हरियाणा-दिवस के सुअवसर पर दिए गए अपने विशेष साक्षात्कार में डॉ. ‘मानव’ ने कहा कि पंजाब से अलग हरियाणा राज्य का गठन ही भाषा के आधार पर हुआ था, लेकिन सरकारों की उपेक्षा के चलते हरियाणवी पिछड़ती चली गई। हरियाणा के हिन्दी और हरियाणवी साहित्य के शोध और संरक्षण में अपने जीवन के पचास महत्त्वपूर्ण वर्ष खपा देने वाले डॉ. रामनिवास ‘मानव’ हरियाणवी की वर्तमान स्थिति से बहुत निराश हैं और व्यथित स्वर में कहते हैं कि अब तक हरियाणवी के विकास के लिए जितने भी प्रयास हुए हैं, उनमें से अधिकतर निजी स्तर पर हुए हैं, राज्य सरकार या राज्य की किसी अकादमी का शायद ही कोई योगदान उनमें रहा हो। यही कारण है कि आज तक न तो हरियाणवी का मानक रूप तय हो पाया है, न हरियाणा में हरियाणवी साहित्य अकादमी का गठन हुआ है और न हरियाणवी में कोई पत्रिका निकलती है। फिर हरियाणवी भाषा का समुचित विकास कैसे संभव है!
–– डॉ. सत्यवान सौरभ
स्वतंत्रता के पश्चात् पंजाब में तो हरियाणवी की घोर उपेक्षा हुई ही, भाषा के आधार पर, पंजाब से अलग राज्य बनने के बाद भी, हरियाणा की सरकारों ने न तो हरियाणवी भाषा की सुध ली और न ही इसके विकास की कोई ठोस कार्य-योजना बनाई। यह कहना है हरियाणवी साहित्य के पुरोधा के रूप में विख्यात वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामनिवास ‘मानव’ का। हरियाणा-दिवस के सुअवसर पर दिए गए अपने विशेष साक्षात्कार में डॉ. ‘मानव’ ने कहा कि पंजाब से अलग हरियाणा राज्य का गठन ही भाषा के आधार पर हुआ था, लेकिन सरकारों की उपेक्षा के चलते हरियाणवी पिछड़ती चली गई।
उन्होंने स्पष्ट किया कि ‘हरियाणा में कल्चर के नाम पर सिर्फ़ एग्रीकल्चर है’ का झूठा नैरेटिव चलाने वाले और हरियाणवी-विरोधी मानसिकता से ग्रस्त कथित साहित्यकारों ने सत्ता के सहयोग से पहले भाषा विभाग पर और फिर हरियाणा साहित्य अकादमी पर आधिपत्य जमा लिया। परिणाम? स्वतंत्रता के समय जो पंजाबी हरियाणवी से उन्नीस थी, वह न केवल संविधान की 8वीं सूची में शामिल होकर राष्ट्रीय भाषा का दर्जा पाने में सफल रही, बल्कि अब ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि देशों में बसे करोड़ों पंजाबी भाषी लोगों के कारण विश्व भाषा बनने की ओर अग्रसर है। किंतु जो हरियाणवी अपने दम पर शताब्दियों पूर्व सुदूर दक्षिण भारत, नेपाल, तजाकिस्तान, कजाकिस्तान तथा कई यूरोपीय देशों तक पहुँच गई थी, स्वतंत्रता-प्राप्ति के सतत्तर और हरियाणा गठन के अड़सठ वर्ष बाद भी अपनी पहचान को बचाये रखने के लिए संघर्ष कर रही है।
हरियाणा के हिंदी और हरियाणवी साहित्य के शोध और संरक्षण में अपने जीवन के पचास महत्त्वपूर्ण वर्ष खपा देने वाले डॉ. ‘मानव’ हरियाणवी की वर्तमान स्थिति से बहुत निराश हैं और व्यथित स्वर में कहते हैं कि अब तक हरियाणवी के विकास के लिए जितने भी प्रयास हुए हैं, उनमें से अधिकतर निजी स्तर पर हुए हैं, राज्य सरकार या राज्य की किसी अकादमी का शायद ही कोई योगदान उनमें रहा हो। यही कारण है कि आज तक न तो हरियाणवी का मानक रूप तय हो पाया है, न हरियाणा में हरियाणवी साहित्य अकादमी का गठन हुआ है और न हरियाणवी में कोई पत्रिका निकलती है। फिर हरियाणवी भाषा का समुचित विकास कैसे संभव है!
