डा• आकांक्षा दीक्षित(BREAKING NEWS EXPRESS)
अपने नीरव आंगन को निर्निमेष देखते एक पिता ने अकस्मात् एक निर्णय लिया और अपनी पुत्री को पुकारा। उन्होंने कहा ,’ पुत्री! मैं विधाता नहीं हूं ,एक सामान्य सा गणितज्ञ हूं किंतु मैं तुम्हारें जीवन की दशा और दिशा अवश्य निर्धारित करने का प्रयास करुंगा।’
पुत्री ने पूछा,’ पिताजी यहां पर सभी बड़े लोग ,परिवारीजन , विवाह को ही कन्या के जीवन का लक्ष्य मानते है,ऐसा क्यों है?’ पिता ने उत्तर
दिया,’ पुत्री! विवाह से हम संतति प्राप्त करते है और उनके रुप में स्वयं को जीवित रखने का प्रयास करते है। तुम्हारे विवाह में हुई समस्या विधाता का निर्णय है किंतु तुम्हें मैं दूसरे रुप में अमर करने का उपाय करुंगा।’ पुत्री ने कौतूहल से पिता को देखा तो पिता ने फिर कहा,’ मैं तुम्हें वो सब सिखाउंगा जो मुझे आता है, हम दोनों मिलकर जो गणित बनायेंगे उसका नाम तुम्हारें नाम पर ‘लीलावती ‘होगा। इसमें संकलन, व्यकलन,गुणन, भाग, वर्गमूल,घनमूल आदि अंकगणित की छोटी-छोटी पहेलियां या प्रश्न होगे जो गणित को सरस बनायेंगे।’
ये पिता थे भारतवर्ष के सिद्धांत शिरोमणि और करण कौतूहल जैसे ग्रंथों के रचयिता महान गणितज्ञ , खगोलशास्त्री,ज्योतिष के प्रकाश विद्वान ‘भास्कराचार्य’। भास्कराचार्य की कन्या लीलावती मेधावी और तीक्ष्ण बुद्धि सम्पन्न बालिका थी। पुत्रियां वैसे भी पिता की लाडली होती है और यदि वह जिज्ञासु और बुद्धिमती भी हो तो भास्कराचार्य जैसे विद्वान पिता को अपार प्रसन्नता होती है। भास्कराचार्य ज्योतिष से अधिक गणित विश्वास रखते थे किंतु पुत्री की जन्मपत्रिका के निष्कर्ष उन्हें विचलित कर रहे थे। लीलावती की कुंडली में वैधव्य दोष था। किसी भी पिता के लिए यह दारुण कष्ट था। किंतु भास्कराचार्य ने गणितीय आकलनों और ज्योतिषीय गणनाओं से शोधकर एक ऐसा मुहूर्त निकाला जिसमें लीलावती का विवाह होने पर वैधव्य योग समाप्त हो रहा था। विवाह तय किया गया, मुहूर्त पर ही विवाह सम्पन्न हो इसके लिए जलघड़ी की व्यवस्था की गई। नियति पर किसी का वश नहीं होता। वधू वेश में सजी लीलावती द्वारा जल में अपनी छाया देखने की उत्सुकता में उसके आभूषण का मोती टूटकर जलघड़ी के छिद्र में अटक गया और मात्र एक घटी के अल्पकाल का शुभ मुहूर्त व्यतीत हो गया और लीलावती का विवाह सम्पन्न ना हो सका। भास्कराचार्य ने अपनी पुत्री को किसी नैराश्य में डूबने का अवसर ही नहीं दिया और उसे गणित, ज्योतिष और खगोलशास्त्र का पूरा ज्ञान दिया। लीलावती ग्रंथ का एक उदाहरण दृष्टव्य है – ‘निर्मल कमलों के एक समूह के तृतीयांश, पंचमांश तथा षष्ठमांश से क्रमश: शिव, विष्णु और सूर्य की पूजा की, चतुर्थांश से पार्वती की और शेष छ: कमलों से गुरु चरणों की पूजा की गई।अये, बाले लीलावती, शीघ्र बता कि उस कमल समूह में कुल कितने फूल थे.?‘
