घृष्णेश्वर दैहिक, दैविक, भौतिक तापों का धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का सुख प्रदान करते हैं।
डा• आकांक्षा दीक्षित(BREAKING NEWS EXPRESS )
हमारी ज्योतिर्लिंगों की यात्रा के क्रम मे महाराष्ट्र यात्रा चल रही थी। औरंगाबाद के निकट दौलताबाद से ग्यारह किलोमीटर दूरी पर घृष्णेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में अंतिम माना जाता है। इसको घुश्मेश्वर भी कहा जाता है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार पुण्यशीला अहिल्याबाई होल्कर जी ने करवाया था।इस ज्योतिर्लिंग के विषय मे एक रोचक पौराणिक कथा भी प्रचलित है। प्रसंगवश बताते चलते हैं। हमें यह कई बार लगता रहा है कि क्यों हम अपनी संस्कृति को हीन मान लेते है ? कारण समझ में ये आया कि हम अपनी संस्कृति की महत्ता से स्वयं अनजान हैं। हमारी पौराणिक कथाएं केवल कथायें नहीं हैं। ध्यान से देखें तो इनमें भूगोल भी है, इतिहास भी है, साहित्य भी है, विज्ञान भी है, संस्कृति भी है और तो और जीवनमूल्य भी है। कहानी ये है कि दक्षिण देश के देवगिरि पर्वत के निकट सुधर्मा नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ निवास करता था। उनके जीवन में एक ही कष्ट था कि वे संतानहीन थे। बहुत समय बीत जाने और अनेक उपायों के बाद भी जब वे संतान प्राप्ति में असफल रहे तो सुदेहा ने दबाव पूर्वक अपनी बहन घुश्मा का विवाह सुधर्मा से करवा दिया।
घुश्मा भगवान शंकर की अनन्य भक्त थी। शिवभक्तिनी घुष्मा प्रतिदिन शत(सौ) पार्थिव शिव बनाकर पूरी भक्ति,निष्ठा और श्रद्धा से पूजन कर उन्हें जल में विसर्जित कर देती थी। उस पर भगवान शिव की महान कृपा थी। समय बीतता गया। घुश्मा ने एक पुत्र को जन्म दिया, उनका घर आनंद और उल्लास से भर गया। उधर सुदेहा को ऐसा लगा कि उसका महत्व कम हो गया है। उसे अपनी ही बहन से ईर्ष्या हो गई। एक दिन सुदेहा ने घुश्मा के पुत्र की हत्या कर,तालाब में फेंक दिया। इस घटना से पूरा परिवार दुःख में डूब गया। किंतु घुश्मा को अपने आराध्य पर अटूट विश्वास था। वह बिना किसी संताप के अपनी नित्य पूजा में लगी रही। जब वह उसी तालाब में अपने पूजित शिव अर्पित कर रही थी, तब उसे तालाब से अपना पुत्र वापस आता दिखा। यह सब भगवान चंद्रशेखर की कृपा से संभव हुआ। भगवान भोलेनाथ स्वयं प्रकट हुये और सुदेहा को दंड देने को तत्पर हुये। घुश्मा ने परम दयालु महादेव से अपनी बहन के लिये क्षमायाचना की। घुश्मा की भक्ति और सदाशयता से प्रसन्न होकर आशुतोष ने उससे वरदान मांगने को कहा। तब घुश्मा ने कहा कि, ‘हे प्रभु आप लोक कल्याण के लिये यहीं पर सदैव निवास करें।’ प्रभु ने कहा कि, ‘मैं यहाँ ज्योति रूप में निवास करूंगा। अंर्तगत अपनी परम भक्त घुश्मा के नाम से घुश्मेश्वर के नाम से जाना जाऊंगा।’ यहीं एक सरोवर भी है, जिसमें स्नान करके लोग दर्शन करने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि शिवशंकर सबकी कामनापूर्ति करते हैं।
‘आशुतोष तुम अवढर दानी।
आरति हरहु दीन जुन जानी।।’
यह तो पौराणिक कथा है। यह स्थान घुष्मा की भक्ति का प्रतीक है। उसी के नाम पर ही इस शिवलिंग का नाम घुष्मेश्वर पड़ा था। कहते हैं कि यहा मौजूद सरोवर, जिसे शिवालय के नाम से जाना जाता है, उसके दर्शन किए बिना ज्योतिर्लिंग की यात्रा संपन्न नहीं होती है। मान्यता है कि जो निःसंतान दम्पती को सूर्योदय से पूर्व इस शिवालय सरोवर के दर्शन बाद घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है, उसकी संतान की प्राप्ति कामना शीघ्र पूरी होती है। इस स्थान का आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक महत्व भी है। इसकी वास्तुकला मंदिर निर्माण का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें दीवारों और छतों पर जटिल नक्काशी और मूर्तियां सजी हुई हैं। मंदिर का भव्य प्रवेश द्वार, छोटे मंदिर और बड़ा तालाब इसकी वास्तुकला की भव्यता को और बढ़ाते हैं।
