एकादशी व्रत का धार्मिक महत्व
एकादशी व्रत भगवान श्रीहरि विष्णु की कृपा पाने का सबसे प्रभावशाली मार्ग माना जाता है। यह व्रत देवी एकादशी को समर्पित है, जिनका प्राकट्य श्रीहरि विष्णु से हुआ था। पद्म पुराण के अनुसार, एकादशी व्रत पापों से मुक्ति और उत्तम लोक की प्राप्ति का साधन है।
पौराणिक कथा: भीम और एकादशी व्रत
पांडव भीम ने महर्षि वेद व्यास से मुक्ति का मार्ग पूछा था। महर्षि ने उन्हें निर्जला एकादशी व्रत करने की सलाह दी, जिसे करते हुए भीम को मोक्ष प्राप्त हुआ। यह कथा एकादशी व्रत की महिमा को दर्शाती है।
एकादशी व्रत के नियम और संयम
व्रत दशमी तिथि से प्रारंभ होकर द्वादशी तक चलता है।
चावल और उससे बनी चीजें खाने से बचना चाहिए।
व्रत के दौरान भक्ति, ध्यान और भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है।
द्वादशी के दिन व्रत का पारण और दान-पुण्य करना अनिवार्य है।
एकादशी व्रत के लाभ
मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति।
पापों का नाश और आत्मा की शुद्धि।
ईश्वर की कृपा और जीवन में सकारात्मकता।
2025 में एकादशी तिथियां
2025 में कुल 24 एकादशी व्रत होंगे। इनमें पौष पौत्रदा (10 जनवरी), निर्जला (6 जून), देवशयनी (6 जुलाई), और देवउठनी एकादशी (2 नवंबर) प्रमुख हैं। जो लोग सभी व्रत नहीं कर सकते, वे इन महत्वपूर्ण तिथियों पर व्रत रख सकते हैं।
एकादशी व्रत धार्मिक आस्था और आत्मिक शांति का अद्भुत माध्यम है। इसे सच्ची श्रद्धा और भक्ति से करने पर जीवन में आध्यात्मिक समृद्धि आती है।