उत्तर है 120 कमल के फूल। इसीप्रकार वर्ग और घन को समझाते हुए भास्कराचार्य कहते हैं ‘अये बाले,लीलावती, वर्गाकार क्षेत्र और उसका क्षेत्रफल वर्ग कहलाता है।दो समान संख्याओं का गुणन भी वर्ग कहलाता है। इसी प्रकार तीन समान संख्याओं का गुणनफल घन है और बारह कोष्ठों और समान भुजाओं वाला ठोस भी घन है।‘‘मूल” शब्द संस्कृत में पेड़ या पौधे की जड़ के अर्थ में या व्यापक रूप में किसी वस्तु के कारण, उद्गम अर्थ में प्रयुक्त होता है,इसलिए प्राचीन गणित में वर्ग मूल का अर्थ था ‘वर्ग का कारण या उद्गम अर्थात् वर्ग एक भुजा‘। वर्ग तथा घनमूल निकालने की अनेक विधियां प्रचलित थीं।लीलावती के प्रश्नों का जबाब देने के क्रम में ही “सिद्धान्त शिरोमणि” नामक एक विशाल ग्रन्थ लिखा गया, जिसके चार भाग हैं- (1) लीलावती (2) बीजगणित (3) ग्रह गणिताध्याय और (4) गोलाध्याय।‘लीलावती’ में बड़े ही सरल और काव्यात्मक तरीके से गणित और खगोल शास्त्र के सूत्रों को समझाया गया है। भास्कराचार्य अपनी पुत्री को सरल कविता के रुप में सूत्र याद करवाते थे और उसी प्रश्नोत्तर शैली में लीलावती ग्रन्थ रचा गया।
अकबर के दरबार के विद्वान फैजी ने सन् 1587 में ‘लीलावती”’ का फारसी भाषा में अनुवाद किया। अंग्रेजी में “लीलावती” का पहला अनुवाद जे. वेलर ने सन् 1716 में किया। कुछ समय पहले तक भी भारत में कई शिक्षक गणित को दोहों में पढ़ाते थे। जैसे कि पन्द्रह का पहाड़ा पंद्रह दूनी तीस ,तिया पैंतालीस, चौके साठ, छक्के नब्बे,अट्ठ बीसा, नौ पैंतीस। इसीतरह गणित अपने पिता से सीखने के बाद लीलावती भी एक महान गणितज्ञ एवं खगोल शास्त्री के रूप में जानी गईं । मनुष्य की मृत्यु निश्चित है उसके ना रहने पर उसकी कीर्ति ही रह जाती है इसीलिए आज गणितज्ञों को ‘लीलावती पुरस्कार’ से सम्मानित किया जाता है। विडम्बना ये है कि जिस गणितज्ञ की पुस्तक के सूत्र आज के गणित, खगोलशास्त्र और ज्योतिष के आधार है, जिसका ‘करण कौतूहल’ ग्रंथ आज भी पांचाग बनाने और फलित ज्योतिष की गणना का मूल ग्रंथ है ,उस महान गणितज्ञ का ज्ञान उसी के देश में उपेक्षित है। गणित को वर्तमान में कठिन विषय माना जाता है जबकि प्राचीनकाल में सरल विधि से पढ़ाए जाने के कारण सभी इस ज्ञान में दक्ष थे। हम सभी को अपनी धरोहरों पर गर्व होना चाहिए साथ ही इस ज्ञान को पुनः प्रचलन में लाए जाने के लिए प्रयास करने चाहिए। लीलावती का यह दृष्टांत नारी सशक्तिकरण का अप्रतिम उदाहरण है। धन्य है भास्कराचार्य जिन्होंने अपनी पुत्री को मात्र एक स्त्री नहीं समझा बल्कि उसके व्यक्तित्व को समग्रता में विकसित करने में अपनी ऊर्जा लगा दी। साथ ही धन्य है वह लीलावती जिसने गणित जैसे विषय को अपनाकर एक अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया कि विवाह आवश्यक हो सकता है किंतु अनिवार्य नहीं । विवाह किए बिना भी अपनी पहचान बनायी जा सकती है। लीलावती के नाम पर रची गई पुस्तक ‘लीलावतीज़ डॉटर्स’ भारतीय महिला वैज्ञानिकों की जीवनियों का एक संकलन है। 2008 में भारतीय विज्ञान अकादमी ने इसे पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया था। पुस्तक का सम्पादन रोहिणी गोडबोले और राम रामस्वामी ने किया है।लीलावतीज़ डॉटर्स का शीर्षक बारहवीं सदी के गणितज्ञ भास्कर द्वितीय की बेटी लीलावती, और भास्कर द्वारा रचित उसी नाम के ग्रंथ से प्रेरित है। कहते है लीलावती इतनी कुशल गणितज्ञ थी कि वे वृक्ष के पत्तों तक की गणना कर सकती थी। इस तरह एक विद्वान पिता की विदुषी पुत्री के रुप में लीलावती सदैव स्मरण की जाती रहेंगी।
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