आध्यात्मिक रुप से मंदिर को भगवान शिव के सबसे शक्तिशाली रूपों में से एक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो लोग इस मंदिर में भक्ति और पवित्रता के साथ पूजा करते हैं, उन्हें आशीर्वाद, सुरक्षा और मोक्ष मिलता है। मंदिर का ऐतिहासिक महत्व भी है। मंदिर का इतिहास समृद्ध और प्राचीन है, जो भगवान कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ से जुड़ा है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर परिसर का समय के साथ विभिन्न शासकों और भक्तों द्वारा विस्तार किया गया, जिससे यह सांस्कृतिक और स्थापत्य महत्व का एक महत्वपूर्ण स्थल बन गया। इस स्थल का सांस्कृतिक महत्व स्वयंसिद्ध है। यह मंदिर भगवान शिव के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, और महा शिवरात्रि और श्रावण जैसे महत्वपूर्ण त्योहारों के दौरान बड़ी संख्या में आगंतुकों को आकर्षित करता है। यह मंदिर जीवंत और स्थायी हिंदू संस्कृति का प्रतीक भी है और इसे भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। इतिहास के विद्यार्थी होने के नाते हमने ये सभी बातें अपने परिवार के लोगों को बताईं, तो पंक्तिबद्ध अन्य लोगों ने भी हमें गाइड बना लिया। हुआ ये कि हम लोग अजंता घूम के अगले दिन सुबह करीब 10.30 के आस- पास घुश्मेश्वर पहुँचे। नहा-धोकर तो आये ही थे, सबने हाथ-पाँव धोये और लाइन में लग गये। बहुत भीड़ नहीं थी पर इस सर्दी के सीजन में इतने श्रृद्धालु सामान्य हैं। हम लोग भी पंक्तिबद्ध होकर हर! हर! महादेव के जयकारे में शामिल हो गये। जय जय शिवशंकर, महादेव की जय के नारों से वातावरण गुंजित हो रहे था। आप लोगों ने अनुभव किया है कि जब हम किसी धार्मिक स्थल पर जाते हैं, तो एक अलग सी मनःस्थिति में होते हैं। एक पवित्र सी भावना मन में जाग्रत हो जाती है। पंक्तिबद्ध हुए श्रृद्धालु हर हर महादेव ! के जप में व्यस्त थे और हमारे चार वर्षीय पुत्र अपने ही कार्यक्रम में लगे थे। लाइन में लगे हुए समय हो गया था, उनको प्यास लगी तो बोतल से पानी पिला दिया गया। पानी पीने के बाद उन्होने आव देखा ना ताव हमसे आगे लगी महिला के लटकते दुपट्टे मे मुँह पोंछ लिया। जब तक समझ पाते वे पीछे मुड़ी । हमें लगा कि अब तो बवाल होना तय है पर हुआ कुछ और। उधर मुँह पोछ दुपट्टा पकड़े पुत्र श्री ने जितने दांत निकले थे तब तक सब उनको दिखा दिए। वो महाराष्ट्रियन महिला भी हंस दी और फिर ये उनकी ही उंगली पकड़कर अंदर तक गए। हमने चैन की सांस ली और सबक भी। यात्रा में मुस्कान बनाए रखने से अप्रत्याशित समस्याएं भी कम हो जाती हैं। सब ईश्वर का प्रताप है। खैर मंदिर के विषय में जानकारी देते-देते धीरे -धीरे खिसकते-खिसकते हम लोग मंदिर के अंदर पहुँचे, दर्शन किये, पंडितजी ने बेटे को टीका लगाया। उस समय तक उसे भूख लग आयी थी। उसे क्या सबको भूख लग आयी थी। गर्भगृह से बाहर निकलते ही हम लोगो के साथ एक सुन्दर संयोग घटित हुआ। मंदिर के सेवादारों ने हम लोगों से कुछ देर ठहरने का आग्रह किया। बारह बज चुका था और हमें भूख लगी थी पर हम लोग उनकी बात,टाल नहीं पाये और वहीं मंदिर के प्रांगण में बैठ गये। भगवान सच में भक्तों मन की बात जान जाते है ? उस समय तो यह बात सिद्ध ही हो गई। हुआ ये कि हम सभी लोग जो वहां रूक गये थे। प्रसाद स्वरूप पूड़ी सब्जी, भोग की मिठाई हम लोगो को परोसी गई। कोई भी भोज्य पदार्थ जब प्रसाद बन जाता है तो कितना स्वादिष्ट हो जाता है। उस दो पूड़ी सब्जी ने हम सबको तृप्त कर दिया। मेरा बेटा जो खाने में इतना नखरीला है उसने भी बड़ी चाव से बिना ना-नुकुर के खा लिया। हम सबने पुनः भगवान को धन्यवाद दिया और इस संकल्प के साथ चल पड़े कि अगर अवसर मिला तो फिर आयेंगे। अब ये मौका कब मिलता है।घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग पूर्वमुखी है, सर्व प्रथम स्वय सूर्यदेव इनकी आराधना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि सूर्य के माध्यम से पूजे जाने के कारण घृष्णेश्वर दैहिक, दैविक, भौतिक तापों का धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का सुख प्रदान करते हैं। आदि शंकराचार्य ने कहा था कि कलियुग में इस ज्योतिर्लिंग के स्मरण मात्र से रोगों, दोष, दुख से मुक्ति मिल जाती है।