8 हज़ार घूस लेने वाले बाबू को जेल, 20 लाख डकारने वाले की मौज
बृजेश चतुर्वेदी(BNE)
कन्नौज। कुछ छात्रों को छात्रवृत्ति दिलाने की एवज में समाज कल्याण कर्मी ने छात्रों से 8 हजार रुपये की घूस ली और वो जेल पहुंच गया। इस मामले की रिपोर्ट स्वयम समाज कल्याण मंत्री ने दर्ज कराई थी जोकि बाद में न्यायालय में आरोपी कार्मिक की जमानत का आधार भी बनी। न्यायालय ने पूछा कि घूस देने वाले ने रिपोर्ट दर्ज क्यो नही कराई। भारतीय न्याय व्यावस्था में घुस लेने और देने वाले दोनों समान रूप से दोषी माने जाते हैं। बहरहाल कार्मिक को जमानत मिल गयी और वो बहाल होकर कानपुर में तैनाती भी पा गया। ये एक अलग किस्सा है। बहरहाल मंत्री ने स्वयं आरोपी लिपिक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई और दंडित करवाया। दूसरी ओर करीब 21 लाख रुपये का अपव्यय करने वाले वन विभाग पर ‘कृपा’ बरकरार है। खास बात यह है कि दोनों ही मामले समाज कल्याण मंत्री के संज्ञान में है। वन विभाग की तो तीन अधिकारी 17 अप्रैल को जांच रिपोर्ट भी दे चुके हैं। पुष्टि होने के बाद भी कार्रवाई की बजाय इस पर जिम्मेदार पूरी तरह ‘मौन’ है।
समाज कल्याण विभाग में सुपरवाइजर हृदयेश यादव के खिलाफ समाज कल्याण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) असीम अरुण ने स्वयम ही सदर कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। आरोप था कि पिछड़ा वर्ग के दो छात्रों को छात्रवृत्ति दिलाने के नाम पर करीब आठ हजार रुपये उसने आन लाइन घूस के तौर पर वसूल किये थे। छात्रवृत्ति न मिलने पर शिकायत मंत्री के पास पहुंची थी। पीड़ितों का दर्द महसूस करते हुए मंत्री जी ने स्वयं रिपोर्ट दर्ज कर तुरन्त आरोपी को हिरासत में लेने का आदेश दिया था। मामला भ्रष्टाचार से जुड़ा होने के चलते आरोपी को लखनऊ जेल भेज दिया गया। आरोपी को निलंबित करने के बाद कानपुर में संबद्ध कर दिया गया। आरोपी अब जेल से रिहा हो चुका है और कानपुर में संबद्ध है। बताया गया है कि उसके खिलाफ पहले से ही कई शिकायतें थीं।
दूसरी ओर वन विभाग की ओर से गड़बड़ी करने की जब शिकायत समाज कल्याण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के पास पहुंची तो जिलाधिकारी शुभ्रान्त कुमार शुक्ल को उच्च स्तरीय जांच कराने के लिए कहा गया। जांच के लिए गठित समिति में तत्कालीन डीसी मनरेगा दयाराम यादव अब (पीडी डीआरडीए प्रतापगढ़), अधिशाषी अभियंता सिंचाई सूर्यमणि सिंह व पीडी डीआरडीए रामऔतार सिंह को कमेटी में रखा गया। कमेटी ने उमर्दा ब्लॉक क्षेत्र के वन ब्लॉकों में मौके पर पहुंचकर सत्यापन किया। इसमें 20 लाख 67 हजार 665 रुपये की फिजूलखर्ची (अपव्यय) पकड़ा। पूरी रिपोर्ट भी डीएम को सौंप दी गयी। सूत्रों का दावा है कि डीएम कार्यालय ने यह जांच आख्या मंत्री जी को प्राप्त भी करा दी थी । उसके बाद कर्तव्य की इतिश्री हो गयी अब तक आरोपियों का कोई बाल तक बांका नही हुआ और वे पूर्व की भांति ही हंसते खिलखिलाते दफ्तर की शोभा बढ़ाते देखे जा सकते है। खास बात यह भी है कि मंत्री जी का स्थानीय दफ्तर और आरोपियों का कार्यालय आमने सामने है।
सामाजिक वानिकी वन विभाग के कर्ता धर्ताओं पर आरोप है कि उन्होंने 9 परियोजनाओं पर पौधरोपण के नाम पर 89 लाख 33 हजार 184 रुपये खर्च किया है। इसके सापेक्ष अधिकारियों की कमेटी ने मौके पर 69 लाख 65 हजार 519 रुपये खर्च होने की पुष्टि की। जांच समिति ने 20 लाख 67 हजार 665 रुपये की गलत तरीके से खर्च होने का मामला पकड़ा था और अपनी सुस्पष्ट आख्या में जिमेदारी तय करते हुए दोषियों को दण्ड की सिफारिश की थी पर मामला फिलहाल ठंडे बस्ते की धूल चाट रहा है।