खेल के मैदान से राजनीति तक, जानें भारतीय फुटबॉल के इस सितारे की कहानी
15 दिसंबर को भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व कप्तान बाइचुंग भूटिया अपना 48वां जन्मदिन मना रहे हैं। अपने अद्भुत शूटिंग स्किल्स के कारण उन्हें ‘सिक्किमी स्निपर’ के नाम से जाना जाता है। ‘भारतीय फुटबॉल के लिए भगवान का उपहार’ कहे जाने वाले बाइचुंग ने न केवल देश में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई। आइए, इस मौके पर उनके जीवन के खास पहलुओं पर नजर डालते हैं।
जन्म और शुरुआती जीवन
15 दिसंबर 1975 को सिक्किम के तिनकीतम गांव में जन्मे बाइचुंग का परिवार खेती करता था। उनके माता-पिता नहीं चाहते थे कि वह खेल को करियर बनाएं। लेकिन पिता की मृत्यु के बाद उनके चाचा कर्मा भूटिया ने उनका समर्थन किया। महज 9 साल की उम्र में उन्होंने फुटबॉल स्कॉलरशिप जीतकर गंगटोक स्थित साई ट्रेनिंग अकादमी में प्रवेश पाया।
शानदार करियर की शुरुआत
भूटिया ने अपने करियर की शुरुआत ईस्ट बंगाल क्लब से की। साल 1992 में उन्होंने ‘बेस्ट प्लेयर’ का अवॉर्ड जीतकर सबका ध्यान खींचा। 1999 में वह इंग्लिश क्लब बरी से जुड़ने वाले पहले भारतीय बने। उन्होंने 16 साल के करियर में 100 से अधिक अंतरराष्ट्रीय मैच खेले और 43 गोल दागे। उनकी कप्तानी में भारत ने तीन सैफ कप, दो नेहरू कप, और 2008 में एफसी चैलेंज कप जीता, जिसके बाद भारत ने 1984 के बाद पहली बार एशिया कप में जगह बनाई।
नई पारी: राजनीति में प्रवेश
24 अगस्त 2011 को फुटबॉल से संन्यास लेने के बाद बाइचुंग ने राजनीति में कदम रखा। मैदान पर उनकी उपलब्धियां भारतीय खेल जगत के लिए प्रेरणा बनी हुई हैं।
बाइचुंग भूटिया का सफर भारतीय फुटबॉल के स्वर्णिम अध्यायों में लिखा जाएगा।