पूर्व में हरियाणा साहित्य अकादमियों की कार्य-प्रणाली पर क्षोभ प्रकट करते हुए डॉ. ‘मानव’ ने कहा कि सत्ता के आशीर्वाद से हरियाणा की अकादमियों पर दशकों से कुंडली मारकर बैठे कुछ लोगों ने, अपने पद का दुरुपयोग करते हुए, न केवल चाटुकारिता की अपसंस्कृति को बढ़ावा दिया, बल्कि अकादमियों द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कारों की प्रतिष्ठा को भी ठेस पहुंचाई। जो लोग अढाई हज़ार के पुरस्कार के योग्य नहीं थे, उन्हें अढाई-अढाई लाख के, जो पांच हज़ार के पुरस्कार के योग्य नहीं थे, उन्हें पांच-पांच लाख के और जो सात हज़ार के पुरस्कार के योग्य नहीं थे, उन्हें सात-सात लाख के नामित पुरस्कार थोक में बांटे गये। इससे भी दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण बात यह रही कि अनेक सुयोग्य और पुरस्कारों के सच्चे अधिकारी साहित्यकारों की घोर उपेक्षा की गई।
हरियाणवी भाषा और साहित्य के विकास हेतु हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के वर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. कुलदीपचंद अग्निहोत्री और निदेशक डॉ. धर्मदेव विद्यार्थी द्वारा की जा रही पहल को सराहनीय बताते हुए डॉ. ‘मानव’ ने आशा प्रकट की है कि उनके प्रयासों के सार्थक और संतोषजनक परिणाम सामने आएंगे। हरियाणवी को हिंदी का पूर्व रूप और केंद्रीय साहित्य अकादमी के शब्दों में ‘हिंदी की सहभाषा’ बताते हुए डॉ. ‘मानव’ ने कहा कि अलग से हरियाणवी साहित्य अकादमी का गठन, हरियाणवी पत्रिका का प्रकाशन, हरियाणवी भाषा का मानकीकरण और समकालीन हरियाणवी साहित्य का मूल्यांकन बहुत ज़रूरी है। हरियाणवी साहित्य को फूहड़ सांगों, अश्लील रागिनियों और भौंडे चुटकुलों तक सीमित कर देना उचित नहीं है।
उल्लेखनीय है कि साठ महत्त्वपूर्ण पुस्तकों के लेखक और संपादक डॉ. रामनिवास ‘मानव’ हरियाणा में रचित हिंदी-साहित्य के प्रथम शोधार्थी और अधिकारी विद्वान तो हैं ही, हरियाणा के समकालीन साहित्य की शोध-परंपरा के विधिवत शुभारंभ का श्रेय भी इन्हें प्राप्त है। ‘हरियाणा में रचित सृजनात्मक हिंदी-साहित्य’ और ‘हरियाणा में रचित हिंदी-महाकाव्य’ इनके दो चर्चित शोधग्रंथ हैं। ‘हरियाणवी : बोली और साहित्य’ तथा ‘हरियाणवी’ इनकी हरियाणवी पर केंद्रित दो शोधपरक और समीक्षात्मक पुस्तकें हैं। ‘हरियाणवी’ पुस्तक केंद्रीय साहित्य अकादमी के अनुरोध पर लिखी गई थी तथा इसे ‘हिंदी की सहभाषा’ शृंखला के अंतर्गत साहित्य अकादमी द्वारा ही प्रकाशित किया गया था।