अजब और गजब’ की मिसाल में समाहित है ‘संस्कृति’ और ‘प्रकृति’ के संगीत,,,,,,,
सांस्कृतिक विरासत में आज की शानदार एवं खूबसूरत संध्या दो सगी बहनों के सांस्कृतिक संगीतों के साथ प्रारंभ हुई I दोनों बहनों की जुगलबंदी बेहद आकर्षक एवं लोकप्रियता का केंद्र बनी रही I वहाने परिवार की रगों में संगीत की परंपरा है। संस्कृति और प्रकृति अपने पिता डॉ. लोकेश वहाने (सितार वादक) द्वारा बनाए गए मार्ग पर चल रही हैं। संस्कृति का जन्म 25 जनवरी 1998 को सिकंदरा, वारासिवनी,मध्य प्रदेश में हुआ। उन्होंने इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़, छत्तीसगढ़ से सितार में मास्टर डिग्री(एम.ए.) हासिल की।उन्हें एआईआर दिल्ली द्वारा 2024 में सितार में ए ग्रेड से सम्मानित किया गया। हैरानी के बाद यह है कि उन्होंने आठ साल की उम्र में अपना पहला डेब्यू किया था। उन्होंने संगीत के क्षेत्र में अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता डॉ. लोकेश वहाने जी से प्राप्त की, जो विश्व प्रसिद्ध सितार वादक उस्ताद शाहिद परवेज जी (इटावा घराना) के गंडाबंध शिष्य थे। संस्कृति की परंपरा और बजाने की शैली बेजोड़ है। यह राग, गायकी और तंत्रकारी अंग की शुद्धता की एक दुर्लभ घटना है। वर्तमान में वह अपने पिता और गुरु डॉ लोकेश जी वहाने अपने दादा गुरु उस्ताद शाहिद परवेज जी और विश्व प्रसिद्ध तबला वादक (तालयोगी) पंडित सुरेश तलवलकर जी के योग्य मार्गदर्शन में पारंपरिक संगीत का प्रशिक्षण ले रही हैं I संस्कृति ने प्रसार भारती द्वारा 2017 में ऑल इंडिया रेडियो प्रतियोगिता में प्रथम स्थान जीता और ग्रेडेशन पर कब्ज़ा किया। उन्हें नेशनल सेंटर फॉर द परफॉर्मिंग आर्ट्स, मुंबई में आयोजित आईटीसी संगीत रिसर्च अकादमी (2018) द्वारा हिंदुस्तानी वाद्य संगीत-सितार की श्रेणी में बहुत प्रतिष्ठित, श्री रवि कोप्पिकर मेमोरियल अवार्ड का सम्मान भी मिला। हाल ही में दोनों वहाने बहनों ने लंदन 2022 में बहुत प्रतिष्ठित दरबार फेस्टिवल में अपनी जुगलबंदी का प्रदर्शन किया है।
संस्कृति वहाने की सगी बहन प्रकृति वहाने का हुनर और लोकप्रियता भी आसमान को छूने वाली रही है I प्रकृति वहाने को संगीत के रूप में मानो ईश्वर का वरदान मिला हुआ है। 9 जून 1999 को सिकंदरा वरसिवनी, मध्य प्रदेश में जन्मी प्रकृति वहाने विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से अंग्रेजी साहित्य में मास्टर डिग्री (एम.ए.) कर रही हैं। उन्होंने अपने पिता डॉ. लोकेश वहाने से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू की। उन्हें एआईआर दिल्ली द्वारा भी ‘संतूर’ में ‘ए’ ग्रेड से सम्मानित किया जा चुका है। प्रकृति की संतूर बजाने की परंपरा और शैली बेजोड़ है। इसकी विशेषता गायकी और तंत्रकारी अंग में असाधारण स्वर और पद्धति के साथ-साथ राग की शुद्धता है। वह वर्तमान में अपने पिता और गुरु डॉ. लोकेश वहाने जी, जो संतूर के भी उस्ताद हैं, और उनके दादागुरु उस्ताद शाहिद परवेज जी और तबला वादक (तालयोगी) पंडित सुरेश तलवलकरजी के मार्गदर्शन में हैं। प्रकृति ने 2018 में प्रसार भारती द्वारा आयोजित ऑल इंडिया रेडियो प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया और ग्रेडेशन पर कब्ज़ा किया। उन्हें एनसीपीए, मुंबई में आयोजित हिंदुस्तानी वाद्य संगीत प्लक्ड इंस्ट्रूमेंट- संतूर की श्रेणी में ब्लू स्टार अवार्ड 2018 का सम्मान भी मिला। अत्यधिक खुशी और गौरव की बात यह है कि दोनों बहनें क्रमशः वर्ष 2018 और 2019 में राष्ट्रीय युवा महोत्सव का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। संस्कृति और प्रकृति ने देश के विभिन्न हिस्सों में अपने युगल और एकल प्रदर्शन में योगदान दिया है। हाल ही में दोनों वहाने बहनों ने लंदन 2022 में बेहद प्रतिष्ठित दरबार महोत्सव में अपनी जुगलबंदी का प्रदर्शन कर अपनी शानदार शोहरत का परिचय दिया है।