फिरने, खाने पीने, नाचने गाने और ऐश करने की तसदीक कर देता है, तब जाकर सुझाव पर गौर किया जाता है। पहले ऐसा नहीं था। खंडाला तो दूर की बात है। लड़की को उसके मनपसंद चाट के ठेले पर बुलाने के लिए सोच विचार में ही सालों निकल जाते थे। मन में बुरे बुरे ख्याल आते थे कि कहीं लड़की ने झिड़कने के साथ, घर में शिकायत कर दी तो। इन्हीँ ख्यालात के बीच डूबते उतराते, इधर लड़की की शादी की तारीख आ जाती थी और उधर चाट वाला तवा ही खटखटाता रह जाता था। लड़का अलबत्ता रोमांस के ख़्वाब की तस्वीर बुनता रहता है, लेकिन ताबीर किसी सूरतेहाल में नहीं बनती।
भिन्न भिन्न देशों में रहन सहन के अलग अलग तौर तरीके होने की तरह प्रेम और रोमांस के भी अलग नियम कायदे और कानून हैं।भारत में ये समझा जाता है कि किसी तरह एक बार शादी कर दो, उसके बाद प्रेम तो झक मारकर अपने आप हो ही जायेगा। ये भी मान कर चला जाता है कि प्रेम और रोमांस एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और उसूलन शादी के बाद रोमांस का होना लाज़मी है। लोग बाग यहां वैसे ही नियम कायदे कानून को ताक पर रख कर चलते हैं, तो रोमांस की क्या बिसात है।
हमारे एक मित्र की शादी हुई तो रोमांस की मारी उनकी बीवी ने आते ही मालूमात की, कि उनको खाने में क्या पसंद है। बड़ी मुश्किल से पता चला कि सावन में कभी कभार भुना हुआ भुट्टा शौक से खा लेते हैं। रोमांस का ये नुस्खा हाथ लगते ही सुबह नाश्ते में कॉर्न फ्लेक्स, खाने से पहले स्वीट कॉर्न सूप, फ़िर मक्की की रोटी के साथ पालक कॉर्न की सब्ज़ी, शाम की चाय के साथ पॉप कॉर्न, रात में भुट्टे की खीस की कचौरी के साथ भुट्टे की खीर और सोने से पहले भुना हुआ भुट्टा मय डंडी के पकड़ाया जाने लगा। जब ये सिलसिला काफी दिन चला और तौबा बुल गई, तब जाकर पता चला कि ये रोमांस का एक तरीका है। उन्होंने गुज़ारिश की वो अब ज़िंदगी में भुट्टे की तरफ़ देखेंगे भी नहीं और बदले में वो भुट्टा मार्का रोमांस का ख्याल दिल में नहीं लायेंगी।
एक दफ़े उनको स्कूटर पर पीछे बैठना था। उन्होंने उनसे कहा कि बैठकर उन्हें पीछे से पकड़ लें, नहीं तो गिरने का खतरा है। उनकी बीवी समझीं कि ये रोमांटिक होने की कोशिश कर रहे हैं। बोलीं, ‘ज़्यादा दिल में दर्द न उठे। हम ऐसा हरगिज़ भी नहीं करेंगे। भला, कोई देखेगा तो क्या कहेगा।’ वो झुंझला कर बोले, ‘चलते स्कूटर से गिरने के बाद, अभी सड़क पर बिखरी पड़ी मिलोगी, तो दिल को छोड़कर पूरे शरीर में ‘ये दर्द बड़ा बेदर्द है’, होने की नौबत आ जायेगी।’
वक़्त का क्या है, वो तो ‘सुबह होती है शाम होती है, उम्र यूं ही तमाम होती है’ की तरह बीतता ही जाता है। अब उसे इस बात से क्या लेना देना कि रोमांस का दख़ल हुआ या नहीं। वक़्त को भले इस बात से मतलब न हो, लेकिन उनकी बीवी को ये एहसास होने लगा था कि ज़िंदगी में रोमांस का होना ज़रूरी है। भुट्टे का नाम लेते तो तलाक़ का खतरा था, इसलिए इस बार रोमांस हलवे की शक्ल में नमूदार हुआ। खाने के बाद प्लेट में ज़रा सा सूजी का हलवा सामने पटक दिया गया कि ‘बहुत रोमांस की रट लगाये थे। हलवा खाओ। शुगर का ख्याल तो है नहीं। हमें क्या, ठूंसो।’ कोयल सी कूकती आवाज़ में रोमांस से ज़्यादा कोलेस्ट्रॉल का ख्याल करते हुए, हलवे में घी भी उतना ही था। ठूसनें वाला माहौल ज़रूर रोमांटिक और दिल बाग बाग करने वाला था।
एक दिन रेडियो पर फरमाइशी गीतों के प्रोग्राम में किसी और रोमांस के मारे श्रोता की फ़रमाईश पर ये गाना बज गया कि ‘दुनिया वालों से दूर, जलने वालों से दूर। आजा आजा चलें, कहीं दूर, कहीं दूर।’ बात सौ फीसदी सही थी। अपने आप पर सौ लानतें भेजीं कि ये कारगर आईडिया पहले क्यों दिमाग़ में नहीं आया। आनन फानन में अटैचियाँ बांधकर पहाड़ की ओर ये सोच कर रवानगी दर्ज करा दी कि वहां रोमांस के नाम पर चीड़ और देवदार के पेड़ों के चारों ओर घूमते हुए एकाध गाना गाने की तमन्ना ही पूरी हो जायेगी। इस बात का ख्याल ही न रहा कि ये जो हिल स्टेशन होते हैं, यहां मार्केट भी होते हैं। वहां बीवी ने ‘हमें तुमसे प्यार कितना’ वाली तर्ज़ पर सारे रिश्तेदारों ख्याल रखते हुए, खरीददारी करनी शुरू की। कुछ आईटम पसंद आये, तो कीमत मुनासिब नहीं लगी। जहां कीमत जंची, वहां आईटम में खोट निकल आई। इन हालात में पर्यटन विभाग का, लोकल टूरिस्ट गाइड बड़ा मददगार साबित होता है। वो लोकल मार्केट और अन्य जानकारी उपलब्ध करा देता है। सारा दिन निकल गया। शाम ढले होटल में वापस आये, तो कैलकुलेटर लेकर लंबा चौड़ा हिसाब किताब, जोड़ना घटाना ज़रूरी हो गया। मशक्कत के बाद नतीजा निकला कि होटल वाला सामान रखवा कर खाली हाथ वापस रवाना कर दे, उसके पहले कल सबसे पहला काम होटल से रोमांटिक चेक आउट करना बेहतर होगा।
तेज़ कदम राहों पर कुछ सुस्त कदम रखते हुए ज़िंदगी अपनी बेढब रफ़्तार से चलती रही, लेकिन रोमांस न होना था और न हुआ। आखिरकार ये और सुनने को मिल गया, ‘अब इस उम्र में अठखेलियाँ सूझ रहीं हैं। तुम्हारे चोंचले ही खत्म होने में नहीं आते।’ अब ये समझ में न आये कि चोचलों के खत्म होने के लिए उनका शुरू होना भी तो ज़रूरी है। बहरहाल ‘ग़म दिये मुस्तकिल, कितना नाज़ुक है दिल’ ये वाकई ज़ालिम ज़माने ने न जाना।
एक इत्मिनान ज़रूर रहा कि इतना फ़िक्रमंद होने की भी कोई ख़ास ज़रूरत नहीं है। रोमांस के लिए अभी अगला जन्म तो पड़ा ही है।
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